- भूमि अधिकार सत्याग्रह के तहत आयोजित दो दिवसीय अनशन में लेंगे भाग.
पटना 20 अप्रैल, चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष के अवसर पर भाकपा-माले द्वारा चल रहे भूमि अधिकार सत्याग्रह के तहत 21-22 अप्रैल को पश्चिम चंपारण के बेतिया में दो दिवसीय अनशन में भाग लेने के लिए माले के पूर्व सांसद व अखिल भारतीय खेत व ग्रामीण मजदूर सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष काॅ. रामेश्वर प्रसाद और तरारी से माले के विधायक सुदामा प्रसाद आज बेतिया रवाना हो गये. इस कार्यक्रम में माले महासचिव काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य, धीरेन्द्र झा, वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता सहित पार्टी के वरिष्ठ नेता भाग लेंगे. यह सत्याग्रह भाजपा और नीतीश सरकार द्वारा गांधी के सत्याग्रह की मूल आत्मा को खत्म करने के खिलाफ और दलित-गरीबों के चास-वास की जमीन, बटाईदारों के पंजीकरण, मजदूर-किसानों के बकाये का भुगतान आदि सवालों पर आयोजित किया जा रहा है. माले द्वारा आयोजित दो दिवसीय अनशन में दलित-गरीबों से विभिन्न प्रकार के आवेदन भरवाए जा रहे हैं, जैसा गांधी जी ने नीलहों के खिलाफ आंदोलन के दौरान किसानों का बयान दर्ज करवाकर किया था. कई तरह के आवेदनों में 6 आवेदन महत्वपूर्ण हैं. जिन गरीबों के पास चास-वास की जमीन तो है, लेकिन परचा नहीं है, वे सरकार से परचा की मांग कर रहे हैं. जिन गरीबों के पास परचा है, लेकिन जमीन पर दखल-कब्जा नहीं है, वे सरकार से दखल-कब्जा दिलवाने की मांग कर रहे हैं. ठीक उसी प्रकार, बटाईदार किसान अपने पंजीयन के लिए आवेदन भर रहे हैं. वन भूमि वाले इलाके में वन अधिकार कानून के तहत और सीमांचल के इलाके में सिकमी बटाईदारों से भी आवेदन भरवाये जा रहे हैं. ये आवेदन अनुमंडलाधिकारी को सौंपे जायेंगे. 2 से 8 मई तक पूरे बिहार के सभी प्रखंड मुख्यालयों पर शिविर आयोजित करके आवेदन भरवाये जायेंगे.
माले ने कहा है कि बिहार सरकार यदि गांधी के सत्याग्रह के प्रति सचमुच गंभीर है, तो डी बंद्योपाध्याय आयोग द्वारा बताई गयी 21 लाख एकड़ से अधिक सीलिंग, भूदान, गैरमजरूआ, कैसर-ए-हिंद, खासमहाल, बेनामी आदि जमीन को अधिग्रहित करके भूमिहीनों के बीच वितरित करे. यही गांधी जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी. लेकिन इन कार्यों की बजाए नीतीश सरकार इसे महज आयोजन में तब्दील कर देने में लगी है, यहां तक कि मोतिहारी में बकाये के भुगतान की मांग कर रहे मजदूर-किसानों पर लाठी-गोली चलवा रही है. पश्चिम चंपारण में सामंती इस्टेटों का मनोबल फिर से आसमान छू रहा है. ऐसे में नीतीश का चंपारण सत्याग्रह की शतवार्षिकी मनाना महज ढकोसला प्रतीत होता है.
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