प्रदूषित वातावरण व भागदौड़ की जिन्दगी में ‘यौगिक’ करें जीवन शैली - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

प्रदूषित वातावरण व भागदौड़ की जिन्दगी में ‘यौगिक’ करें जीवन शैली


नयी दिल्ली 09 फरवरी, मशीनी जिन्दगी और प्रदूषित वातावरण में निरोग और ऊर्जावान रहना है तो जिन्दगी के लय को यौगिक बनाना होगा और उस धारणा से बचना होगा कि ‘पश्चिम’ से आने वाली चीजें ही खरा सोना हैं क्योंकि पहले ‘योगा’ नहीं ‘योग’ है और योग ही रोग को भगा सकता है ।

प्रदूषण के विकराल स्तर पर पहुंचने औेर जीवन शैली के (खास करके नयी पीढ़ी की) पश्चिमी देशों के गुलाम बन जाने से हम कम उम्र्र में ही गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। ऐसे में जरूरत है कि हम अपने ऋषि मुनियों की शिक्षा को अपनाएं जिन्होंने योग और उत्तम जीवन शैली के माध्यम से सौ साल से भी अधिक समय तक निरोगी रहकर ‘जीवन साधना’ की।

बाल्यकाल से योग को ‘जीने’ वाले जाने-माने योग शिक्षक योगी आनंद ने विशेष बातचीत में आज कहा,“ योग को ‘योगा’’ समझने वाले के लिए यह जानना जरूरी है कि सूरज पश्चिम से नहीं पूरब से निकलता है और डूबते सूरज की किरणों में सुबह वाली ‘जीवन-शक्ति’ नहीं होती है। दीपक तले अंधेरा जैसी बात है। हम अपनी अच्छाइयों से दूर होते जा रहे हैं और सुंदर रैपर में लिपटे ‘बाहर’ से आ रहे ‘विष’ को गले गला रहे हैं। खाने -पीने से लेकर उठने -बैठने यहां तक की चलने में भी हम सब भेड़ चाल चल रहे हैं और शिकायत करते हैं कि वर्तमान में सब कुछ प्रदूषित हो गया है।

योगी आनंद ने कहा, “अफसोस की बात है कि हम अपनी तरफ नहीं देखते। स्वस्थ और ‘स्लिम ट्रिम’ बनने के लिए हजारों रुपये लगाकर जिमखानाें के चक्कर लगाते हैं और जीवन के लिए बेहद आवश्यक और वैज्ञानिक जीवन शैली ‘योग’ को दरकिनार करते हैं। यह कदम आधुनिकता की अंधी दौड़ में कई माताओं के आंचल में छिपे ‘अमृत रस’ की अनदेखी करके ‘प्लास्टिक की बोतल’ पर बच्चे पालने जैसा है। आज की हमारी पीढ़ी की कुछ आबादी अगर योग के प्रति आकर्षित हुयी है तो योग के ‘योगा’ बनकर कर सामने आने पर।”

योगी आनंद ने कहा ,“ हमारे समाजशास्त्री अगर एक सफल व्यक्ति के पीछे एक महिला का हाथ मानते हैं तो हमारा मानना है कि हर सफल व्यक्ति योगी है क्योंकि योग शरीर और मन को वश में करने की क्रिया है और इसके बिना कोई भी इंसान सही रूप में सफल नहीं हो सकता । सुकरात, प्लेटो, गौतम बुद्ध ,आर्यभट्ट ,महर्षि योगी ,अब्राहम लिंकन ,स्वामी विवेकानंद से लेकर महात्मा गांधी, मदर टेरेसा , नेलसन मंडेला ,बी के एस अयंर, ए पी जे अब्दुल कलाम आदि समेत
कई हस्तियां उच्च कोटि के योगी थी तभी वे सफलता की ऊंचाइयां नाप सके। ”

उन्होंने कहा कि काेई भी व्यक्ति अति चेतना को जागृत करके ही महान कार्य कर सकता है और यह योग से ही संभव है । लेकिन हाल के वर्षों तक हमारे यहां योग एक गुप्त विद्या बन कर रह गया था। पर खुशी की बात है कि योग रूपी दीया को प्रकाशित करने की कई लोगों ने वीणा उठाई जिनमें धीरेन्द्र ब्रह्मचारी, रामदेव आदि शामिल हैं। ”

योगी आनंद ने कहा, “ हमारे देश में योग का यह स्वर्णिम काल है क्योंकि योग के माध्यम से देश की बागडोर थामने वाले श्री नरेन्द्र मोदी ने योग को विश्व स्तर तक पहुंचाया है। उनके प्रयासों से 2015 से 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जा रहा है और यूनेस्को ने इसे विश्व विसारत के रूप में शामिल किया है।

उन्होंने कहा कि साथ ही योग शिक्षा को पाठ्यक्रमों मे भी शामिल किया जा रहा है। “मेरा मानना है कि इसे प्राथमिक स्कूल से ही विज्ञान ,कला एवं कॉमर्स के छात्रों के लिए अनिवार्य बनाया जाये ताकि हमारा देश स्वस्थ, ताकतवर और खुशहाल देश के रूप में उभरे। योग को धर्म से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए तभी इसका पूरे विश्व को लाभ मिल सकेगा। धरती,आसमान एवं सूरज तो सभी के हैं फिर किसी प्रकार के आसन को लेकर कोई भी चर्चा ‘सूर्य की गरिमा
को ठेस कैसे पहुंचाती है। ”

योगी आनंद ने कहा कि किसी भी देश में अगर शासक किसी अच्छी चीज को लेकर जागरूक है तो उसकी सफलता को कोई बांध नहीं सकता। बौद्ध धर्म को कई देशों में स्थापित होने के पीछे शासक की बड़ी भूमिका रही है चाहे वह भारत ,जापान ,चीन ,थाईलैंड , कंबोडिया ,श्रीलंका ,म्यांमार ,अथवा भूटान हो । लेकिन योग को लेकर हमारे देश में जागरूकता फैलाने की और अधिक आवश्यकता है । इसे मौलिक कर्तव्यों में शामिल किया जाना चाहिए ताकि हर योगी और योग 
जानने वाला व्यक्ति कम से कम 10 लोगों को योग की शिक्षा देकर देश की उन्नति में भागीदार बन सके । 

उन्होंने कहा कि योग एवं प्राणायाम से हमारे शरीर के रोम -रोम में ऑक्सीजन प्रवाहित होती है और अतिचेतना जागृत होती है। शरीर की कोशिकाओंं कों अगर भरपूर ऑक्सीजन मिलती है तो गंभीर से गंभीर बीमारियां हमें छूने से डरती हैं। सभी प्रकार की बीमारियों की रोकथाम के लिए योग को जीवन का मूलमंत्र मानना होगा। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने द्वितीय योग अंतरराष्ट्रीय दिवस पर लोगों से बेहतर स्वास्थ्य एवं जीवन में समृद्धि लाने के लिए योग को जीवन का अभिन्न अंग बनाने की अपील की थी। श्री मुखर्जी ने कहा था कि योग मानसिक एवं शारीरिक शक्ति देता है। यह लोगों को स्वस्थ जीवन जीने के लिहाज से सक्षम बनाता है। इससे शरीर एवं मस्तिष्क को संपूर्ण तालमेल मिलता है।” 

योगी आनंद ने कहा, “ हर प्रकार की बीमारियों से बचने और उस पर काबू पाने के लिए अलग-अलग योग मुद्राएं हैं। मोटापा ,मधुमेह, उच्च रक्त ताप ,अनिद्रा, अवसाद आदि बीमारियों में योग बेहद कारगर है। लेकिन योग किसी कुशल शिक्षक की निगरानी में ही करना चाहिए क्योंकि शिक्षक को ही मालूम है कि हर योग मुद्रा के काउंटर पोज होते हैं जिनकी जानकारी नहीं हाेने पर हानि पहुंच सकती है। योग सीखने के बाद अकेले किया जा सकता है। योग के साथ -साथ हमें आयुर्वेदिक औषधियों को अपनाना चाहिए। योग स्वयं में बड़ा जिमखाना ,मॉर्निंग वाक है और दौड़ है। जीवन शैली ‘योगमय’ करके हम स्वयं तो स्वस्थ होगें ही अपने वातावरण को भी ‘यौगिक’ बनाने में अहम साबित हो सकते हैं, 
बस एक संकल्प की जररूत है ।”

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