विश्व जल दिवस ;22 मार्च पर विशेषः जल का जीवन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 22 मार्च 2017

विश्व जल दिवस ;22 मार्च पर विशेषः जल का जीवन

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22 मार्च विश्व  जल दिवस है। हर दिन का अपना एक विशेष महत्व होता है ओर उस दिन हम अपने जीवन के उस पक्ष को मजबूत करने हेतु कार्य करते हैं। वास्तव में जल के सर्वाधिक विस्तृत भंडार समुद्र का पानी जीवनोपयोगी नहीं है। उसे पीने योग्य बनाना आसान नहीं है। धरातल पर 71 प्रतिशत पानी होते हुए भी वास्तव में कुल उपलब्ध पानी का लगभग एक प्रतिशत पानी ही जीवन रक्षक है इसलिए पानी का महत्व और बढ़ जाता है। पानी के बिना मनुषय ही नहीं वनस्पतिए जीव जन्तु कोई भी जीवित नहीं रह सकेगा। पानी की महत्ता वास्तव में उस समय पता चलती है जब हमें बहुत प्यास लगी हो और पीने का पानी आस पास उपलब्ध न हो। तब हम दो घूंट पानी के लिए ही छटपटाने लगते हैं और ऐसा लगता है कि यदि तुरन्त पानी न मिला तो हमारे प्राण संकट में पड़ जायेंगे। आधुनिकरण की ओर अग्रसर सभ्यता व बढती जनसंख्या के कारण जंगल कम होते जा रहे हैं। मशीनीकरण से प्रदूषण व तापमान बढ़ रहा है। जलवायू परिर्वतन के कारण वर्षा कम हो रही है जिससे नदियों में जल घटता जा रहा है। फिर भी नदियों में कुड़ा.कर्कटए गन्दगी व जहरीला कचरा डाला जा रहा है। जल आपूर्ति के लिए नलकूपों द्वारा अधिक भूजल दोहन के कारण भू.जल स्तर गिरता जा रहा है। देश के 5723 जल ब्लाक में अधिकांश तेजी से डार्क जोन में होते जा रहे हैं और सन् 2025 तक 60 प्रतिशत से अधिक ब्लाक डार्क जोन में चले जाने का खतरा है। पूरे विश्व में घोर पेय जल संकट उत्पन्न रहा है और प्राणी का जीवन खतरे में पड़ रहा है। 


पृथ्वीए जो चारों ओर पानी से घिरी हैए वही अब पानी के अभाव से त्रस्त होती जा रही है। अब तक वैज्ञानिकों ने जिन ग्रहों की खोज की हैए वहां पानी नहीं है। विश्व के सबसे धनी खाड़ी के देश आजकल अपने यहां दुनिया की सबसे सस्ती व सर्वाधिक महत्वपूर्ण वस्तु पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यहां तेल तो हर जगह है लेकिन पानी की कीमतें जिस तेजी से बढ़ रही हैं उसका कोइ्र अनुमान भी नहीं लगा सकता। इन देशों के आस पास समुद्र तो है लेकिन उसका पानी न तो पिया जा सकता है और न ही उससे खेती हो सकती है। ने आधुनिक तकनीक अपनाई है जो केवल 20 प्रतिशत पानी खेतीबाड़ी के लिए उपयोग करता है। किस फसल को कितना पानी देना चाहिए उसकी  बूंदों तक का हिसाब रखा जाता है। दुनिया के अन्य देश जहां पानी की कमी हैए वे इस तकनीक को इस्त्रायल से प्राप्त करते हैं। भारत ने भी इस मामले में इस्त्रायल को अपना आदर्श बनाया है। दजला और फुरात नदी पर तुर्की ने तीनए सिरिया और इराक ने दो बांध बनाकर अपनी समस्या हल की है लेकिन इनमें किसी प्रकार का आपसी विवाद खाड़ी के देशों को पानी के लिए महायुद्व की ओर धकेल देगा। जापान के क्योटो शहर में सम्पन्न विश्व जल फोरम की बैठक में जल समस्या के हल हेतु लगभग 100 संकल्प पारित किए गये जिसमें 182 देशों के लगभग 24000 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। 

सन् 2025 तक हमारी जल खपत 1530 अरब घन मीटर हो जाएगी परन्तु वर्षा के बिना हमारे पास कोई दूसरी जल सम्पदा नहीं है इसलिए वर्षा की एक एक बूंद को बचाना और धरती में रिचार्ज करना ही सबसे जरूरी कार्य हो जाता है। वर्ष 2005 में अलीगढ़ में प्रकाशित समाचार अनुसार एक सप्ताह में पानी के अभाव में हजारों पक्षी मर गए थे। न्यायमूर्ति शम्भूनाथ श्रीवास्तव ने इसका संज्ञान लेते हुए सरकार से जानकारी ली तब यह तथ्य सामने आया कि उत्तर प्रदेश में 1952 में 392000 हैक्टेयर भूमि में तालाब थे जिनमें से अब अधिकांश भवनए कल कारखाने या खेती में प्रयुक्त हो चूके हैं। कृषि में पानी की खपत बहुत अधिक होती है। खारे व क्षारीय पानी के कारण उपजाऊ भूमि भी बंजर बन जाती है। खेती के लिए कम पानी से अधिक सिंचाई ही एक मात्र हल है और इसके लिए सूक्ष्म सिचाई प्रणाली व फव्वारा पद्धति बहुत कारगर सिद्व हुई है। पानी की बर्बादी न करते हुएए वर्षा जल संग्रहणए वाटर हारवैस्टिंग व रिर्चाजर के द्वारा पानी की कमी को कुछ कम किया जा सकता है। अधिक पानी की खपत वाली फसलों धान व गन्ना की खेती कम की जाये तथा तिलहन व दलहन की ओर अधिक ध्यान दिया जाये तो पानी भी बचेगा और देश को भी लाभ होगा। 

पीने के पानी का यह संकट दिन प्रतिदिन गहराता जा रहा है। छोटे स्थानों की अपेक्षा महानगरों में बहुत विकट परिस्थितियां हैं। दिल्ली को प्रतिदिन 1950 मिलियन गैलन पानी चाहिए किन्तु दिल्ली जल बोर्ड 850 मिलियन गैलन पानी ही उपलब्ध करा पाता है। दिल्ली में  6000 लीटर पानी निशुल्क दिया जाता था जिसे प्रथम जनवरी 2010 से शुन्य कर दिया गया तथा पानी दर पहले से 3 गुणा कर दी गई और 31 जनवरी तक पानी मीटर लगवाने अनिवार्य कर  दिए गए। पाईप लगाकर कार धोने पर जुर्माने का प्रावधान भी किया गया है। मुम्बई में अक्तूबर.नवम्बर 2009 में पानी सप्लाई में 30 प्रतिशत कटौती की गई थी जो समय समय पर बढ़ाई भी जाती है। हरियाणा सरकार ने भी गत दिनों शहरी व गा्रमीण जल नीति अधीन सभी कनैक्शन धारकों के लिए मीटर अनिवार्य कर दिए हैं।भले ही  ष्आपष् सरकार ने दिल्ली में 20 हजार लीटर पानी मुफ्त देने की घोषणा की हो परन्तु यह व्यावहारिक नहीं है और जल बर्बादी को बढ़ावा मिलगा जिससे पानी की कमी और बढ़ेगी। एक अनुमान अनुसार अगले 20 वर्षों में देश में जल की मांग 50 प्रतिशत बढ़ जायेगी जबकि 1947 में देश में मीठे जल की उपलब्धता 6000 घनमीटर थी जो 2000 में घटकर मात्र 2300 घनमीटर रह गई और 2025 तक 16000 घन मीटर हो जाने का अनुमान है। भारत में वर्षा जल का मात्र 15 प्रतिशत जल ही उपयोग होता हैए शेष समुद्र में चला जाता है। 

स्वच्छ जल की अनुपलब्धता कई क्षेत्रों में तनाव उत्पन कर रही है। उतरी अफ्रीका और पश्चिमी एशिया में स्थिति गम्भीर हो चुकी है। संसार की लगभग दो तिहाई आबादी उन देशों में रह रही है जहां पानी की बहुत कमी है। गली मोहल्लों के सार्वजनिक नलों पर पानी के लिए झगडे़ सामान्य बात है परन्तु यह सब यहीं तक सीमित नहीं है बल्कि हरियाणा.पंजाब का भाखड़ा.ब्यास जल बंटवारे के लिए जल विवादए दिल्ली.हरियाणा का यमुना जल विवादए कर्नाटक.तामिलनाडू का कावेरी जल विवाद वर्षों पुराना है। भारत पाक सम्बन्धों में आतंकवाद जैसे विषयों के अतिरिक्त जल बंटवारा भी एक विवादित विषय है और पाक योजना आयोग के अनुसार रावी जल बंटवारा सही नहीं किया तो भारत पाक के बीच युद्व हो सकता है। युद्व की यह बात भी नई नहीं है क्योंकि जल.वैज्ञानिकों की चेतावनीपूर्ण भविष्यवाणी अनुसार यदि तीसरा विश्वयुद्ध हुआ तो वह पानी के नाम पर होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के वर्ष 2004 के एक सर्वेक्षण के अनुसार पूरी दुनिया के एक अरब से अधिक लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिलता है और यह संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है । 2031 तक वर्तमान से चार गुणा अघिक पानी की आवश्यकता होगी।  बहुत से लोग यह नहीं जानते कि वे अनजाने में बहुत पानी बरबाद करते हैं। विख्यात जल विशेषज्ञ प्रो0 असित बिस्वास के अनुसार ष्बीते दो सौ वर्षांे के मुकाबले आने वाले 20 वर्षांे में जल प्रबन्धन की आवश्यकता अधिक होगी।  

जल बहुत रोगों में दवा का काम भी करता है। ठंडे ओर गर्म जल में अलग अलग औषधिय गुण हैं।  गर्म पानी का लाभ वात रोगों जैसे जोड़ों का दर्दए घुटने का दर्दए गठियाए कंधे की जकड़न में होता है। पानी का कोई विकल्प नहीं। प्यास लगने पर पानी ही पीएं कोल्ड ड्रिंक्स आदि नहीं । अगर हम पानी की बचत नहीं करेंगे तो ष्बिन पानी सब सूनष् अनुसार एक दिन ऐसा आएगा कि पानी के बिना हम तड़फने लगेंगे। पानी के महत्व को न समझ पाने और इसके अनियमित व अधिक दोहन एवं प्रदूषण के चलते ही आज सभी देशों को पानी के संकट का सामना करना पड़ रहा है। यदि सब लोग मिलकर यह संकल्प कर लें कि हम पानी को बरबाद नहीं होने देंगे तो वहां कभी भी पानी की कमी नहीं होगीे अन्यथा आने वाली पीढ़ी की क्या दशा होगीए हमें सोचना होगा। पानी की बर्बादी के प्रति जागरूकता के लिए ही संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2013 को अन्तर्राष्ट्रीय जल संरक्षण वर्ष घोषित किया था और हर वर्ष 22 मार्च को ष्ष्विश्व जल दिवसष्ष् के प्रतीक रूप में याद किया जाता है। 






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---रमेश गोयल---
संपर्क : 9416049757
लेखक पर्यावरण एवं जल संरक्षण को समर्पित कार्यकर्ता तथा जल स्टार व अनेक पुरुस्कारों से सम्मानित है। 

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