- नामचीन साहित्यकार स्व0 सतीश चन्द्र झा की 10 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर सतीश स्मृति मंच के तत्वावधान में वटवृक्ष रुपी सतीश कुटिया में पुष्पांजलि/ श्रद्धांजलि सभा व कवि गोष्ठी का आयोजन
दुमका (अमरेन्द्र सुमन) संताल परगना प्रमण्डल के नामचीन साहित्यकार स्व0 सतीश चन्द्र झा की 10 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर क्वार्टर पाड़ा, दुमका स्थित सतीश चैरा में दिन शनिवार को पुष्पांजलि/ श्रद्धांजलि सह कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। एसपी महाविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर व साहित्यकार डा0 रामवरण चैधरी की अध्यक्षता में संपन्न इस कार्यक्रम में शहर के साहित्यकारों/साहित्यप्रेमियों ने स्व0 सतीश बाबू को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्हें एक उत्कृष्ट साहित्य सेवी कहा। साहित्यिक वट वृक्ष के रुप में स्थापित सतीश कुटिया में स्व0 सतीश बाबू के जीवितावस्था में जिन-जिन साहित्यकारों ने उनके सानिघ्य में साहित्य की विभिन्न विधाओं मंे उल्लेखनीय प्रगति की उन्होंने जीवन का अवस्मरणीय क्षण बतलाया। यह दिगर बात है कि स्व0 सतीश बाबू इस दुनिया में नहीं रहे, किन्तु उनके सिद्वान्तों, उद्देश्यों पर आज भी कवियों/ साहित्यकारों की एक बड़ी फौज उनका स्मरण कर साहित्य सेवा मंे अनवरत क्रियाशील हैं। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डा0 रामवरण चैधरी ने कहा यह कुटिया एक ऐसे वटवृक्ष की तरह है जहाँ कवियों/ लेखकों/ साहित्यकारों को अनवरत लिखने की प्रेरणा प्राप्त होती रहती है। कार्यक्रम की शुरूआत साहित्यकार स्व0 सतीश चन्द्र झा के चित्र पर पुष्पांजलि कर प्रारंभ हुईं। दो सत्रों में आयोजित इस कार्यक्रम के ़ि़द्वतीय सत्र में रामकृष्ण मिशन, पुरुलिया के छात्र व बालकवि अनुभव झा (ओम) ने लोके बोले काली कालो.... बंग्ला गीत/भजन का मुक्तकंठ गायन कर गोष्ठी में समां ही बांध दियां। ’कैसे रे पाया तूने उत्पल आश्रय प्रभु के श्रीचरण में’ कविता का पाठ कर एक छोटे से बच्चे ने स्व0 सतीश बाबू के प्रति अपनी आस्था प्रकट करते हुए श्रद्वांजलि अर्पित किया। ईश्वरीय प्रेम को परिभाषित को कर अनुभव ने अपनी दमदार उपस्थिति से श्रोताओं की खूब वाहवाही लूटी। रचनाओं में नित्य नये प्रयोग कर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्शा रहे युवा रचनाकार सौरभ सिन्हा ने सतीश बाबू को समर्पित कविता सतीश स्मृति एक शब्द नहीं प्यार है, न जाने कितने कवियों के लिये यह श्रृंगार है का पाठ किया। अंगिका भाषा में महाकवि स्व0 सुमन सुरो की उस रचना का पाठ कश्यप नंदन ने किया जो उन्होंने हंस कुमार तिवारी के लिये लिखा था, हे अमरपुत्र तो हाॅ फेरू आवो’। किसानों की दुदर्शा पर अपनी कविता ‘संभावनाओं की बदरी छँट रही है’ के माध्यम से कवि नवीन कुमार गुप्ता ने वर्तमान व्यवस्था का मानवीय चेहरा प्रस्तुत किया। होली के क्षणिक पूर्व सुकमा (छत्तीसगढ़) में नक्सलियों द्वारा शहीद सीआरपीएफ के दर्जन भर जवानों की स्मृति में सीआरपीएफ मंे कमांडेंट के पद पर आसीन व स्व0 सतीश चन्द्र झा के तृतीय पुत्र आशीष कुमार झा ने ‘कहो कैसे मनायें हम होली ?’ का पाठ कर राष्ट्रवादी चिंतन के अभूतपूर्व स्मरण को रेखांकित किया। देश के लिये मर-मिटने वाले जवानों प्रति सच्ची श्रद्धांजलि उन्होेंने अपनी कविता के माध्यम से दी। बेटों से बेटियों को अलग-थलग करने वालीे सोंच व बेटियों की सीमित इच्छाओं को पूरी संजीदगी से प्रस्तुत करते हुए आशीष कुमार झा ने अपनी दूसरी कविता ’’प्रकृति की प्यारी सी भेंट हूँ मैं, पापा नदियों की चमकती रेत हूँ मैं,’’ का पाठ कर बेटियों के संतोष से अवगत कराने का प्रयास किया। राष्ट्रीय स्तर पर युवावर्ग के प्रतिनिधि रचनाकार अशोक सिंह ने पेड़ों की उजड़ रही अस्मिताओं, मानवीय कारस्तानियों व पर्यावरण पर गंभीर चिंतन को अपनी लम्बी कविता ’’पेड़’’ के माध्यम से रखा। पेड़ बचाओं पर समर्पित कविता ‘पेड़’ की कुछ पंक्तियों को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा ’’उसकी छाया में बैठकर, सबकी पंचायती करने वाले पंचों ने भी, कभी उन पर कोई पंचायत नहीं की’। यह कविता मानवीय व्यवहार/ स्वार्थ/ असंवेदनाओें पर पूणतः आधारित थी। विश्वजीत राहा ने ‘जाने मध्य काल के किस ग्रह-नक्षत्र में जन्मी, जन्मते ही बनी बुराई का प्रतिफल व मनोज घोष ने ‘माँ के आँचल में सुख प्राप्त होता है’ का काव्यपाठ कर श्रोताओं की बाहवाही बटोरी। महिला कवियत्री हेना चक्रवर्ती ने ‘धधक रही चारों ओर अग्नि शिखा’ से अपनी उपस्थिति का आगाज किया। $ 2 नेशनल हाई स्कूल दुमका के प्रभारी व हिन्दी के शिक्षक अनंत लाल खिरहर ने ‘स्वपनों को सच कर दिखाना है के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्शायी। राष्ट्रवाद पर आधारित ‘आधी रात नींद खुली जब मुशर्रफ की’ कविता का सस्वर पाठ कर उर्जावान युवा कवि अंजनी शरण ने गोष्ठी में अपनी मौजूदगी का दमदार आभाष कराया। पेशे से अधिवक्ता, पत्रकार व साहित्यकार अमरेन्द्र सुमन ने ’’कोख में पल रही बच्ची का माँ से प्रलाप’’ शीर्षक कविता का पाठ कर कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध वर्तमान व्यवस्था पर कड़ा प्रहार किया वहीं एक माँ की इच्छा, उसकी मजबूरी व समाज में एक बेटी के प्रति आम रुझान से समाज को अवगत कराने का प्रयास किया। एक बेटी की करुण व्यथा व भावनाओं का भी सम्मान किया जाना कितना महत्वपूर्ण है इसे साहित्यकार अमरेन्द्र सुमन ने बखूबी दर्शाया। लोक संस्कृति पर आधारित नवीन चन्द्र ठाकुर ने अंगिका भाषा में अपनी रचना ‘शहर में जाय के, कि देखले रे बेटा’ से श्रोताओं का मिजाज बदल दिया। मंच की अध्यक्षता कर रहे डाॅ0 रामवरण चैधरी ने मधुशाला में दो बूँद मैं पी न सका’ के माध्यम से साहित्यरूपी आकाश में साहित्य सृजन की असीम संभावनाओं को मंच के पटल पर रखा। अपने संबोधन में डा0 चैधरी ने सतीश स्मृति मंच के क्रियाकलापों पर संतोष व्यक्त करते हुए शहर में ऐसे अन्य कार्यक्रमों के आयोजनों पर बल देते हुए युवा कंधों को ऐसी जिम्मेवारियों को ले आगे बढ़ने का मंत्र दिया। पुष्पांजलि सह श्रद्धांजलि व कवि गोष्ठी के रुप में दो अलग-अलग सत्रों में आयोजित इस कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापित करते हुए विद्यापति झा ने कहा सतीश स्मृति दुमका की साहित्यिक उर्वरता को बनाए रखने का भरसक प्रयास कर रहा है। अपनी-अपनी रचनाओं के माध्यम से अधिक से अधिक कवि/ लेखक व साहित्यकार इस मंच से सहयोग प्राप्त कर सकते हैं तथा अपने बहुमूल्य समय से वटवृक्ष रुपी कुटिया को विस्तार प्रदान कर सकते हैं। पूरे कार्यक्रम का मंच संचालन साहित्यकार अमरेन्द्र सुमन ने किया। साहित्यकार स्व0 सतीश बाबू की 10 पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में स्व0 झा के परिजनों कुन्दन कुमार झा, पवन कुमार झा, संध्या रानी सहित अरविन्द कुमार, दीपक कुमार झा, गौर कांत झा, उज्ज्वल कुमार, चम्पा देवी, अमृता झा, शारदा झा, सविता झा, अर्णव, अदिति की उपस्थिति काफी सराहनीय रही।
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