पटना। राजनीति में हैं ईसाई समुदाय नगण्य। धार्मिक संस्थाओं को संचालित करने वाले मिशनरी संस्थाओं के कर्ताधर्ता चुनावी राजनीति से कोसों दूर भागते हैं। केवल सेेक्युलर कार्ड खेलते हैं। सेक्युलर कार्ड में कांग्रेस, राजद, जदयू आदि हैं। सेक्युलर सत्तासीन होते हैं तब खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। तथाकथित सेक्युलर भी ईसाई समुदाय के कर्ताधर्ताओं को मनोनय कार्ड खेलकर आकृष्ट कर लेते हैं। इन्हें अल्पसंख्यक आयोग,बीस सूत्री कार्यक्रम, महात्मा गांधी नरेगा आदि में मनोनीत कर लेते हैं। मनोयन कार्ड के बल पर वोट बैंक बनाते और अपनी सेक्युलर दल के नेतागण अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने में सफल हो जाते हैं। इसको लेकर आम ईसाइयों में आक्रोश व्याप्त है। इस संदर्भ में आम ईसाइयों का कहना है कि हमलोगों को साम्प्रदायिक और गैर साम्प्रदायिक राजनीति दलों में शामिल होने से रोका जाता है। खासकर मिशनरी संस्थाओं में कार्यरत कर्मियों को मनाही है। भाई यह बिल्कुल 90 प्रतिशत सत्य है। यह भी होता है जो मिशनरी संस्थाओं के कर्ताधर्ताओं के विपरित आचरण और चलकर राजनीति में प्रवेश करते हैं उनके प्रति दुष्प्रचार किया जाता है। यह आम लोगों को मालूम होना चाहिए कि साम्प्रदायिक दल हो अथवा गैर सम्प्रदायिक दल हो। सभी संविधान के दायरे में रहकर क्रियाकलाप करेंगे। बहुमत होने के बाद भी कोई कदम नहीं उठाएंगे जो संविधान के विपरित हो। यहां पर सभी मतावलम्बियों को समान अधिकार है। उसके विपरित कदम नहीं उठाएंगे। आखिरकार 5 साल के बाद जनता की अदालत में जाना ही है।
हां, सबसे अधिक मिशनरी और उनके दलाल बीजेपी वालों से खौफ खाते हैं। इनके बिग बिंग आरएसएस से घबराते हैं। इन लोगों के गोपनीय एजेंडा को सामने रखकर प्रचार-प्रसार करने में थकते नहीं हैं। इसमें सहायक दलाल किस्म के जीव भी सक्रिय हो जाते हैं। मिशनरी संस्थाओं के कर्ताधर्ता के साथ सुर में सुर दलाल मिलाने लगते हैं और सम्प्रदायिक दलों के हिडेन एजेंडा के बारे में अनापशनाप वक्तव्य देने लगते हैं। ईसाई समुदाय चाहते हैं कि धार्मिक कार्यों के ही घेरे में रहें। अब ईसाई समुदाय को राजनीति में प्रभाव जमाने दें। अब ईसाई समुदाय जागरूक हैं। अभी राजधानी में पटना नगर निगम का चुनाव होने जा रहा है। सभी प्रत्याशी मिशनरी फादर और सिस्टरों के पास ही जाकर गिड़गिड़ाते हैं। ऐसे लोगों को मालूम होना चाहिए कि उनके पास जाने से फायदा नहीं है। वे खुद का वोट देने के अधिकारी है। आम लोग तो खुद ही निर्णय करके मतदान देते हैं। उनके गांव में जाकर वोट देने का आग्रह करें। उनकी समस्याओं को देखे और निदान करने का भरोसा दें। इसमें ही प्रत्याशी और आम लोगों की हित है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें