नयी दिल्ली 25 अप्रैल, सूचना एवं प्रसारण मंत्री वेंकैया नायडू ने छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में नकसलियों द्वारा केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवानों पर हमले को कायरतापूर्ण एवं निंदनीय बताते हुये इस मुद्दे पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की चुप्पी पर सवाल उठाया है। श्री नायडू ने आज यहां एक बयान जारी कर कहा कि 24 अप्रैल को हुये इस हमले से राष्ट्र स्तब्ध है। जवानों पर हमला उस समय किया गया जब वे विकास कार्यों के लिए रास्ता साफ कर रहे थे। उन्होंने कहा, “शहीद और घायल सीआरपीएफ जवान राष्ट्रहित में काम कर रहे थे। यह देश के लिए सर्वोत्तम बलिदान है। उन प्रतिबद्ध जवानों के परिवारों को केंद्र एवं राज्य सरकारों की ओर से उच्चतम मुआवजा दिया जायेगा। दोनों सरकारें इस तरह के विवेकहीन कृत्यों को समाप्त करने के लिए मिलकर काम करेंगी।” उन्होंने कहा कि जब पूरा देश इस तरह के नरसंहार और हिंसा से स्तब्ध है मानवाधिकारों के तथाकथित पक्षधर कल से ही चुप्पी साधे हुये हैं। पुलिस के हाथों किसी उग्रवादी या आतंकवादी के मारे जाने पर ये कार्यकर्ता आक्रामक रुख अख्तियार कर लेते हैं, लेकिन जब अंडरग्राउंड रहकर काम करने और हत्या कर भाग जाने वालों के हमलों में बड़ी संख्या में जवानों और निरपराध लोगों के मारे जाने पर वे खामोशी की ओट ले लेते हैं। श्री नायडू ने सवाल किया कि क्या मानवाधिकार सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए हैं जो अपनी घिसी-पिटी सोच को आगे बढ़ाने के लिए हिंसा का रास्ता अपनाते हैं, और सुरक्षा बलों तथा आम लोगों के लिए यह नहीं है। मानवाधिकार कार्यकर्ता अब चुप क्यों हैं। केंद्रीय मंत्री ने कहा, “मैं यह नतीजा निकालने के लिए बाध्य हूं कि मानवाधिकार के तथाकथित हिमायतियों द्वारा इस तरह की हिंसक कार्रवाई को एक रणनीति के तहत प्रोत्साहित किया जा रहा है जिसका उद्देश्य केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा सबसे गरीब व्यक्ति तक विकास का लाभ पहुंचाने के प्रयास से बनी सकारात्मक धारणा को पटरी से उतारना है।” उन्होंने कहा कि इस तरह के हिंसक कृत्यों और तथाकथित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ मजबूत जनमत तैयार करने की जरूरत है।
मंगलवार, 25 अप्रैल 2017
सुकमा पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की चुप्पी पर वेंकैया ने उठाये सवाल
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