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गुरुवार, 23 मार्च 2017

विशेष आलेख : गुजरात चुनाव एक बड़ी चुनौती है

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पांच राज्यों के विधानसभाओं में भारतीय जनता पार्टी की प्रभावी, ऐतिहासिक एवं शानदार जीत के बाद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुख्य निशाना गुजरात है। यही कारण है कि चुनाव प्रचार खत्म होते ही वे गुजरात के सोमनाथ मन्दिर पहुंचकर पूजा-अर्चना की। इस दौरान बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह एवं मंदिर के ट्रस्टी केशुभाई पटेल भी मौजूद रहे। इसके बाद से भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह चुनावी मोड में आ गई है। क्योंकि उसके लिये वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है गुजरात के विधानसभा चुनाव। यह सर्वविदित है कि प्रभावी नेतृत्व के अभाव में गुजरात में भाजपा का धरातल कमजोर हुआ है। वहां पर सभी दलों की दौड़ ‘येन-केन-प्रकारेण’ भाजपा को हराना एवं सत्ता हासिल करना है। यह मोदी के लिये एक बड़ी चुनौती बन चुका है और नाक का सवाल भी है। 


आगामी विधानसभा चुनाव जहां भारतीय जनता पार्टी के लिए एक चुनौती बनते जा रहे हैं वहीं दूसरों दलों को भाजपा को हराने की सकारात्मक संभावनाएं दिखाई दे रही हंै। पिछले तीन चुनावों से शानदार जीत का सेहरा बांधने वाली भाजपा के लिए आखिर ये चुनाव चुनौती क्यों बन रहे हैं? एक अहम प्रश्न है जिसका उत्तर तलाशना जरूरी है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के लिये किसी भी तरह की कोताही नहीं बरतना चाहते। उनके सामने ऐसा कोई नेता नहीं है जिसके हाथ में गुजरात की बागडोर थमाकर कम-से-कम गुजरात की जीत के प्रति वे आश्वस्त हो जाये। इसीलिये उन्होंने पहली बार पार्टी के सभी विधायकों, सांसदों और पदाधिकारियों के साथ बंद कमरे में बैठक की। भाजपा के सूत्रों के जरिए जो जानकारी सामने आई है उसके मुताबिक नरेंद्र मोदी ने बैठक को संबोधित किया। उन्होंने सभी नेताओं को आंतरिक कलह को दूर करके गुजरात की जीत को सुनिश्चित करने के लिये कमर कसने को कहा है। क्योंकि गुजरात में भाजपा की हार का कोई कारण बनता हुआ नजर भी आ रहा है कि वह पार्टी की अन्तर्कलह ही है। मोदी के पीएम बनने के बाद से ही राज्य में अमित शाह, आनंदीबेन पटेल और पुरुषोत्तम रूपाला की गुटबाजी के बारे में सभी जानते हैं। आदिवासी नेताओं की उपेक्षा, भिलीस्तान जैसी समस्या आदि चुनौतियां हैं, कांग्रेस एवं आप जैसी पार्टियां भी चुनौती बनी हुई है। इससे भाजपा पूरी तरह चुनावी मोड में आ गई है। कांग्रेस भी चुनावी तैयारी में जुट गई है कि कहीं वह असावधान न रह जाए। यह भी सब जानते हैं कि मोदी अपने करिश्माई व्यक्तित्व एवं अमित शाह में कूटनीतिक राजनीतिक चक्रव्यूह से गुजरात में जीत का नया इतिहास भी बना सकते हैं।

लेकिन गुजरात के आगामी विधानसभा चुनाव में जीत का रास्ता सुगम नहीं है, यह कांटोभरी डगर है। क्योंकि सत्तारूढ़ भाजपा के लिए पाटीदारों और दलितों के बाद आदिवासी समुदाय मुसीबत का बड़ा सबब बन सकते हैं। राज्य के आदिवासी इलाकों में षडयंत्रपूर्वक भिलीस्तान आंदोलन खड़ा किया जा रहा है जिसमें तथाकथित राजनीतिक दल एवं धार्मिक ताकतें भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर आदिवासी समुदाय को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। इस अनियंत्रित होती आदिवासी अस्तित्व और अस्मिता को धुंधलाने की साजिश के कारण आदिवासी समाज और उनके नेताओं में भारी विद्रोह पनप रहा है। जिस प्रांत में भाजपा लम्बे समय से एकछत्र शासक के रूप में है और वहां उसकी सुदृढ़ता ने समूचे देश में मजबूत धरातल तैयार किया, उस प्रांत में आदिवासी समुदाय की उपेक्षा के कारण उन्हें राजनीतिक जमीन बचाना मुश्किल होता दिख रहा है। यह न केवल प्रांत के मुख्यमंत्री श्री विजय रूपाणी व भाजपा अध्यक्ष श्री जीतू वाघानी के लिए चुनौती है बल्कि केन्द्र की भाजपा सरकार भी इसके लिए चिंतित है। यह न केवल इन दोनों के लिए बल्कि देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के लिए भी एक गंभीर मसला बनता जा रहा है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए प्रधानमंत्री ने प्रति माह गुजरात की यात्रा का जो संकल्प व्यक्त किया है और वे ग्यारह बार गुजरात की यात्रा कर चुके हैं, उससे जटिल होती समस्या को हल करने में सहायता मिल सकती है। समस्या जब बहुत चिंतनीय बन जाती हैं तो उसे बड़ी गंभीरता से मोड़ देना होता है। पर यदि उस मोड़ पर पुराने अनुभवी लोगों के जीये गये सत्यों की मुहर नहीं होगी तो सच्चे सिक्के भी झुठला दिये जाते हैं। 

भाजपा की आपसी अन्तर्कलह के साथ-साथ मूल प्रश्न गुजरात के आदिवासी समाज की उपेक्षा का भी है। अब जबकि चुनाव का समय सामने है यही आदिवासी समाज जीत को निर्णायक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली है। हर बार चुनाव के समय आदिवासी समुदाय को बहला-फुसलाकर उन्हें अपने पक्ष में करने की तथाकथित राजनीति इस बार असरकारक नहीं होगी। क्योंकि गुजरात का आदिवासी समाज बार-बार ठगे जाने के लिए तैयार नहीं है। इस प्रांत की लगभग 23 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की हैं। देश के अन्य हिस्सों की तरह गुजरात के आदिवासी दोयम दर्जे के नागरिक जैसा जीवन-यापन करने को विवश हैं। यह तो नींव के बिना महल बनाने वाली बात हो गई। राजनीतिक पार्टियाँ अगर सचमुच में देश का विकास चाहती हैं और ‘आखिरी व्यक्ति’ तक लाभ पहुँचाने की मंशा रखती हैं तो आदिवासी हित और उनकी समस्याओं को हल करने की बात पहले करनी होगी। 

गुजरात को हम भले ही समृद्ध एवं विकसित राज्य की श्रेणी में शामिल कर लें, लेकिन यहां आदिवासी अब भी समाज की मुख्य धारा से कटे नजर आते हैं। इसका फायदा उठाकर मध्यप्रदेश से सटे नक्सली उन्हें अपने से जोड़ लेते हैं। सरकार आदिवासियों को लाभ पहुँचाने के लिए उनकी संस्कृति और जीवन शैली को समझे बिना ही योजना बना लेती हैं। ऐसी योजनाओं का आदिवासियों को लाभ नहीं होता, अलबत्ता योजना बनाने वाले जरूर फायदे में रहते हैं। महँगाई के चलते आज आदिवासी दैनिक उपयोग की वस्तुएँ भी नहीं खरीद पा रहे हैं। वे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं। अतः गुजरात की बहुसंख्य आबादी आदिवासियों पर विशेष ध्यान देना होगा। पीएम ने आदिवासी काॅर्निवल में आदिवासी उत्थान और उन्नयन की चर्चाएं की और वे इस समुदाय के विकास के लिए तत्पर भी हैं। आदिवासियों का हित केवल आदिवासी समुदाय का हित नहीं है प्रत्युतः सम्पूर्ण देश व समाज के कल्याण का मुद्दा है और इस बार के गुजरात चुनाव इसकी एक सार्थक पहल बनकर प्रस्तुत हो, यह अपेक्षित है। गुजरात के आदिवासी क्षेत्रों में सुखी परिवार फाउंडेशन के द्वारा गणि राजेन्द्र विजयजी के नेतृत्व में बालिका शिक्षा एवं शिक्षा की दृष्टि से एक अभिनव क्रांति घटित हुई है। लेकिन आदिवासी समुदाय की शिक्षा राज्य एवं केन्द्र सरकार के लिए एक चुनौती का प्रश्न है। आदिवासी समुदाय में शिक्षा के स्तर को बढ़ाना एवं इसे सुनिश्चित करना जरूरी है भी इन चुनावों का मुद्दा बनना चाहिए।

इन दिनों गुजरात के आदिवासी समुदाय को बांटने और तोड़ने के व्यापक उपक्रम चल रहे हैं जिनमें अनेक राजनीतिक दल अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए इस तरह के घिनौने एवं देश को तोड़ने वाले प्रयास कर रहे हैं। ऐसे ही प्रयासों ने भिलीस्तान जैसी समस्या को खड़ा कर दिया है। एक आंदोलन का रूप देकर आदिवासी समुदाय को विखण्डित करने की कोशिश की जा रही है। इस भिलीस्तान आंदोलन को नहीं रोका गया तो गुजरात का आदिवासी समाज खण्ड-खण्ड हो जाएगा। इसके लिए तथाकथित हिन्दू विरोधी लोग भी सक्रिय हैं। इन आदिवासी क्षेत्रों में जबरन धर्मान्तरण की घटनाएं भी गंभीर चिंता का विषय है। यही ताकतें आदिवासियों को हिन्दू मानने से भी नकार रही है और इसके लिए तरह-तरह के षडयंत्र किये जा रहे हैं। जबकि सर्वविदित है कि आदिवासी हिन्दू संस्कृति का ही अभिन्न अंग है और वे भारतीय संस्कृति की एक अमूल्य विरासत एवं थाती है। उनके उज्ज्वल एवं समृद्ध चरित्र को धुंधलाकर राजनीतिक रोटियां सेंकने वालों से सावधान होने की जरूरत है। हर धर्म अपना-अपना भगवान उन्हें थमाने को आतुर है। हिन्दू विरोधी उन्हें हिन्दू नहीं मानते तो हिंदुत्ववादी लोग उन्हें मूलधारा यानी हिंदुत्व की विकृतियों और संकीर्णताओं से जोड़ने पर तुले हैं और उनको रोजी-रोटी के मुद्दे से ध्यान हटा कर अलगाव की ओर धकेला जा रहा है। भिलीस्तान की आग इन्ही सब विसंगतियों एवं विदु्रपताओं का संगठित स्वरूप है। इस विद्रुपता को दूर करने के लिए व्यापक प्रयत्न करने होंगे। तेजी से बढ़ता आदिवासी समुदाय को विखण्डित करने का यह हिंसक दौर इन चुनावों का मुख्य मुद्दा बन सकता है और एक समाज और संस्कृति को बचाने की मुहिम इन विधानसभा चुनावों की जीत का आधार बन सकती है। जरूरत सिर्फ सार्थक प्रयत्न की है। भला सूरज के प्रकाश को कौन अपने घर में कैद कर पाया है? लक्ष्य पाने के लिए इतनी तीव्र बेचैनी पैदा करनी है जितनी नाव डूबते समय मल्लाह में उस पार पहुंचने की बेचैनी होती है। गुजरात के आगामी विधानसभा चुनाव आदिवासी समाज के लिए एक ऐसा संदेश हो जो उनके जीवन मूल्यों को सुरक्षा दे और नये निर्माण का दायित्व ओढ़े।


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(ललित गर्ग)
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