पटना 12 सितंबर, बिहार के ऐतिहासिक धरोहर पटना संग्रहालय में रखी करीब 2500 साल पुरानी मौर्यकालीन मूर्तिकला की अद्वितीय कृति चामरग्राही यक्षिणी को भले ही आज से नये घर (बिहार म्यूजियम) भेजने की तैयारी शुरू हो गई हो लेकिन सूना न पड़े इसलिए इस संग्रहालय को भी आधुनिक कलाकृतियों के दम पर नये सिरे से विकसित किया जाएगा। संग्रहालय के अपर निदेशक डॉ. विमल तिवारी ने यहां बताया कि प्राप्त निर्देशों के अनुसार संग्रहालय से फिलहाल 3060 ऐतिहासिक कृतियों को 02 अक्टूबर से शुरू हो रहे नवनिर्मित बिहार म्यूजियम ले जाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि चूंकि इस कार्य में काफी सावधानी बरतनी होती है। ऐसे में पर्यटकों और दर्शकों के यहां आने से काफी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। इसको ध्यान में रखते हुये संग्रहालय को केवल 25 सितंबर तक के लिए बंद रखा गया है। श्री तिवारी ने यक्षिणी के स्थानांतरित किये जाने के बाद संग्रहालय के आकर्षण पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर बताया कि यह तो सच है कि यक्षिणी का लोगों के बीच खासा आकर्षण रहा है। साथ ही संग्रहालय भवन भी बिहार का ऐतिहासिक धरोहर है। ऐसे में लोगाें के बीच इसकी जीवतंता बनाये रखने के लिए इसे नये सिरे से विकसित किया जाएगा।
अपर निदेशक ने संग्रहालय से ऐतिहासिक कृतियों को बिहार म्यूजियम स्थानांतरित करने से कला के छात्रों को होने वाली परेशानी के बारे में पूछे जाने पर कहा कि उन्हें नहीं लगता कि इससे किसी को भी परेशानी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि स्थानांतरण से कलाप्रेमियों एवं छात्रों को और बेहतर सुविधा प्राप्त होगी। संभवत: तकनीकी दृष्टिकोण से बिहार म्यूजियम अधिक उन्नत हैं जहां कृतियों को बेहतर तरीके से संरक्षित रखा जा सकता है। उल्लेखनीय है कि यक्षिणी की नियति में भले ही विस्थापित होना रहा हो लेकिन हर बार उसे राजप्रसाद ही मिला। इस सम्मोहक मूर्ति ने पहले मौर्य शासकों के महल की शोभा बढ़ाई और बाद में पटना के दीदारगंज के धोबीघाट से होते हुये वह वर्ष 1915 में तत्कालीन कमिश्नर के बंगले में शुरू किये गये पटना संग्रहालय पहुंची। इसके बाद उसे पटना उच्च न्यायालय भवन में रखा गया और फिर 1929 में इसे संग्रहालय के वर्तमान भवन में लाया गया। ऐतिहासिक कृतियों के स्थानांतरण का निर्णय वापस लेने के लिए राज्य सरकार पर दबाव बनाने के उद्देश्य से ‘यक्षिणी बचाओ, पटना संग्रहालय बचाओ’ आंदोलन शुरू किया गया है। आंदोलनकारियों का मानना है कि कला एवं शिल्प महाविद्यालय के संस्थापकों ने पटना संग्रहालय के पीछे कला एवं शिल्प महाविद्यालय की स्थापना इसलिए की थी कि मूर्ति कला एवं चित्रकला प्राकृतिक रूप से प्रयोगशाला के रूप में इस संग्रहालय मौजूद थी।
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