हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी पद्मपुरस्कारो की घोषणा की जा चुकी है। पद्म पुरस्कार मिलना बड़ा सम्मान का विषय माना जाता रहा है। जिसको भी ये पुरस्कार मिलता है वो बड़े गर्व से ये सम्मान ग्रहण करता है और आजीवन अपने नाम के आगे-पीछे "पद्म श्री/विभूषण से सम्मानित" लगाता रहता है क्योंकि ये पुरस्कार लेने के पहले भी, पुरस्कार देने वालो के बहुत "आगे -पीछे" घूमना पड़ता है। पद्म पुरस्कार पाने के लिए केवल "आवेदन" करने से काम नहीं चलता है, पुरस्कार पाने के लिए "निवेदन" ज़्यादा ज़रूरी है। पुरस्कार पाने के लिए की गई जोड़तोड़, सिफारिश और लॉबिंग पुरस्कार की चमक और बढ़ा देती है।
ये पुरस्कार केंद्र सरकार द्वारा किसी भी क्षेत्र में विशेष योगदान को "केंद्र" में रखते हुए दिए जाते है। देश में सत्तासीन दल का एक मुख्य कार्य , समाज से हर तरह की असमानता को दूर करना भी होता है। जिस तरह से सरकार अपनी कपितय योजनाओ द्वारा अमीरी और गरीबी के बीच की दूरी कम करने का प्रयास करती है ,ठीक उसी प्रकार से सरकारो का ये दायित्व भी होता है कि वो सामाजिक समानता और समरसता स्थापित करने के लिए योग्य -अयोग्य , सम्मान- अपमान के बीच की खाई को कम करे और ये कार्य केवल आरक्षण के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है।
इसलिए सरकारे ऐसी हस्तियों को भी पद्म पुरस्कारों से सम्मानित कर रही है जो इन पुरस्कारो को पाने के लिए उपलब्धि, योग्यता और योगदान जैसे तुच्छ मापदंडो से नहीं बंधे होते है क्योंकि इनका कद इतना ऊपर उठ चुका होता है की वो पृथ्वी के गुरत्वाकर्षण को भी पार कर जाता है और पुरस्कार प्राप्त करने के लिए जब वो झुकते तो वो भी देश के ऊपर किसी अहसान से कम नहीं होता है । ऐसे लोगो का ,उन्हें सम्मानित किये गए क्षेत्र में योगदान ढूंढने के लिए गूगल की हिम्मत भी जवाब दे जाती है लेकिन ऐसे लोगो को सम्मानित करने के लिए सरकार की हिम्मत की दाद दी जाती है। कई बार तो ऐसा प्रतीत होता है किसी व्यक्ति को किसी क्षेत्र या विषय में केवल इसीलिए सम्मानित किया गया है क्योंकि उस व्यक्ति ने उस क्षेत्र/विषय में काम ना करके उस क्षेत्र/विषय पर बहुत बड़ा उपकार किया है जो की सम्मान किये जाने लायक है।
पहले जिन्हें भ्रष्ट और बेईमान घोषित कर दिया गया है, उनका हृदयपरिवर्तन करने और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए भी ये पुरस्कार अपनी महती भूमिका निभा रहे है। इसलिए ज़रूरी नहीं है कि पुरस्कार केवल अच्छे लोगो को ही दिया जाये, ज़्यादा ज़रूरी है की इन पुरस्कारो से समाज में अच्छाई स्थापित की जाये। पद्म पुरस्कार की "बंदरबाट" आम आदमी की समझ से बाहर होती है क्योंकि "बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद। "
विपक्षी दलो द्वारा अक्सर ये आरोप लगते है कि पद्म पुरस्कार राजनीती से प्रेरित होकर दिए जा रहे है, हालांकि ये बात अलग है कि ये आरोप भी राजनीती से ही प्रेरित होते है । तो जैसे लोहा लोहे को काटता है वैसे ही राजनीती भी राजनीती को काटती है। पुरस्कारों में राजनीती का प्रवेश एक अच्छा संकेत है क्योंकि जब तक हम राजनीती को हर जगह नहीं घुसा देते तब तक राजनीती पवित्र नहीं हो सकती है क्योंकि राजनीती का भगवान की तरह पवित्र होने के लिए उसका भगवान की तरह सर्वव्यापक होना ज़रूरी है।
---अमित शर्मा---
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