नयी दिल्ली , 12 अप्रैल, उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर ने आज एकबार फिर शीर्ष अदालत के कामकाज को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की और मुकदमों के आबंटन के लिये दिशानिर्देश बनाने हेतु पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण की जनहित याचिका सूचीबद्ध करने से इंकार कर दिया। तेजी से हुये घटनाक्रम में न्यायमूर्ति चेलामेश्वर द्वारा पूर्व कानून मंत्री की जनहित याचिका सूचीबद्ध करने से इंकार किये जाने के बाद उनके पुत्र प्रशांत भूषण ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के न्यायालय में गये और वहां इस याचिका को सुनवाई के लिये शीघ्र सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया। प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा , ‘‘ हम इसे देखेंगे। ’’ भूषण ने शुरू में इस याचिका का उल्लेख न्यायमूर्ति चेलामेश्वर के समक्ष किया था ओर कहा था कि यह आपात स्थिति है। उन्होंने कहा कि वह न्यायमूर्ति चेलामेश्वर की पीठ के मामले का जिक्र कर रहे हैं क्योंकि जनहित याचिका में रोस्टर के मुखिया की अवधारणा को चुनौती दी गयी है और इसे प्रधान न्यायाधीश नहीं सुन सकते। न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने कहा कि वह इस मामले को नहीं देखना चाहेंगे क्योंकि ऐसा करने की वजह एकदम साफ है।
न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने शीर्ष अदालत के कामकाज और न्यायिक मामलों में कार्यपालिका के कथित हस्क्षेप के बारे में उनके और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ के दो पत्रों की पृष्ठभूमि में यह टिप्पणी की थी। न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने आज कहा कि उन्होंने कुछ दिन पहले शीर्ष अदालत के कामकाज और देश की स्थिति को सामने रखते हुये एक पत्र लिखा था। न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने भूषण से कहा , ‘‘ कोई है जो लगातार मेरे खिलाफ अभियान चला रहा है कि मैं कुछ पाना चाहता हूं। मैं इसमें बहुत कुछ नहीं कर सकता हूं। मुझे खेद है। आप कृपया मेरी परेशानी समझिये। ’’ उन्होंने कहा कि देश सब कुछ समझेगा और अपना रास्ता चुनेगा। उन्होंने कहा , ‘‘ मैं नहीं चाहता कि अगले 24 घंटे के भीतर मेरा एक और आदेश उलटा जाये। इसीलिए मैं यह नहीं कर सकता। कृपया मेरी परेशानी समझिये। ’’ निश्चित ही उनका इशारा प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा पिछले साल 10 नवंबर को उनका एक आदेश बदलने की घटना की ओर था।
न्यायमूर्ति चेलामेश्वर की पीठ ने मेडिकल कालेज में प्रवेश के लिए कथित घोटाले से संबंधित मामले पर सुनवाई के लिये एक गैर सरकारी संगठन की जनहित याचिका पर शीर्ष अदालत के पांच वरिष्ठतम न्यायाधीशों की वृहद पीठ गठित की थी। परंतु प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इसे बदलते हुये कहा था कि चूंकि प्रधान न्यायाधीश रोस्टर के मुखिया हैं , इसलिए सिर्फ उन्हें ही पीठ गठित करने का अधिकार है और दो न्यायाधीशों या तीन न्यायाधीशों की पीठ खुद को मुकदमा आबंटित नहीं कर सकती है और न ही पीठ के गठन का निर्देश दे सकती है। प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कल ही एक अन्य फैसले में व्यवस्था दी है कि प्रधान न्यायाधीश ‘‘ समकक्षों में प्रथम हैं और उन्हें मुकदमों की सुनवाई के लिये पीठ गठित करने और उन्हें मुकदमे आबंटित करने का अधिकार है जो एक विशिष्ट स्थान है। न्यायमूर्ति चेलामेश्वर के नेतृत्व में चार वरिष्ठ न्यायाधीशों न्यायमूर्ति रंजन गोगोई , न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने इस साल 12 जनवरी को संयुक्त प्रेस कांफ्रेस करके एक तरह से प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ बगावत कर दी थी जिससे न्यायपालिका और देश की राजनीति हतप्रभ रह गयी थी।
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