विशेष : न्यायिक समीक्षा के बहाने एट्रोसिटी एक्ट की न्यायिक हत्या। - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

विशेष : न्यायिक समीक्षा के बहाने एट्रोसिटी एक्ट की न्यायिक हत्या।

  •  HRD के राष्ट्रीय प्रमुख डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजा


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*हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन की ओर से राष्ट्रपति के नाम 'न्यायिक समीक्षा के बहाने अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 की सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गयी न्यायिक हत्या के विरुद्ध संज्ञान लेने के संबंध में ज्ञापन।'*
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हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन (भारत सरकार की विधि अधीन दिल्ली से रजिस्टर्ड राष्ट्रीय संगठन R. No.: ROS/North/452/2015), राष्ट्रीय प्रमुख का कार्यालय: 7 तंवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006, राजस्थान







ज्ञापन-पत्र , दिनांक: 31.03.2018





प्रतिष्ठा में,

राष्ट्रपति, भारत सरकार, राष्ट्रपति भवन, नयी दिल्ली-110001

विषय: न्यायिक समीक्षा के बहाने अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 की सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गयी न्यायिक हत्या के विरुद्ध संज्ञान लेने के संबंध में ज्ञापन।

संदर्भ: अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 को निष्प्रभावी करने के मकसद से भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय दिनांक: 20.03.2018

माननीय महोदय,

उपरोक्त विषय एवं संदर्भ में आपका ध्यान आकृष्ट करके आपको अवगत करवाया जाता है कि संसद द्वारा अधिनियमित कानूनों की न्यायिक समीक्षा करना और सभी कानूनों का सही से क्रियान्वयन करवाना न्यायपालिका का अधिकार और दायित्व दोनों है। यह भी सर्वविदित है कि भारत में जन्मजातीय आधार पर हजारों सालों से जारी दुराशय पूर्वक विभेद और उत्पीड़न को रोकने के लिये संसद द्वारा अधिनियमित अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 के सम्पूर्ण प्रावधान, आज तक भारत के किसी भी राज्य में अधिनियम के प्रावधान के अनुसार लागू नहीं किये गये।

          1. इसके बावजूद भारत की न्यायपालिका द्वारा स्वयं संज्ञान लेकर, इस विधिक अवज्ञा के लिये किसी भी सरकार को इसके लिये जिम्मेदार या दोषी नहीं ठहराया गया।
          2. इसके ठीक विपरीत बिना स्वतंत्र और आधिकारिक आंकड़ों के अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 के दुरुपयोग को आधार बनाकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा न्यायिक समीक्षा के नाम पर इस अधिनियम के प्रावधानों को इस प्रकार से बदल दिया गया, जिससे कि उत्पीड़ित को नहीं, बल्कि अत्याचार करने वालों को संरक्षण मिल सके।

          3. आपको ज्ञात है कि अजा एवं अजजा के हितों से सम्बद्ध संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों की न्यायपालिका द्वारा 1950 से संकीर्ण और नकारात्मक व्याख्या की जाती रही हैं। जिन्हें निष्प्रभावी करने के लिये संसद को अनेकों बार संविधान में संशोधन करने पड़े हैं। जिससे वंचित वर्गों के प्रति न्यायपालिका के संकीर्ण और नकारात्मक न्यायिक दृष्टिकोण की हकीकत उजागर और प्रमाणित हो चुकी है।

          4. आपको ज्ञात है कि न्यायपालिका के उपरोक्त दृष्टिकोण की मूल वजह है-अनुच्छेद 16 (4) की अनदेखी करके सरकार द्वारा न्यायपालिका में अजा एवं अजजा वर्गों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित नहीं किया जाना है। 20 मार्च, 2018 को पारित उपरोक्त न्यायिक निर्णय भी इसी बात का प्रमाण है कि न्यायपालिका द्वारा वंचित वर्गों के हितों की नकारात्मक और संकीर्ण व्याख्या लगातार जारी है।

          5. आपको ज्ञात है कि 20 मार्च, 2018 को पारित उपरोक्त न्यायिक निर्णय के मार्फत वंचित वर्गों को कानून के संरक्षण से महरूम कर दिया गया है। साथ ही जातीय विभेद तथा उत्पीड़न करने की मानसिकता के लोगों को मनमाने अपराध करने की खुली छूट मिल गयी है।

          6. आपको ज्ञात है कि न्यायिक समीक्षा के आधार पर किसी कानून को बदलना न्यायपालिका के अधिकार से बाहर है। इसके बावजूद भी सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक समीक्षा के बहाने सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाया गया निर्णय अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 की न्यायिक हत्या के समान है।

          7. जिस देश में सामान्य अपराधियों के विरुद्ध रिपोर्ट नहीं लिखना आम बात है, वहां सदियों से उत्पीड़ित तथा विभेद के शिकार करोड़ों लोगों को, उन्हीं उत्पीड़कों के रहमो-करम पर छोड़ देना, जो हमेशा से अन्याय करते रहे हैं, यह न्यायशास्त्र के मौलिक सिद्धांतों और प्राकृतिक न्याय का मजाक है। इन हालातों में अजा एवं अजजा वर्गों में शामिल हजारों समुदायों के करोड़ों लोग संसार के सबसे बड़े लोकतंत्र में निसहाय, निरीह और अत्याचारियों के रहमो-करम पर जीने को विवश हो जायेंगे। जिससे उनका लोकतंत्र से विश्वास उठ सकता है।

आग्रह एवं अपेक्षा
उपरोक्तानुसार वंचित वर्गों से जुड़े तथ्यों और जमीनी हालातों से अवगत करवाते हुए, वंचित वर्गों के हितों के लिये सेवारत हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन के देशभर में सेवारत लाखों समर्थकों, सहयोगियों तथा सदस्यों की ओर से आप से विशेष आग्रह और उम्मीद है कि आप भारत के राष्ट्रप्रमुख एवं संविधान के सर्वोच्च संरक्षक के रूप में आपकी सरकार को आदेश जारी करके अजा एवं अजजा अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 के बारे पारित न्यायिक निर्णय को उचित संवैधानिक प्रक्रिया के जरिये लागू होने से अविलम्ब रुकवाकर संविधान एवं इंसाफ की गरिमा को कायम रखकर वंचित वर्गों की लोकतंत्र में अटूट आस्था तथा संवैधानिक विश्वास को जिंदा रखेंगे।



भवदीय
(डॉ. पुरुषोत्तम मीणा)
राष्ट्रीय प्रमुख
हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन

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