बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र के सौराठ सभा पर आधारित गीत ‘प्रीतम नेने चलू हमरो सौराठ सभा यौ’ आजकल सोशल मीडिया पर वायरल है। मिथिला क्षेत्र के निवासी हों या वहां से पलायन किए हुए लोग आजकल इस गाने को सुनते हुए नजर आ रहे हैं। गौरतलब है कि 'सौराठ सभा' में प्राचीन काल से ही दूल्हों की सभा लगती आई है। यह परंपरा आज भी कायम है लेकिन अब इसकी महत्ता को लेकर बहस तेज हो गई है। मिथिवासियों का मानना है कि यह भारतीय संस्कृति की बचाने की एक कवायद है। दरअसल अब तक पारंपरिक रूप से महिलाएं सौराठ सभा में आने से वंचित रही है और इस गाने के सहारे महिला दहेज विरोधी अभियान में शामिल होने की बात करती नजर आ रही है और आदर्श विवाह पर जोर दिया जा रहा है। इस गाने के प्रसिद्ध लेखक और मिथिलालोक फाउंडेशन के चैयरमैन डॉ. बीरबल झा ने समस्त मिथिलावासियों से अपील की है कि मिथिला की संस्कृति को मजबूत करेने में अपना योगदान दें और सौराठ को विचार-विमर्श का केंद्र बनाएं। इसके लिए उन्होंने अपनी संस्था की ओर से 'चलू सौराठ सभा' अभियान भी शुरू किया है। झा का मानना है कि इस अभियान का उद्देश्य संबंधों की समाजिक शुचिता बनाए रखने के लिए समगोत्री विवाह को रोकना, दहेज-प्रथा का उन्मूलन तथा वर-वधू के सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए वैवाहिक सबंधों को स्वीकृति देना है। इस गाने को ज्योति मिश्रा ने स्वर दिया है
सौराठ सभा है क्या -
1310 में मिथिला के राजा हरिसिंह देव ने मधुबनी शहर से 6 किलोमीटर दूर शास्त्रार्थ के मकसद से 22 एकड़ जमीन सौराठ सभा को दान में दिया दिया था। साथ ही, इसका मकसद यह भी था कि शास्त्रार्थ को आधार बनाते हुए सभा में सुयोग्य वर को सुयोग्य कन्या से परिणय सूत्र में बांधकर सृष्टि निर्माण का उसे हिस्सा बना दिया जाए। हालांकि, हरि सिंह की पहल के बाद मिथिला की विभिन्न दिशाओं में इस तरह की 14 सभाएं लगनी शुरू हुईं ।पहले विपन्नता के कारण लोग पेड़ के नीचे बैठकर ही इस तरह का शास्त्रार्थ किया करते थे और शादियां तय होती थी। स्थानीय लोग बताते हैं कि करीब दो दशक पहले तक सौराठ सभा में अच्छी-खासी भीड़ दिखती थी, पर अब इसका आकर्षण कम होता दिख रहा है। ऐसा माना जाता है कि 1971 में यहां करीब डेढ़ लाख लोग आए थे। उच्च शिक्षा प्राप्त वर इस सभा में बैठना पसंद नहीं करते। इस परंपरा का निर्वाह करने को आज का युवा वर्ग तैयार नहीं दिखता।
क्यों खास है सौराठ सभा-
22 बीघा जमीन पर लगने वाला सौराठ सभा को स्थानीय रूप से 'सभागाछी' के रूप में भी जाना जाता है। मिथिलांचल क्षेत्र में मैथिल ब्राह्मण दूल्हों की यह सभा प्रतिवर्ष ज्येष्ठ या अषाढ़ महीने में सात से 11 दिनों तक लगता है, जिसमें कन्याओं के पिता योग्य वर को चुनकर अपने साथ ले जाते हैं। इस सभा में योग्य वर अपने पिता व अन्य अभिभावकों के साथ आते हैं। कन्या पक्ष के लोग वरों और उनके परिजनों से बातचीत कर एक-दूसरे के परिवार, कुल-खानदान के बारे में पूरी जानकारी इकट्ठा करते हैं और दूल्हा पसंद आने पर रिश्ता तय कर लेते हैं। सौराठ सभा में पारंपरिक पंजीकारों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। यहां जो रिश्ता तय होता है, उसे मान्यता पंजीकार ही देते हैं। कोर्ट मैरिज में जिस तरह की भूमिका दंडाधिकारी की है, वही भूमिका इस सभा में पंजीकार की होती है। पंजीकार के पास वर और कन्या पक्ष की वंशावली रहती है। वे दोनों तरफ की सात पीढ़ियों के उतेढ़ (विवाह का रिकॉर्ड) का मिलान करते हैं। जब पुष्टि हो जाती है कि दोनों परिवारों के बीच सात पीढ़ियों में इससे पहले कोई वैवाहिक संबंध नहीं हुआ है, तब पंजीकार रिश्ता को पक्का करने की लिखित अनुमति देते हैं। गौरतलब है कि एक ही ब्लड ग्रुप में शादी करने की सलाह डॉक्टर भी नहीं देते। साथ ही, हिंदू मैरिज एक्ट 1956 के अनुसार भी समगोत्री शादी की मनाही है। शायद यही वजह है कि मैथिल ब्राह्मण एक ही गोत्र व मूल में शादी नहीं करते। इनका मानना है कि अलग गोत्र में विवाह करने से संतान उत्तम कोटि की होती है। इस सभा में विभिन्न गोत्रों के ब्राह्मण एक साथ मौजूद होते हैं। डॉ. झा का मानना है कि मिथिलांचल में इन परंपराओं का सकारात्मक नतीजा यह रहा कि क्षेत्र में वैवाहिक संस्था हमेशा से मजबूत स्थिति में रही और सामाजिक संबंधों में प्रगाढ़ता बनी रही। हालांकि, आजकल तलाक के बढ़ते मामलों को देखते हुए इसकी महत्ता समझी जा सकती है।
आगे क्या?
डॉ. झा ने बताया कि इस साल सौराठ सभा का आयोजन 25 जून से 3 जुलाई तक होगा। उन्होंने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह ऐतिहासिक स्थल पर्यटन विभाग और प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार है लेकनि इसे पुनर्जीवित करने की हरसंभव कोशिश की जा रहही है। डॉ. झा ने इसके पुनर्निर्माण पर जोर देते हुए बिहार सरकार से सौराठ सभा स्थल पर एक बहुउद्देशीय सामुदायिक भवन के निर्माण की मांग की है, जिससे इसकी कोई स्थायी पहचान बन सके और इसके माध्यम से मिथिलांचल में दहेज मुक्त विवाह को एक अभियान के रूप में आगे बढ़ाया जा सके। यही नहीं, उन्होंने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर सौराठ को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की मांग भी की है। इस बार के सौराठ सभा में कुछ विशेष आकर्षण होगा। डॉ. झा ने बताया कि प्रोजेक्टर के सहारे बड़े स्क्रीन पर वर-वधु का परिचय दिखाया जाएगा। साथ ही, यहां तय होने वाली शादियां दहेजमुक्त होंगी। वंशावली के रख-रखाव के लिए डॉ. झा ने बताया कि इसे डिजिटाइज किया जाएगा ताकि भोज पत्र और अन्य पेपर पर लिखे हुए लिपि को नष्ट होने से बचाया जा सके। 25 जून से शुरू होने वाली इस सभा के पहले दिन राज्य के राज्यपाल रामनाथ कोविंद के शिरकत करने की संभावना है।
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