पिछले 17 वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ कि मुझे अपने पैतृक गांव रजनपुरा में तकरीबन सवा महीना रहने का मौका मिला। खेत-खलिहान, गाय-बाछी, घर के आंगन में चहकती गौरैयों से बतियाने का मौका मिला। मां के गोद में सिर रखने का अवसर प्राप्त हुआ। गांव के नयका पीढी के साथ क्रिकेट खेलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। नई पीढ़ी के साथ समय बिताकर ऊर्जावान होने का बेहतरीन मौका तो मिला ही साथ ही इस नव पौध ने यह जाना-समझा की मैं भी इसी गांव का हूँ। उनसे मिले आगाध स्नेह से अघाना स्वभाविक भी है। अभिभूत हूँ। सीवान जिला के रजनपुरा के बच्चों में गजब का स्पार्क है। जो काम करते हैं, जमकर करते हैं। तमाम अच्छी बातों के बीच कुछ बातें चुभन भी पैदा कर रही हैं। पढ़ाई-लिखाई के प्रति इनमें उदासीनता दिखी। खासतौर से निकुम्भटोली के बच्चे पने करियर को लेकर लापरवाह दिखें। यह लापरवाही शुभ संकेत नहीं है। उन्हें समझना होगा की अगर वे अपने परिवार, गांव, जिला-जवार, प्रदेश एवं देश से न्याय करना चाहते हैं तो उन्हें खुद को कर्मयोगी बनाना होगा। सार्थक कामों के लिए प्रयत्न करने होंगे।
अपने गांव के साथ-साथ देश के सभी बच्चों को एक किताब पढ़ने की सलाह देता हूँ। आपलोग महात्मा गांधी जी की पुस्तक 'हिन्द स्वराज' जरूर पढ़िए। यह किताब आपके जीवन में मार्गदर्शक का काम करेगी। महात्मा गांधी को लेकर आपके मन में अगर कोई नकारत्मकता है, तब तो आप यह किताब जरूर पढ़िए। सच कहूं तो बहुत बदल गया है मेरा गांव। गांव में पावर हाउस लग गया है। स्वच्छ जल की आपूर्ति होने लगी है। गांव को जिला मुख्यालय सीवान से जोड़ने वाली सड़क डबल लेन की हो गईं हैं। ऑटो-टेंपो सीधे गांव से मिलने लगे हैं। राज्य मुख्यालय पटना जाने के लिए सुबह में दो बसों की सुविधा हो गयी है। 18 घंटे बिजली रहने से घर-घर टीवी चलने लगे हैं। गांव के लोग दिल्ली के चैनलों पर चलने वाले वाक युद्ध को देख-सुन कर देश के भविष्य पर खूब चर्चा करने लगे हैं। एक बात और यहां नीतीश और लालू से ज्यादा चर्चित केजरीवाल हैं। लालू को हुई जेल से गांव के लोग खुश हैं। उन्हें लगता है की देर है अंधेर नहीं है। देश के संविधान एवं न्याय ब्यवस्था पर उनका यही यकीन हमारे लोकतंत्र की मजबूती है।
अमुमन हमारा गांव-जवार धार्मिक सौहार्द के लिए जाना जाता रहा है। लेकिन विगत् कुछ वर्षों में हिन्दू-मुसलमान के बीच दरारें चौड़ी हुई हैं। रामनवमी के पूर्व संध्या पर निकली झांकी में दूसरे समुदाय द्वारा निजामपुर में रास्ता रोके जाने को लेकर हुए विवाद में पत्थरबाजी तक हो गयी। गांव का यह मिज़ाज आशंकित कर रहा है। मैंने अपनी मां को ताज़िया की पूजा करते बचपन में देखा था। वह दृश्य विलुप्त हो गया है। मैं और मेरी पत्नी प्रियंका दो से तीन होने गांव आये थे। हुए भी। लेकिन चार दिन के अंदर ही हम फिर दो बच गए। इस दुःखग्नि को छोड़, यह जरूर कहूंगा गांव का जवाब नहीं।
आशुतोष कुमार सिंह
संपर्क 9891228151
ईमेल ashutoshinmedia@gmail.com
परिचय:लेखक स्वस्थ भारत अभियान के राष्ट्रीय संयोजक हैं। देश के जाने माने घुमक्कड़ हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें