प्रद्योत कुमार,बेगुसराय । काली करतूत की काली कमाई के बीच रोजगार का साधन पनप रहा है या यूँ कह सकते हैं कि पनप गया है।जब से बिहार सरकार ने बिहार में शराब बंदी लागू की है कुछ ख़ास बेरोज़गार लोगों की अच्छी मोटी कमाई होने लगी है और उन्हें रोज़गार का एक नया साधन मिल गया है।आये दिनों अक्सर या तकरीबन रोज़ ही बिहार में कहीं ना कहीं आप न्यूज में देखते या अख़बारों में पढ़ते होंगे कि 400 बोतल शराब धराया कहीं 200 कार्टून शराब पुलिस ने पकड़ी,बालू से लदे ट्रक में मिली शराब,पकड़ाया वैगेरह।जनाब जब पुलिस इतनी मुश्तैदी से काम कर रही है तो ये शराब आ कहाँ से जाती है लोग चोरी छिपे पी कैसे रहे हैं?इसका मतलब है कि कहीं न कहीं सिस्टम में सुराख़ तो है।अगर लोग पीते नहीं हैं तो शराब क्यों लायी जाती है।ये अलग बात है कि शराब आम जन के लिए उपलब्ध नहीं है तो दूसरी तरफ इस बात से भी इनकार नहीं की जा सकती है कि शराबबंदी ने शराब के काले रोजगार को जन्म दिया है।आख़िर इतनी चौकसी के बावजूद भी शराब का ये काला कारोबार फल फूल कैसे रहा है ?ये एक गंभीर सवाल खड़ा करता है बिहार की पुलिसिया व्यवस्था पर।पहले शराब के लिए पीने वाले को जाना पड़ता था अब शराब ख़ुद चल के आती है पीने वाले के पास,बस यही अंतर है तब और अब में।जिसका जैसा मैनेजमेंट है उसका उतना बड़ा काला करोबार है।अब सवाल ये उठता है कि क्या शराब के इस काले करोबार को सरकार या सरकारी सिस्टम नियंत्रित कर पाएगी या फिर बिहार के बेरोजगारों को शराब के काले रोजगार में झोंकती रहेगी।इतिहास साक्षी है जब जब और जहाँ जहाँ शराब बंदी हुई है उस जगह ने शराब माफियाओं को जन्म दिया है।जनाब ये ऐसी बात है कि शराब बंदी नहीं थी तो भी सिस्टम से सिस्टम को मोटी कमाई थी और जब शराब बन्दी है तो भी सिस्टम से सिस्टम को मोटी कमाई है यानी " चित भी मेरी और पट भी मेरी।"
गुरुवार, 13 अप्रैल 2017
बेगुसराय : "शराबबंदी" ने दिया नए रोज़गार को जन्म
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