नयी दिल्ली, 05 अप्रैल, उच्चतम न्यायालय ने आज टिप्पणी की कि आधार हर मर्ज की दवा नहीं हो सकता। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने आधार की अनिवार्यता और संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कहा कि वह केंद्र सरकार के इस तर्क से सहमत नहीं है कि आधार मौजूदा व्यवस्था से संबंधित हर मर्ज की दवा है। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति अर्जन कुमार सिकरी, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर शामिल हैं। संविधान पीठ ने एटर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल से पूछा, “क्या आप किसी की निजता के अधिकार का हनन कर सकते हैं? आप उसको सरकारी सुविधाएं देते हैं और उसकी निजी जानकारी को राज्य अपने पास रखता है, लेकिन ये कैसे सुनिश्चित होगा कि यह डाटा कहीं और इस्तेमाल नहीं किया जायेगा? यह एक संवैधानिक सवाल है कि क्या आप किसी को सरकारी सुविधा देकर उसकी निजी जानकारी ले सकते हैं, चाहे वह किसी भी वर्ग या तबके का हो। आखिर ये उसकी निजता का सवाल है।” श्री वेणुगोपाल ने जवाब में कहा कि भोजन के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों को पूरा करने के लिए आधार को जरूरी किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे लोगों के इन अधिकरों को सुरक्षित रखा जा सकता है। शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि आधार करोड़ो रुपये की बैंक धोखाधड़ी में कारगर नहीं है, क्योंकि ऋण लेने वाला कानूनी तरीके से ऋण लेता है और इसमें आधार कोई मदद नहीं करता, क्योंकि उसकी पहचान छुपी नहीं होती। जब बैंक अधिकारी ऋण देता है तो वह जानता है कि वह किसे कर्ज दे रहा है, ऐसे में आधार इसको कैसे रोक सकता है? एटर्नी जनरल ने जवाब दिया कि संभव है न्यायालय नीरव मोदी प्रकरण की बात कर रहा हो, लेकिन आधार बेनामी संपत्ति और बेनामी लेन-देन को लेकर बहुत कारगर है। मामले की अगली सुनवाई 10 अप्रैल को होगी। शीर्ष अदालत आधार की अनिवार्यता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई कर रही है।
गुरुवार, 5 अप्रैल 2018
आधार हर मर्ज की दवा नहीं : सुप्रीम कोर्ट
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