- पंडित वाचस्पति मिश्र के समकालीन है।
- माँ परमेश्वरी के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता !
मधुबनी/अंधराठाढी (मो.आलम) । जो भी भक्त माता परमेश्वरी का सच्चे ह्रदय से मन्नते मांगता है उसकी मन्नते अवश्य पूरा होती है। उक्त बाते कहना है मंदिर के पुजारी पंडित अशोक झा का । सालो भर से देश के कोने कोने से श्रद्धालु भक्तो का यहॉ आना लगा रहता है। खास कर के दुर्गा पूजा अवसर पर काफी भीड़ रहती है, मां परमेश्वरी सिद्धपीठो में एक है। यहॉ तंत्र साधना के लिए दूर दराज के साधक पहुंचते है। सुदूर नेपाल, सहरसा, सुपौल दरभंगा ,पुर्णिया से भी श्रद्धालुभक्त अधिकाधिक संख्या में आते है। माता परमेश्वरी का दूसरा नाम मनोकामना माई भी कहते है। माता का यहॉ कोई प्रतिमा नहीं है। पिण्डा स्वरूपा है। अंचरी से ढकी फूलो से सुसज्जित जैसे लाल चुन्दरी से लिपटी कोई बैठी लगती हो । माता परमेश्वरी के स्थापना काल का कोई ठोस प्रमाण नहीं है। गॉव के पंडित महेश झा के अनुसार किवंदंतिया है कि पंडित वाचस्पति मिश्र के ही समकालीन है । माता के दरवार में दरभंगा व मधुबनी जिला के शायद हीं कोई आला अफसर हों जो यहां पहुॅच कर पूजा अर्चना न की हो । वर्ष 1974 में तत्कालीन रेल मंत्री स्व0 ललित नारायण मिश्र ने मंदिर का जिणोद्धार कराया था। परिसर में तत्कालीन आईपीएस ऑफिसर अरूण चौधरी एवं अरूण कुमार मल्होत्रा पुलिस सार्जेंट रामजानकी मंदिर ,ननौर गॉव के लूटन झा ने राधाकृण के मंदिर , सिमरा गांव के शिवनारायण दास ने हनुमान मंदिर इसके अलावे गॉव के दाताओ ने काली मंदिर, शिव मंदिर, गणेश मंदिर आदि का निर्माण कराया ।
ठाढी परमेश्वरी स्थान पर्यटक स्थलो की सूची में नहीं -
ठाढी गांव में हरिअम्बे व दरिहरे मूल के अधिकांश ब्राहमणो की आबादी है। अधिकांश लोगो के घरो में कोई देवी देवता स्थापित नहीं है। वे लोग मां परमेश्वरी को हीं कुल देवी मानते है। राज्य सरकार स्तर पर दो वर्ष पूर्व ठाढी परमेश्वरी स्थान को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की बात जोर शोर से उठी थी। पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए सूवे के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने 55 लाख रूपये का आवंटन किया था। आवंटित राशि से मंदिर परिसर का सौन्दर्यीकरण और तालाब का उद्दार, पर्यटको की सुविधा मद में राशि का खर्च होना था। परन्तु आज तक कोई सुधारीकरण नहीं हुआ ।
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