- मुसलमान और भूमिहार वोटरों का भरोसा हासिल नहीं कर सका जदयू
अररिया लोक सभा और जहानाबाद व भभुआ विधानसभा उपचुनाव में राजद व भाजपा ने अपनी-अपनी सीटों पर कब्जा बरकरार रखा है। अररिया में राजद के सरफराज आलम ने भाजपा के प्रदीप सिंह को 61788 मतों से हराया। जहानाबाद में राजद के सुदय यादव ने जदयू के अभिराम शर्मा को 35036 मतों से पराजित किया। जबकि भभुआ में रिंकी पांडेय ने कांग्रेस के शंभु पटेल को करीब 16 हजार मतों से हराया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ‘अंतरात्मा‘ जागने के बाद यह पहला उपचुनाव है। 2015 के विधान सभा चुनाव में जहानाबाद में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा ने अपना उम्मीदवार दिया था। उपचुनाव में रालोसपा के दोनों गुटों व हम के बीच विवाद गहराने के बाद इस सीट पर भाजपा के स्थानीय नेताओं ने दावा किया था। लेकिन भाजपा को कोई ‘योग्य’ उम्मीदवार नहीं मिला तो इस सीट को ‘अंतरात्मा जागरण’ के ‘प्रसाद’ के रूप में नीतीश कुमार को सौंप दिया। नीतीश कुमार ने पहले ही उपचुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की थी, लेकिन भाजपा के ‘प्रसाद’ को नकार नहीं सके। भाजपा के आग्रह पर नीतीश ने अभिराम शर्मा को उम्मीदवार बना दिया।
लगता है उपचुनाव में भाजपा का ‘जहानाबादी प्रसाद’ नीतीश के लिए अशुभ साबित हुआ। 2015 के विधान सभा में राजद को 30321 वोटों का मार्जिन मिला था, जबकि उपचुनाव में राजद को 35 हजार से अधिक वोटों की बढ़त मिली है। उपचुनाव में महागठबंधन से नीतीश कुमार के अलग होने का कोई नुकसान राजद को नहीं हुआ है, जबकि नीतीश के साथ होने का नुकसान ही एनडीए को उठाना पड़ा है। जहानाबाद का परिणाम बताता है कि भूमिहार वोटरों ने एक बार फिर भाजपा के सहयोगी को नकार दिया है। पिछले विधान सभा चुनाव में भी भूमिहार वोटरों ने रालोसपा, हम और लोजपा को समर्थन नहीं दिया था। इसके कारण भाजपा के तीनों सहयोगियों ने 86 सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारा था, जिसमें से सिर्फ 5 प्रत्याशी ही जीत पाये। जहानाबाद उपचुनाव के कई अन्य मायने भी निकाले जा सकते हैं। फिलहाल इतना तय है कि मुसलमान और भूमिहार वोटरों का भरोसा नीतीश कुमार हासिल नहीं कर सके हैं। इसका खामियाजा आखिरकार भाजपा को ही उठाना पड़ेगा।
(वीरेंद्र यादव)
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