नई दिल्ली (आर्यावर्त डेस्क) । प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि योजना के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) विप्लव चटर्जी ने आज यहां कहा कि सरकार सस्ती दवाओ की सहज उप्लब्धता के लिए ऐमज़ॉन एवं फ्लिपकार्ट की तर्ज पर जनौषधि आपूर्ति शृंखला जल्द ही तैयार करने वाली है। स्वास्थ्य एडवोकेसी के क्षेत्र में कार्यरत संस्था स्वस्थ भारत तीसरे स्थापना दिवस के अवसर अपने वक्तव्य में श्री चटर्जी ने कहा कि जनऔषधि नेटवर्क को वेब आधारित एप लाने के लिए सरकार ने तैयारी कर ली है और इसके सभी भंडारघर और विक्रय केंद्र इस एप से जोड़े जाएंगे। इससे उपभोक्ताओं की बिलिंग भी हो सकेगी और इस तरह खपत तथा जरूरत के आंकड़े स्वतः चलित रूप से उपलब्ध हो जाएंगे, जिससे विभाग इन सस्ती दवाओं की आपूर्ति यथाशीघ्र कर पाएगी। जनऔषधि की अवधारणा विषय पर राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि जन औषधि परियोजना के सीईओ विप्लव चटर्जी ने जन औषधि अभियान को सफल बनाने के लिए चिकित्सकों से सहयोग की अपील की। उन्होंने कहा कि बिना उनके सहयोग के जनऔषधि को जन तक नहीं पहुचाया जा सकता है। उन्होंने मीडिया से भी अपील की कि वो जनऔषधि अभियान को लोगो तक ले जाए।
जेनरिक दवाइयों के भ्रम को दूर करते हुए जनऔषधि परियोजना के सीईओ विप्लव चटर्जी ने कहा कि, 'सबसे पहले तो हमें यह समझने की जरूरत है कि दवा एक केमिकल होता है। रसायन होता है। दवा कंपनियां अपने मुनाफा एवं विपरण में सहुलियत के लिए इन रसायनों को अलग से अपना ब्रांड नाम देती है। जैसे पारासेटामल एक साल्ट अथवा रसायन का नाम है लेकिन कंपनिया इसे अपने हिसाब से ब्रांड का नाम देती हैं और फिर उसकी मार्केंटिंग करती है। ब्रांड का नाम ए हो अथवा बी अगर उसमें पारासेटामल साल्ट है तो इसका मतलब यह है कि दवा पारासेटामल ही है। अंतरराष्ट्रीय मानक के हिसाब से पेटेंट फ्री मेडिसिन को जेनरिक दवा कहा जाता है। लेकिन भारत में साल्ट के नाम से बिकने वाली दवा को सामान्यतया जेनरिक माना जाता रहा है। वैसे बाजार में जेनरिक दवाइयों को ‘ऐज अ ब्रांड’ बेचने का भी चलन है, जिसे आम बोलचाल में जेनरिक ब्रांडेड कहा जाता है। लेकिन ‘प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना’ के अंतर्गत खुलने वाली सभी दवा दुकानों पर हम लोग विशुद्ध जेनरिक दवा रखते हैं। यहां पर स्ट्रीप पर साल्ट अर्थात रसायन का ही नाम लिखा होता है' अपने लक्ष्य को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि,'बीपीपीआई का गठन 2008 में हुआ था। तब से लेकर 2014 तक उतनी सफलता नहीं मिली जितनी मिलनी चाहिए थी। लेकिन 2014 से सरकार ने इस दिशा में तेजी से काम किया है और आज हम 3350 से ज्यादा जनऔषधि केन्द्र खोलने में सफल रहे हैं। 2018-19 में जनऔषधि केन्द्रों की संख्या 4000 तक ले जाने का हमारा लक्ष्य है।'
देश के लोगों को आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि, 'जनऔषधि एक सामाजिक आंदोलन की अवधारणा है। इसमें चिकित्सकों एवं फार्मासिस्टो की भूमिका बहुत अहम हैं। इस आंदोलन को जन-जन तक पहुंचाने के लिए चिकित्सकों का सहयोग अपेक्षित है। यह सच है कि चिकित्सकों का सहयोग उस रूप में नहीं मिल पाया है, जिस रूप में मिलना चाहिए था। लेकिन हम आशान्वित हैं कि देश के चिकित्सक भी इस पुनीत अनुष्ठान में अपनी आहूति और तीव्रता के साथ देते रहेंगे। इस अवसर पर गांधी का स्वास्थ्य चिंतन की चर्चा करते हुए स्वस्थ भारत अभियान के सह संयोजक एवं गांधीवादी चिंतक प्रसून लतांत ने कहा कि गांधी अंतिम जन की बात करते थे लेकिन स्वास्थ्य को लेकर डॉक्टरों के पास जाने की बजाय स्वयं संयम रखकर रोगमुक्त होने की बात करते थे। न्यूरो सर्जन डॉ मनीष ने कहा कि देश की जनता के लिए जनऔषधि कारगर तो है ही साथ ही साथ देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी जरूरी है। गांधी अंतिम जन की बात करते थे, अब हम सब की जिम्मेदारी है की हम जनऔषधि को जन-जन तक पहुचाएं।
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ ममता ठाकुर ने कहा कि आज महिलाओं को अपने स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा जागरूक रहने की जरूरत है। फर्मासिस्ट का पक्ष फर्मासिस्ट फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनय कुमार भारती ने रखा। वहीं वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी एवं सामाजिक कार्यकार्यकर्ता अमरनाथ झा ने स्वस्थ भारत की गतिविधियों की सराहना की। एवरेएस्टर दलजिन्दर सिंह ने लोगों को सेहत के प्रति सचेत रहने का संदेश दिया। इस अवसर पर 'स्वस्थ भारत : एक परिचय' पुस्तिका का लोकार्पण हुआ। इसके अलावा स्वस्थ भारत ने अपने विचार के सहयोगी साथियों को सम्मानित भी किया। स्वागत भाषण स्वस्थ भारत के चेयरमैन आशुतोष कुमार सिंह ने किया। स्वस्थ भारत का परिचय अनुतोष सिंह ने कराया वहीं धन्यवाद ज्ञापन धीप्रज्ञ द्विवेदी ने किया। मंच संचालन रंगकर्मी, कवि एवं लेखक मनोज भाउक ने किया।
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