पटना, 27 मई। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव सत्य नारायण सिंह ने नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के केन्द्रीय शासन के तीन साल पूरे होने पर अपनी निम्नलिखित प्रतिक्रिया प्रेस को आज जारी की। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार के शासन के तीन साल पूरे होने पर भारतीय जनता पार्टी सहित संघ परिवार और मोदी सरकार जष्न मना रही है। वास्तव में इनका यह जष्न नरेन्द्र मोदी की वादा खिलाफी के तीन साल पूरे होने का जष्न हैं, इसके अलावे और कुछ नहीं है। अपनी केन्द्र सरकार की झूठी और भ्रामक उपलब्धियाँ गिनाकर भारतीय जनता पार्टी के नेता देष की जनता की आँखों में धूल झोंक रहे हैं ताकि जनता उनकी वादा खिलाफियों को भूल जाय। लेकिन जनता को आज भी यह याद है कि पिछले लोकसभा चुनाव अभियान के दौर में पटना के गाँधी मैदान में भाजपा की एक रैली को संबोधित करते हुए नरेन्द्र मोदी ने यह वादा किया था कि अगर भाजपा शासन में आयेगी तो हर साल दो करोड़ युवकों को नौकरी दी जायेगी। लेकिन आँकड़े कहते हैं कि 2015 में देष में कुल एक लाख पैंतीस हजार युवकों को ही नौकरी मिली। हालाँकि उस अवधि में कार्यरत युवकों को ही नौकरी मिली। हालाँकि उस अवधि में कार्यरत लोगों की संख्या घटी, क्योंकि कुछ की मौत हो गई और किुछ रिटायर कर गये। नरेन्द्र मोदी ने यह भी वादा किया कि विदेषों में बैंकों में देष का बहुत कालाधन है। उनकी सरकार बनी तो कालेधन को देष में लायेगी और हर व्यक्ति के बैंक खाते में 15-20 लाख रुये जमा कर दिये जायेंगे। इससे गरीबी मिटेगी। देष की जनता इस मौके पर नरेन्द्र मोदी से पूछ रही है कि पिछले तीन वर्षों के अपने शासन काल में कितने कालेधन विदेष से लाये गये। काला धन लाने की बात तो दूर मोदी सरकार विदेषों में कालाधन रखने वालों के नाम बताने से भी कतरा रही है।
देष के किसानों की दुर्दषा पर घड़ियाली आँसू बहाते हुए मोदी ने वादा किया था कि किसानों की फसलों के लागत व्यय का डेढ़ गुना उन फसलों की कीमत दी जायेगी। देष के किसान मोदी सरकार से पूछ रहे हैं कि कहाँ और किस फसल की कीमत उसके लागत व्यय से डेढ़ गुना ज्यादा मूल्य दिया जा रहा है। सत्ता संभालते ही मोदी ने घोषणा की, ‘सबका साथ, सबका विकास,’ लेकिन इनके शासन काल में यह देखा जा रहा है कि सकल घरेलू उत्पाद में कामगारों का हिस्सा घट रहा है और उद्योपतियों एवं व्यावसायों का हिस्सा बढ़ रहा है। समाज में आर्थिक असमानता और क्षेत्रिय असंतुलन तेजी से बढ़ता जा रहा है। आम आदमी पर आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा है। दूसरी ओर देषी-विदेषी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों, कारपोरेट घरानों और अन्य मुनाफाखोरों को रियायतें और छूट पर छूट बढ़ती जा रही है। किसान ऋणग्रस्तता में डूबे हुए हैं। ऋणग्रस्तता से किसानों की मुक्ति के लिए केन्द्र सरकार बेफिक्र है। दूसरी ओर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लाखों करोड़ रूप्ये ऋण के रूप में बड़े उद्योगपतियों के यहां पड़े हुए जिसे एनपीए (डुबन्त खाता) कहते हैं। ये बैंक दिवलिया होने के कगार पर हैं। मगर उन उद्योगपतियों से ऋण नहीं वसूला जा रहा है। सिर्फ दस उद्योगपतियों के यहां सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का 7.32 लाख करोड़ रूपये बकाया पड़ा हुआ है। 2013 तक इन बैंकों का 4 प्रतिषत एनपीए था, जो उसके बाद के वर्षों में बढ़कर 6 प्रतिषत हो गया।
महंगाई आसमान छू रही है। बेरोजगारी बेलगाम है। षिक्षण संस्थाओं में अवांक्षित तत्वों का अनावष्यक हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है। संघ से जुड़े संगठन कानून और संविधान की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं। दलितों और मुसलमानों पर निर्मम हमले हो रहे हैं। सरकार संविधान और संसदीय लोकतंत्र को कमजोर कर रही है। आज के इस हालात को देखते हुए पिछला तीन साल मोदी सरकार की विफलता के साल रहे हैं। अपने वायदों और घोषणाओं पर केन्द्र सरकार काम नहीं कर रही है। अच्छा तो यह होता कि केन्द्र सरकार भाजपा अपनी सरकार के वायदों और घोषणाओं पर श्वेत पत्र जारी करती ।
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