भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने ,न खाएंगे न खिलाएंगे, सबका साथ सबका विकास जैसे लोक लुभावन नारों के मृगतृष्णा से जनता को आत्ममुग्ध कर सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी अब अपने "मूल" नारों से ही भटकती नजर आ रही है.राजस्थान में वसुंधरा राजे की सरकार के ताजा फरमान से तो यही मुगालता हो रहा है कि हम वाकई लोकतंत्र में हैं या किसी राजशाही में.वसुंधरा राजे सरकार ने नयी व्यवस्था दी है कि राज्य में किसी जज ,अधिकारी ,लोकसेवक के भ्रष्टाचार में संलिप्तता पाए जाने पर बिना राज्य सरकार कि अनुमति के उस अधिकारी पर कोई भी व्यक्ति न तो प्राथमिकी दर्ज करवा सकता है न ही मीडिया में उसकी रिपोर्टिंग की जा सकती है. यहाँ तक कि सोशल मीडिया में भी आम नागरिक या भुक्तभोगी अपनी व्यथा जाहिर नहीं कर सकते.
जहाँ तक मीडिया रिपोर्टिंग की बात है यह सीधे तौर पर अभिव्यक्ति की आज़ादी के मामले से जुड़ा हुआ मुद्दा है और किसी भी मामले की रिपोर्टिंग के पहले सरकार या किसी अन्य व्यक्ति,संस्था की मंजूरी आवश्यक नहीं है.लोकतान्त्रिक व्यवस्था की मजबूती और पेशेवर सिद्धांतों के अंतर्गत हम समाचार प्रकाशन के पहले सम्बंधित व्यक्ति या संस्था से उनका पक्ष पूछते हैं और उन्हें भी समाचारों में उतनी ही प्रमुखता से स्थान दिया जाता रहा है. दूसरी तरफ जब मानहानि के दावे का रास्ता सर्वसुलभ है तो फिर "घोषित आपातकाल" क्यों? क्या वसुंधरा राजे को लगता है इससे वे मीडिया पर अंकुश लगा पाएंगी या फिर वो भ्रष्ट अधिकारियों का बचाव चाहती हैं?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद १९ में अभिव्यक्ति की आज़ादी का स्पष्ट उल्लेख है.इसमें साफ़ कहा गया है कि पत्रकार,मीडिया कर्मी सहित प्रत्येक भारतीय को प्रेस या सार्वजनिक मंच के माध्यम से अपनी बात और विचारों को व्यक्त करने का पूर्ण अधिकार है.हालाँकि १९७६ के आपातकाल में प्रेस की आज़ादी पर आघात और उसके बाद १९७८ में उस कानून को जनता सरकार द्वारा निरस्त किये जाने के बाद संविधान में जनता सरकार ने अभिव्यक्ति की आज़ादी को विनयमित करने के लिए नया अनुच्छेद ३६१ ए जोड़ा. दूसरी तरफ किसी भी तरह के आपातकाल के समय संविधान के अनुच्छेद ३५८ के अंतर्गत अनुच्छेद १९ को अनुच्छेद ३५२ सेंसरशिप से बदला जा सकता है.
तो क्या हम मान कर चले कि राजस्थान में ऐसे किसी आपातकाल का आगाज हो चुका है ? क्या हम मान लें कि वसुंधरा राजे सरकार राजस्थान में भ्रष्ट नौकरशाहों,न्यायायिक पदाधिकारियों ,लोकसेवकों को संरक्षण देने को तत्पर है ?क्या हम मान लें कि वसुंधरा राजे सरकार अब राज्य की जम्हूरियत पर राजशाही का चाबुक चलाने का मन बन चुकी है ? क्या हम मान लें कि वसुंधरा राजे सरकार के इस अलोकतांत्रिक फैसले को भाजपा केंद्रीय नेतृत्व का वरदहस्त प्राप्त है ?क्या हम मान लें कि वसुंधरा राजे सरकार राजस्थान में मीडिया पर अंकुश लगाकर जनता की आवाज़ दबाने को आतुर है ?
*विजय सिंह*
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