हिंदी का मुमताज़ अफसानानिगार असग़र वजाहत - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

रविवार, 29 अप्रैल 2018

हिंदी का मुमताज़ अफसानानिगार असग़र वजाहत

  • अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में असग़र वजाहत रचना संचयन का लोकार्पण

book-on-asgar-wasahat
अलीगढ़। अलीगढ ने मुझे बनाया है। इस संचयन का रस्मे इजरा अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में होना मेरे लिए बेहद ख़ास मौक़ा है। आज यहाँ मैं अनूठे शायर शहरयार, जावेद कमाल और कुंवरपाल सिंह को भी याद कर रहा हूँ। सुप्रसिध्द कथाकार-नाटककार असग़र वजाहत ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के केनेडी हॉल में आयोजित एक समारोह में कहा कि उर्दू के जो पाठक देवनागरी नहीं पढ़ पाते और हिंदी के वे पाठक जो उर्दू लिपि नहीं जानते -दोनों भारी नुकसान में हैं क्योंकि खड़ी बोली का साहित्य इन दोनों लिपियों में बिखरा हुआ है। वजाहत ने इस अवसर पर अपनी दो छोटी कहानियां 'नेताजी और औरंगज़ेब' तथा 'नया विज्ञान' का पाठ भी किया।  इससे पहले 'संचयन : असग़र वजाहत' के तीन खण्डों का लोकार्पण अतिथियों ने किया जिनका सम्पादन युवा आलोचक पल्लव ने किया है। नयी किताब प्रकाशन समूह के अनन्य प्रकाशन ने इन खण्डों का अल्पमोली संस्करण भी तैयार किया है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कल्चरल सेंटर की ओर से आयोजित समारोह की अध्यक्षता  कर रहे उर्दू विभाग के प्रोफ़ेसर तारिक छतारी ने वजाहत को हिंदी का मुमताज़ अफसानानिगार बताया ,उन्होंने कहा कि असग़र वजाहत के एक एक शब्द में खुलूस है और उनके लेखन की संजीदगी उन्हें बड़ा लेखक साबित करती है।  आयोजन में प्रोफ़ेसर आरिफ़ रिज़वी ने प्रोफ़ेसर असग़र वजाहत के साथ गुज़ारे बचपन के दिनों को याद किया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में उनके साथ अपने छात्र जीवन के प्रसंग भी सुनाए। 

संचयन के सम्पादक डॉ पल्लव ने पुस्तक प्रकाशन योजना पर विस्तार से प्रकाश डाला और कहा कि असग़र वजाहत हमारी भाषा और संस्कृति के बहुत बड़े लेखक हैं जो अपने लेखन में असंभव का संधान करते हैं। अंग्रेज़ी विभाग के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर आसिम सिद्दिकी ने असग़र वजाहत की कथा शैली की विशेषताएं बताते हुए कहा कि सच्चा अदब वह है जो आगे भी पढ़ा जाने की योग्यता रखता हो। हिंदी विभाग के प्रोफ़ेसर आशिक़ अली ने कहा कि 1947 का बंटवारा जमीन से ज्यादा दिलों का था और बंटवारे की यह आग अभी तक हमारे दिलों को जलाती है।  उन्होंने असग़र वजाहत की कहानी शाहआलम कैम्प की रूहें का उल्लेख करते हुए कहा कि असग़र वजाहत के लेखन में गहरा इतिहासबोध है वहीं 'लकड़ियां' कहानी में निहित सामाजिक पाखंड पर व्यंग्य को उन्होंने गहरी चोट की संज्ञा दी। प्रोफ़ेसर शम्भुनाथ तिवारी ने असग़र वजाहत के साथ अपने संबंधों का उल्लेख करते हुए उनके नाटकों पर बातचीत की और बताया कि किस तरह वजाहत अपने नाटकों में समसामयिक मुद्दों को बहुत जीवंत बनाकर प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने “जिस लाहौर नई वेख्या”, “गोड्से@गांधी.कॉम”,“इन्ना की आवाज” तथा लिखे जा रहे अप्रकाशित नाटक “महाबली” के हवाले से प्रोफ़ेसर वजाहत के नाटकों का महत्त्व बताया। प्रो तिवारी ने कहा कि फैंटेसी यथार्थ का सृजन करती है इसका प्रमाण असग़र साहब के नाटक हैं।  समारोह में प्रोफ़ेसर आसिफ़ नक़वी की दो किताबों का भी लोकार्पण किया गया। इससे पहले सी ई सी सेंटर के कोआर्डिनेटर प्रोफ़ेसर शीरानी ने असग़र वजाहत का स्वागत किया।  

इस कार्यक्रम का कुशल संचालन उर्दू विभाग के प्रोफ़ेसर सीराज अजमली ने किया। आयोजन में सीईसी के अध्यक्ष डॉ. मुहिबुल हक़ के अलावा अनेक विभागों के प्रोफ़ेसर, बड़ी संख्या में शोध छात्र एवं अन्य विशिष्ट लोग उपस्थित थे। आयोजन स्थल पर असग़र वजाहत की अब तक प्रकाशित सभी पुस्तकों के साथ नयी किताब समूह द्वारा भी पुस्तक प्रदर्शनी लगायी गई जिसमें संचयन के साथ असग़र वजाहत पर केंद्रित बनास जन के अंक उपलब्ध थे। 

कोई टिप्पणी नहीं: