नयी दिल्ली, 31 मार्च, उद्योग जगत के विशेषज्ञों का मानना है कि माल परिवहन के लिये ई-वे बिल व्यवस्था लागू होने से राजस्व वसूली लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी लेकिन व्यवस्था के पूरी तरह से लागू होने तक सरकार को छोटे उद्योगों और व्यापारियों को सहारा देना जरूरी है। देश में एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच माल परिवहन को जीएसटी नेटवर्क के तहत लाने के लिये इलेक्ट्रानिक-वे बिल व्यवस्था कल यानी एक अप्रैल 2018 से लागू हो रही है। कोई भी व्यापारी अपने जीएसटीआईएन का इस्तेमाल करते हुये माल भेजने के लिये ई-वे बिल पोर्टल पर पंजीकरण करा सकता है। एक राज्य से बाहर दूसरे राज्य में पचास हजार रुपये से अधिक का माल भेजने पर ई-वे बिल में पंजीकरण कराना जरूरी होगा। हालांकि, इसमें जीएसटी से छूट प्राप्त वस्तुओं का मूल्य शामिल नहीं होगा। पीएचडी वाणिज्य एवं उद्योग मंडल की अप्रत्यक्ष कर समिति के अध्यक्ष बिमल जैन ने ‘भाषा’ से बातचीत में कहा ‘ई-वे बिल व्यवस्था के अमल में आने से सरकार को राजस्व वसूली लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि ई-वे बिल व्यवस्था लागू होने के बाद शुरुआत में ही राजस्व वसूली 10-15 प्रतिशत तक बढ़ सकती है। उल्लेखनीय है कि सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद जीएसटी राजस्व संग्रह उस गति से नहीं बढ़ पा रहा है जितना बढ़ना चाहिये था। फरवरी में जीएसटी संग्रह 85,174 करोड़ रुपये रहा है जो कि जनवरी 2018 की प्राप्ति 86,318 करोड़ रुपये से कम रहा। देश में जुलाई 2017 में जीएसटी व्यवस्था लागू होने पर पहले महीने में जीएसटी प्राप्ति 93,590 करोड़ रुपये रही। उसके बाद सितंबर में यह सबसे ज्यादा 95,132 करोड़ रुपये रही और उसके बाद इसमें गिरावट आ गई।
बिमल जैन ने कहा कि सरकार को ई-वे बिल की सफलता के लिये छोटे और असंगठित क्षेत्र को सहारा देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, ‘‘जब भी कोई नई व्यवस्था अमल में आती है तो उसके लिये चीजों को समझना और प्रशिक्षण देना जरूरी होता है। शुरुआती दौर में यदि किसी से कोई गलती होती है तो कम से कम छह माह तक जुर्माना और दंडात्मक कारवाई से बचा जाना चाहिये और गलती को सुधारने पर जोर दिया जाना चाहिये।’’ अखिल भारतीय मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के अध्यक्ष एस.के. मित्तल ने ई-वे बिल की तैयारियों के बारे में पूछे जाने पर कहा, ‘‘हम इस व्यवस्था को लेकर सरकार के साथ हैं। देश में छोटे- बड़े तीन लाख से ज्यादा ट्रांसपोर्टर हैं। ई-वे बिल जनरेट करने का काम मुख्यत: माल भेजने वाले अथवा प्राप्त करने वाले कारोबारियों का होगा। एक राज्य से दूसरे राज्य में माल भेजने का काम ज्यादतर बड़े व्यापारी ही करते हैं। सप्लायर ई-वे बिल जनरेट करेगा और उसके बाद इसमें गाड़ी नंबर डाला जायेगा। ट्रांसपोर्टर का काम माल को गंतव्य तक सुरक्षित पहुंचाना है।’’ बिमल जैन से जब यह पूछा गया कि ई-वे बिल से कर चोरी कैसे रुकेगी तो जवाब में उन्होंने कहा कि ई-वे के लिये पंजीकरण कराने से यह रिकार्ड में आ जायेगा और कारोबार के बारे में जानकारी मिलेगी। हालांकि, यदि कोई माल जॉब वर्क के संबंध में भेजा जा रह है तो आपूर्तिकर्ता अथवा पंजीकृत जॉब वर्कर को ई-वे बिल लेना होगा। जैन ने कहा कि आने वाले दिनों में ई-वे बिल व्यवस्था स्थापित हो जाने के बाद इसे ‘रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइस’’ के साथ जोड़ने से यह व्यवसथा और पुख्ता हो जायेगी।
मोटर ट्रांसपोर्ट के महासचिव नवीन कुमार गुप्ता ने कहा, ‘‘ट्रांसपोर्टरों को भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलनी चाहिये। माल की पूरी जिम्मेदारी सप्लायर यानी आपूर्तिकर्ता की होनी चाहिये। कोई भी गड़बड़ी होने पर ट्रांसपोर्टर को परेशान नहीं किया जाना चाहिये बल्कि आपूर्तिकर्ता को पकड़ा जाना चाहिये।’’ मित्तल ने कहा कि परचून का काम करने वाले छोटे व्यापारियों के मामले में ई-वे बिल की वैधता को शुरू में दो दिन के लिये किया जाना चाहिये। क्योंकि कई बड़े शहरों में ट्रकों के प्रवेश पर कई-कई घंटे की रोक होती है। केवल रात में ही वह माल पहुंचा सकते हैं, इस लिहाज से ई-वे बिल की 100 किमीटर दूरी के लिये वैधता एक दिन के बजाय दो दिन की जानी चाहिये।
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