नगर निकाय चुनाव को लेकर जिले में प्रत्याशियों ने अपनी कमर कस ली है। चुनाव की तैयारियों में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। कसर छोड़े भी क्यों आखिर उनकी साख जो दांव पर लगी है? जनता भी अपना बहुमूल्य वोट देने को एक बार फिर से तैयार हो रही है। लोकतंत्र के इस पावन पर्व को लेकर सबसे अहम बात जो देखी जाती है , वो है चुनाव मैदान मे उतरे हुए प्रत्याशी। प्रत्याशी कैसे भी हो लेकिन सबके पोस्टर पर कुछ ऐसे शब्द जरूर लिखे होते हैं। कर्मठ, ईमानदार, जुझारू, संघर्षशील, नेता नहीं सेवक चुने। ऐसे शब्दों को देख जनता भले न भ्रमित हो मैं जरूर हो जाता हूँ। आखिर मुझे भी वोट देना है। पोस्टर के हिसाब से सभी में एक जैसी खूबी है। अब आंकड़ा लगाना थोड़ा मुश्किल काम हो गया। प्रत्याशी भी आते हैं हाथ जोड़कर कहते हैं इस बार आपका भाई, आपका बेटा, चुनाव मैदान में है जरा ध्यान दीजिएगा। एक बार सेवा का अवसर जरूर दीजिए। अब यहां भी कन्फ्यूजन। अगर सारे प्रत्याशी भाई, और बेटा बनकर वोट मांग रहें हैं तो हम किसे अपना मतदान करें? चलिये किसी तरह से इस कन्फ्यूजन से उभरकर मतदान कर दिया। अब जिसकी किस्मत होगी वह प्रत्याशी विजयी घोषित हुआ। फिर क्या वही भाई, बेटा, सेवक, जो चुनाव के समय हाथ जोड़कर आपके सामने था, किसी काम के लिए आप उससे हाथ जोड़ते फिरोगे। फिर वह सारे चुनावी रिश्ते आप से भूल जाता है। कहने का बस इतना ही मतलब है किसी के बहकावे और दिखावे में न आएं। जब लोकतंत्र के इस पावन अवसर को मनाने का समय आ गया है तो सूझबूझ और समझदारी दिखाते हुए अपने मताधिकार का प्रयोग जरूर करें।
बुधवार, 8 नवंबर 2017
उत्तर प्रदेश : निकाय चुनाव के लिए किसी कमर
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