छत्तीसगढ के सरगुजा जिले के अम्बिकापुर ब्लाॅक के असोला गांव की रंजीता मुंडा ने जीवन के 30 बसंत देखे हैं। रंजीता ने कक्षा छह तक की शिक्षा हासिल की है। रंजीता विवाहित हैं व परिवार में कुल छह सदस्य हैं। इनका मायका अम्बिकापुर ब्लाक के वार्ड नमना का है। शादी के बाद रंजीता पति के साथ असोला ग्राम पंचायत में रहती हैं। रंजीता के पिता मज़दूरी करके अपने परिवार का गुज़ारा करते हैं। गरीबी व जागरूकता की कमी के चलते रंजीता अपनी आगे की पढ़ाई नहीं कर सकीं। परिवार की आय का मुख्य साधन उनकी दो एकड़ ज़मीन है जिसकी उपज से परिवार के रोज़मर्रा की ज़रूरते पैदा होती हैं।
रंजीता ने 2015 में पहली बार सरपंच का चुनाव में प्रतिभागिता की। उनके मुकाबले में छह अन्य लोग इसी क्षेत्र से चुनाव में प्रतिभागी थे। सरपंच की सीट रंजीता को मिली। सरपंच के तौर पर यह उनका पहला सत्र है। 2010 के चुनाव में असोला ग्राम पंचायत की सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हो गयी थी। 2010 में कयासो बाई सरपंच बनीं थी। कयासो बाई ने सरपंच के पद रहते हुए बहुत ज़्यादा काम नहीं किया था। इस बारे में रंजीता मुण्डा के पति अवश मुंडा से बात करने पर पता चला कि पूर्व सरपंच कयासो बाई ने पंचायत में सिर्फ दो सीसी रोड का निर्माण कराया था। इसके अलावा उन्होंने मिडिल स्कूल में अतिरिक्त कक्ष का निर्माण कार्य शुरू किया था मगर उसको बीच में ही छोड़ दिया था, जिसको रंजीता मुंडा ने सरपंच बनने के बाद पूरा कराया।
रंजीता अधिक पढ़ी लिखी नहीं हैं, उन्हें पंचायत संबंधी दस्तावेजों को पढ़ने समझने में दिक्कत होती है। लेकिन इस काम में उन्हें अपने पति का सहयोग मिलता है। वह 8 वीं कक्षा तक पढ़े हैं और सभी दस्तावेजों को सही से पढ़ पाते हैं। शुरू में रंजीता को पंचायत के कामों के बारे में भी ज़्यादा जानकारी नहीं थी। पंचायत की बैठकों में जाने में भी वह संकोच महसूस करती थीं। लेकिन धीरे-धीरे पति के सहयोग से वह बैठकों का आयोजन करने लगीं। रंजीता को सरपंच के तौर पर सभी वर्गों के लोग पसंद करते हैं। क्रमशः उनका आत्मविश्वास बढ़ा और आज वह पंचायत के काम-काज स्वयं करती हैं।
रंजीता ने अपनी पंचायत के विकास के लिए काफी काम किया है। अपने कार्यकाल में उन्होंनेे पीने के पानी और दैनिक जीवन की आवश्यकताओं के लिए 4 हैंडपंप लगवाए जिससे पंचायत में पानी की समस्या का समाधान हो सका। पानी की टंकी लगवाने के लिए उन्होंने शासन को प्रस्ताव भेजा हुआ है। उन्हें उम्मीद है कि जल्दी ही पंचायत में पानी की समस्या दूर होगी और सभी को पानी उपलब्ध होगा। वह अपनी पंचायत में बच्चों के लिए खेल का मैदान बनवा रही हैं। उन्होंने ज़िला पंचायत सदस्य की मदद से हाईस्कूल के लिए भवन का निर्माण कराया। पंचायत में दो सी सी रोड के निर्माण के लिए प्रस्ताव जा चुका है। पानी की निकासी के लिए नरेगा के तहत नालियों का निर्माण कराया। पुराने कुएं की मरम्मत कराने के साथ-साथ वह दो आंगनबाड़ी केंद्रों का निर्माण करा रही हैं। पंचायत के स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ने पर प्राथमिक स्कूल में एक व मिडिल स्कूल में दो अतिरिक्त कमरे बनवाये गए हैं। एक महिला प्रधान के तौर पर रंजीता मुंडा चाहती है कि गांव की सभी बालिकाएं शिक्षा हासिल करें। इसके अलावा वह चाहती हैं कि महिलाएं स्वयं सहायता समूह से जुड़कर आर्थिक रूप से सशक्त बनें। रंजीता नियमित रूप से ग्राम सभा व बैठकों का आयोजन करती हैं। रंजीता समय-समय पर लोगों की समस्याएं सुनने के लिए आम सभा का भी आयोजन करती हैं। गांव में विकास से जुड़े काम करने के लिए सभी वार्ड पंचों की सर्वसम्मति से निर्णय लेकर प्रस्ताव शासन को भेजती हैं। इनके इस काम में इनके पति इनका सहयोग करते हैं। कम पढ़ा लिखा होने की वजह से अधिकारियों के साथ समन्वय बनाने में महिला सरपंच को थोड़ी दिक्कत होती है।
पिछली बार छठी पास होने के बावजूद भी रंजीता पंचायत का चुनाव लड़ी और जीती भी। रंजीता के गांव वाले एक सरपंच के तौर पर उन्हें पसंद भी करते हैं। वह अपने गांव में लोकप्रिय हैं। मगर अगले पंचायती राज चुनाव में सरपंच के लिए आठवीं पास होने की बात चल रही है। यह नियम रंजीता जैसी बहुत सी महिलाओं को आठवीं पास शैक्षिक योग्यता न होने के चलते चुनाव लड़ने से रोक देगा। यह बात रंजीता को निराश करती है। वह कहती हैं कि ‘‘शैक्षिक योग्यता की सीमा की वजह से शायद मैं और मेरी जैसी बहुत सी महिलाएं चुनाव में भाग नहीं ले पाएंगी।’’ रंजीता का मानना है कि इस नियम में संशोधन करना चाहिए। इससे बहुत सी कम पढ़ी लिखी लेकिन योग्य महिलाएं पंचायत में आ सकेंगी और शायद फिर पंचायतों की सूरत भी बदल सके।
पंचायत चुनाव में शैक्षिक योग्यता पर गांव के एक नौजवान मोनू यादव कहते हैं कि ‘‘गांव के ज़्यादातर पुराने लोग अशिक्षित हैं लेकिन गांव में नई पीढ़ी का शिक्षा के प्रति रुझान काफी बढ़ा है। पंचायत के अशिक्षित लोगों को साक्षर भारत मिशन के तहत भी साक्षर किया जा रहा है। मुझे लगता है कि अगले पंचायत चुनाव में शैक्षिक योग्यता बहुत कम लोगों के सामने ही बाधा बनेगी। अगले पंचायत चुनाव में नौजवान तबके खासतौर से नौजवान लड़कियों की हिस्सेदारी ज़्यादा होगी क्योंकि वह काफी पढ़ लिख रही हैं। हां, पंचायत की पुरानी महिलाएं जो आठवीं से कम पढ़ी लिखी हैं, शायद चुनाव लड़ने से वंचित रह जाएं।’’ शैक्षिक योग्यता का यह प्रस्तावित नियम हालांकि शिक्षा के स्तर को बढ़ाने में मदद करेगा पर यह भी सच है कि एक बड़ी संख्या में महिलाओं की प्रतिभागिता को बाधित करेगा और यह तकरीबन एक पूरी पीढ़ी होगी जो अपने इस लोकतांत्रिक अधिकार का उपयोग नहीं कर पाएगी।
(गौहर आसिफ)
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