नयी दिल्ली, 22 मार्च, सरकार ने आज लोकसभा में कहा कि अधिकारों का विभाजन न्यायपालिका पर भी उसी तरह लागू है जिस तरह लोकतंत्र के अन्य स्तंभों पर है और अदालतों के प्रबंधन तथा उनमें मामलों के निस्तारण में सरकार की कोई भूमिका नहीं है। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने प्रश्नकाल में उक्त टिप्पणी तब की जब कुछ सदस्यों ने दावा किया कि उच्चतम न्यायालय अपने कुछ फैसलों से संसद के कानून बनाने के अधिकार में हस्तक्षेप कर रहा है। प्रसाद ने उच्चतम न्यायालय द्वारा संसद से पारित राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग :एनजेएसी: कानून को रद्द किये जाने की पृष्ठभूमि में यह भी कहा कि जब देश राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, तीनों सेनाओं के प्रमुखों आदि में प्रधानमंत्री की भूमिका को स्वीकार कर सकता है तो कानून मंत्री के माध्यम से न्यायाधीशों के रूप में उत्कृष्ट लोगों की नियुक्ति में उन पर भरोसा क्यों नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली को समाप्त करने के लिए संसद ने एनजेएसी कानून पारित किया था। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया और सरकार ने इसे स्वीकार किया लेकिन इस फैसले पर सरकार की आपत्तियां हैं। प्रसाद के मुताबिक अदालत ने इसके पीछे वजह बताई कि किसी वादी को लग सकता है कि न्यायाधीश की नियुक्ति ऐसी समिति ने की है जिसमें कानून मंत्री सदस्य हैं और इसलिए ऐसी समिति निष्पक्षता से काम नहीं कर सकती। प्रसाद ने कहा कि काूनन मंत्री उस समिति में प्रधानमंत्री के नुमाइंदे के तौर पर होता। उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सदन में उपस्थित थे। भाजपा के संजय जायसवाल ने कहा कि उच्चतम न्यायालय क्रिकेट प्रबंधन से लेकर मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं जैसे विषयों तक में अपने फैसले देकर कानून बनाने की प्रक्रिया में प्रवेश कर रहा है।
गुरुवार, 23 मार्च 2017
अधिकारों का विभाजन न्यायपालिका के लिए भी लागू : रविशंकर प्रसाद
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