पटना 31 मई, यह सर्वदलीय श्रद्धांजलि सभा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता, पूर्व राज्य सचिव एवं पूर्व एम.एल.सी. की दुखद मृत्यु पर गहरा शोक व्यक्त करती है और उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करती है। बद्री नारायण लाल का देहान्त वेल्लौर (तमिलनाडु) अस्पताल में 21 मई, 2017 को 79 वर्ष की अवस्था में हो गया। उनका जन्म 13 जून, 1937 को वत्र्तमान शेखपुरा जिला के रामपुर गाँव में हुआ था। उनका बचपन आर्थिक संकट में गुजरा । तमाम पारिवारिक संकटों को झेलते हुए उन्होंने एम.ए. तक की षिक्षा ग्रहण की। इसके बाद उन्होंने शेखपुरा स्थित एक प्रतिष्ठित उच्च विद्यालय में षिक्षक के रूप में नियुक्ति पाई। इसी दौरान वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के दिवंगत नेता का॰ जनार्दन चैधरी के संपर्क में आये और माक्र्सवाद-लेनिनवाद की विचारधारा से प्रभावित होकर 1961 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली। तब से का॰ बद्री नारायण लाल जीवन पर्यंत भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने रहे। षिक्षक की नौकरी मिल जाने से उनके परिवार और शुभचिन्तकों में यह प्रसन्नता खिल उठी कि अब आर्थिक संकट से उन्हें और उनके परिवार को मुक्ति मिल जायगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जल्द ही वे षिक्षक की नौकरी छोड़कर अपनी पार्टी के पूरावक्ती कार्यकत्र्ता बनकर हजारीबाग चले गये। वे हजारीबाग में मजदूर आंदोलन और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के संगठन से गहरे रूप से जुड़ गये। शीघ्र ही वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की हजारीबाग जिला परिषद के सचिव चुन लिये गए।
माक्र्सवाद-लेनिनवाद की विचारधारा के प्रति समर्पण, अगाध कत्र्तव्यनिष्ठा और उनकी कुषल सांगठनिक क्षमता से प्रभावित होकर पार्टी के राज्य नेतृत्व ने पार्टी का काम करने के लिए उन्हें हजारीबाग जिला से पटना राज्यकेन्द्र में बुला लिया। यहां भी वे अपनी कत्र्तव्य निष्ठा, अनुषासन, पार्टी के प्रति समर्पण की बदौलत पार्टी के राज्य सचिवमंडल के सदस्य बने। इसके बाद वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव तथा पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य चुने गुए। का॰ बद्री नारायण लाल 1992 से 2004 तक लगातार दो बार बिहार विधान परिषद के सदस्य भी चुने गए। का॰ बद्री नारायण लाल का जीवन आंदोलनों और संघर्षों से भरा रहा। उन्होंने गरीबी, अभाव, सामंती शोषण और उत्पीड़न तथा पंूजीवादी लूट-खसोट की पीड़ा को बहुत करीब से देखा और भोगा था। इसलिए हर तरह के शोषण से मानव समाज को मुक्ति दिलाने की छटपटाहट उनमें थी। माक्र्सवाद-लेनिनवाद का रास्ता उन्हें मिल गया था। इस उद्देष्य की प्राप्ति के लिए होने वाले आंदोलनों और संघर्षों में जहां भी और जब भी भाग लेने का उन्हें मौका मिला वे बेधड़क कूद पड़े । जन संघर्षों और जन आंदोलनों के क्रम उन्हें कई बार पुलिस की लाठियाँ खानी पड़ीं, गिरफ्तार होना पड़ा और जेल के षिकंजों में बन्द होना पड़ा।
संकटों में जीने की अद्भुत कला का॰ बद्री नारायण लाल में थी। आमतौर से संकटों से भरा जीवन लोगों के लिए बोझ बन जाता है; लेकिन का॰ बद्री नारायण लाल संकटों की बीहड़ झाड़ी में रहते हुए भी अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए जीते रहे। कभी अपने जीवन को बोझ नहीं माना। आर्थिक संकट हो, पारिवारिक संकट हो, शारीरिक संकट हो या मानसिक संकट हो उन्होंने अपने उन संकटों को किसी के सामने नहीं प्रकट होने दिया। उनका सारा जीवन सादा, सरल और सुलभ रहा। पार्टी के उच्च पदों पर तथा बारह वर्षों तक विधायक रहने के बावजूद उनके रहन सहन, वेषभूषा, आचार विचार में कोई फर्क नहीं आया। उपभोक्तावादी संस्कृति कभी भी उनके पास फटक नहीं पाई। जातियता, धर्मांधता, अंधविष्वास, साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार और हर प्रकार के शोषण से उन्हें संख्त नफरत थी। इसीलिए इन दुर्गुणों के खिलाफ सचेत और संघर्षषील रहे। शोषितपीड़ित, किसान, मजदूर, मेहतनकष तथा समाज के अन्य कमजोर वर्ग उनके आंदोलन के प्रिय पात्र रहे। वह बहुत ही मिलनसार स्वभाव के थे। इसीलिए साधारण व्यक्ति भी बेझिझक उनसे मिला करते थे। लोगों से मिलते समय जाति, धर्म, राजनीतिक सम्बद्धता का भेदभाव उनमें नहीं था। मगर विचारधारा स्तर पर उन्होंने कभी भी किसी प्रकार का समझौता नहीं किया। का॰ बद्री नारायण लाल के नेतृत्व में मजदूर आंदोलन, सामाजिक न्याय का आंदोलन, दलित आंदोलन, जनवादी आंदोलन और वामपंथी आंदोलन को बिहार में एक नयी ऊँचाई मिली। उनके राजनीतिक आंदोलन के कई पक्ष थे। वैचारिक संघर्षों में वे अकेले भी कभी पीछे नहीं रहें। वाम-जनवादी विकल्प के निर्माण के आंदोलन में वामपंथी दलों और नेताओं के साथ संघर्ष करते दिखे। विभिन्न जन समस्याओं को लेकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं और कार्यकत्र्ताओं के बीच में लड़ते दिखाई पड़े, तो कभी जन समस्याओं और लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के प्रष्न पर वाम-जनवादी दलों और शक्तियों के व्यापक आंदोलन में भी उन्हें देखा गया । उनकी मृत्यु से वामपंथी आंदोलन, जनवादी आंदोलन, किसान और मजदूर आंदोलन की अपूरणीय क्षति हुई है। का॰ बद्री नारायण लाल ने अपने संघर्षपूर्ण जीवन की बहुमूल्य गाथा को लिपिबद्ध नहीं किया। अब उनकी स्मृतियाँ ही पूरे समाज को प्रेरणा देती रहेगी। जिस उद्देष्य के लिए वे आजीवन संघर्ष करते रहे उस पूरा होना अभी बाकी है, उसे पूरा करने का संकल्प लेते हुए श्रद्धांजलि सभा में शामिल हमलोग का॰ बद्री नारायण लाल को हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
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