करुणा एवं संवेदना के बिना शिक्षा अधूरी है : राज्यपाल कोहली - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

करुणा एवं संवेदना के बिना शिक्षा अधूरी है : राज्यपाल कोहली

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उज्जैन, 07 फरवरी, मध्यप्रदेश के राज्यपाल ओ पी कोहली ने आज कहा कि करुणा एवं संवेदना के बिना शिक्षा अधूरी है और पूरी शिक्षा वह है जो मनुष्य को मनुष्य बनाए। श्री कोहली ने यहां विक्रम विश्वविद्यालय के 22वें दीक्षान्त समारोह को सम्बोधित करते हुए कहा कि शिक्षा मनुष्य के अन्दर दया, प्रेम, करुणा के भाव जगाए, जिससे वह देश, समाज और परिवार के प्रति अपने दायित्वों का कुशलतापूर्वक निर्वाह करे। उन्होने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य में व्यावसायिक दक्षता, बौद्धिक दक्षता के साथ भावनात्मक दक्षता लाना भी है। जो पीछे हैं, दु:खी हैं, पीड़ित हैं, निर्बल हैं, असहाय हैं, उनके दु:ख दूर करना तथा उनके जीवन को सुखमय बनाने का प्रयास करना शिक्षा का मूल उद्देश्य है। राज्यपाल ने अपनी विद्या पूर्ण कर चुके विद्यार्थियों से कहा कि वे दीक्षान्त समारोह के पावन अवसर पर यह संकल्प लें कि वे अपने जीवन में केवल आचरणीय कार्य ही करेंगे। अनाचरणीय कार्य कदापि नहीं करेंगे। वे अपने विवेक के आधार पर निर्णय लेंगे कि क्या आचरणीय और क्या अनाचरणीय है। श्रीमद्भगवदगीता के 16वें अध्याय में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को देवीय एवं आसुरी गुणों के बारे में स्पष्ट रूप से बताया है। विद्यार्थी गीता के 16वें अध्याय का अध्ययन अवश्य करें तथा हमेशा देवीय गुणों का आचरण करें। श्री कोहली ने भारत में शिक्षा की गौरवशाली परम्परा का उल्लेख करते हुए कहा कि प्राचीनकाल में नालन्दा एवं तक्षशिला जैसे भारत के विश्वविद्यालय पूरी दुनिया को आकर्षित करते थे तथा यहां सारी दुनिया से विद्यार्थी एवं विद्यान अध्ययन के लिए आते थे। आज हमें अपने विश्वविद्यालयों के उस प्राचीन गौरव को लौटाना है। हमें भारत से प्रतिभा के पलायन को रोकना है। इस अवसर पर प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया एवं विधायक डॉ. मोहन यादव, विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. शीलसिंधु पाण्डेय आदि उपस्थित थे। 


दीक्षान्त के बारे में राज्यापाल ने बताया कि पुरातन परंपरा में स्नातकों के अध्ययन की पूर्णता के बाद गुरुकुल से घर की वापसी के अवसर पर ‘समावर्तन संस्कार’ आयोजित किया जाता था, वही ‘दीक्षान्त समारोह’ है। इस अवसर पर आचार्य उनके विद्यार्थियों के जीवन की परिपूर्णता के लिए उन्हें अन्तिम उपदेश ‘दीक्षान्त उपदेश’ देते थे। इसका प्रमुख मंत्र था “सत्यं वद। धर्मं चर। स्वाध्यायान्मा प्रमद:। मातृ देवो भव, पुत्र देवो भव, आचार्य देवो भव, अतिथि देवो भव।” अर्थात सत्य बोलना, धर्म का आचरण करना तथा स्वाध्याय में कभी प्रमाद नहीं करना। माता, पिता, आचार्य तथा अतिथि को देवतुल्य मानकर इन सबके प्रति पूज्य भाव रखना। यह उपदेश सर्वदा प्रासंगिक है। विद्यार्थी इसका आचरण करें तो जीवन में सफलता मिलना सुनिश्चित है। श्री कोहली ने कहा कि उज्जैन की भूमि का शिक्षा के क्षेत्र में विशिष्ट महत्व है। यहां भगवान श्रीकृष्ण ने महर्षि सान्दीपनि से शिक्षा प्राप्त की। उज्जैन भारत के प्राचीनतम विद्या केन्द्रों में प्रमुख रहा है। इस भूमि ने विश्व को साहित्य, कला, संस्कृति तथा अन्य विधाओं के विद्वान दिए हैं। आप लोग भाग्यशाली हैं कि आपने इस भूमि में विद्याध्ययन किया है। राज्यपाल श्री कोहली ने कहा कि विक्रम विश्वविद्यालय की गौरवशाली परम्परा हम सभी के लिए गर्व का कारण है। डॉ.शिवमंगलसिंह सुमन, डॉ.विष्णु श्रीधर वाकणकर, डॉ.भगवतशरण उपाध्याय, डॉ.राममूर्ति त्रिपाठी, श्री गजानन माधव मुक्तिबोध जैसे अमूल्य रत्न इस विश्वविद्यालय से जुड़े रहे हैं। कार्यक्रम के प्रारम्भ में विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. शीलसिंधु पाण्डेय ने स्वागत उद्बोधन देते हुए बताया कि नेक द्वारा विश्वविद्यालय को ‘ए’ ग्रेड प्रदान किया गया है। अब वर्ष 2014-15 से ही हरेक विषय में टॉपर विद्यार्थी को गोल्ड मेडल दिया जाएगा। विश्वविद्यालय परीक्षा परिणामों में भी अग्रणी है। दीक्षान्त समारोह में विश्वविद्यालय द्वारा कुल 261 विद्यार्थियों को विभिन्न उपाधियां प्रदान की गई। इनमें 193 विद्यार्थियों को पीएचडी, दो विद्यार्थियों को डीलिट् तथा 66 विद्यार्थियों को स्नातकोत्तर उपाधि प्रदान की गई। इसके अलावा राज्यपाल के हाथों विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक भी प्रदान किए गए। समारोह के दौरान ही राज्यपाल के हाथों विश्वविद्यालय परिसर में नवनिर्मित गणित अध्ययनशाला का लोकार्पण हुआ। इसके साथ ही विश्वविद्यालय के दीक्षान्त भाषणों के संचयन तथा डाक विभाग द्वारा विश्वविद्यालय पर जारी विशेष कवर भी राज्यपाल एवं अतिथियों के हाथों लोकार्पित किए गए। 

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