ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की भी तमन्ना होती है उनके बच्चे भी इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़े। लेकिन महंगी फीस के कारण वो अपने बच्चों का एडमिशन नहीं करा पाते। लेकिन सोनभद्र के दुद्धी ब्लाक के कलकली बहरा गांव में एक ऐसा प्राइमरी स्कूल है जो कान्वेंट स्कूल से भी दो कदम आगे है। इस स्कूल के प्रधानाध्यापिका अपनी जेब से पैसा खर्च कर छात्र छात्राओं को कान्वेंट स्कूल जैसी सुविधाएं दे रही हैं। स्कूल के फर्नीचर से लेकर जमीन पर बिछी कालीन तक उन्हीं के पैसों से आयी है। ये स्कूल कान्वेंट स्कूल की तरह नजर आता है। इसके चलते समय समय पर स्कूल के प्रधानाध्यापिका को उत्कृष्ट सेवा के लिए भी जिला प्रशासन द्वारा सम्मानित किया गया जो पूरे स्कूल के साथ साथ पूरे जनपद के लिए गौरव और सम्मान की बात है। परिणाम यह है कि योगी सरकार ने इस प्राइमरी विद्यालय को अंग्रेजी माॅडल का स्कूल घोषित किया है। मतलब साफ है यह “सरकारी स्कूल लोगों के लिए जहा नजीर बन गया है, वही लोगों की उस सोच को भी बदल रहा है कि सरकारी स्कूल हर मामले में बद से बदतर होते हैं। जरुरत इस स्कूल से सीख लेने की है
नाम है वर्षा जायसवाल। इस अध्यापिका ने अपने जुझारूपन से इस सरकारी स्कूल को ऐसा बना दिया है जिसको पहली नजर में देखने पर आपके लिए ये यकीन करना मुश्किल होगा कि ये सरकारी स्कूल ही है। यहां पर पढ़ने वाले बच्चे तीन से चार महीने में अपना पूरा परिचय और जरूरत की चीजें कान्वेंट स्कूल के बच्चों की तरह अंग्रेजी में बोलने लगते हैं। प्रधानाध्यापिक के लगन व परिश्रम का ही कमाल है कि यूपी के सोनभद्र के दुद्धी ब्लाक के कलकली बहरा गांव का प्राइमरी स्कूल माॅडल इंग्लिश स्कूल के नाम से जाना जाता है। हाल ही में सरकार ने इस प्राथमिक स्कूल को इंग्लिश मीडियम स्कूल का दर्जा दी है। गौर करने वाली बात यह है कि यह स्कूल बिल्कुल पिछड़े आदिवासी इलाके में है। झारझंखाड़ से घिरे इस विद्यालय के आसपास कुछ भी नहीं है। स्कूल से चार-पांच सौ मीटर दूर कुछ कुछ दूरियों पर सिर्फ झोपड़ी ही दिखते है। ऐसे में वर्षा दूसरे सरकारी शिक्षकों के लिए मिसाल हैं। पूरी लगन से शिक्षा की लौ जलाए हुए हैं। स्कूल में ऐसा माहौल बना देती हैं कि बच्चों का पढ़ाई में मन लग सके। इसके लिए कई बार अपने पास से पैसे खर्च कर देती हैं। यही वजह है कि उनके स्कूल के बच्चे अंग्रेजी भी बोलते हैं। खास यह है कि वर्षा ने स्कूल में पर्सनल प्रोजेक्टर के जरिए शैक्षिक एवं भौतिक वातावरण पढ़ाई के अनुकूल बनाया। वह बताती हैं कि अब यहां प्रार्थना भी अंग्रेजी में होती है। हालांकि बाद में हिंदी में भी कराई जाती है। इसके बाद बच्चे अंग्रेजी में न्यूज पढ़ते हैं। दैनिक रूप से अच्छे विचार प्रस्तुत करते हैं। विद्यालय की दीवारों पर स्लेबस से संबंधित पाठ हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में है। पेंटिग्स और मॉडल भी बनाए गए हैं। अब यहां कोई भी अधिकारी भ्रमण के लिए आता है और बच्चों से सवाल करता है तो बच्चे अंग्रेजी में जवाब देते हैं। स्कूल का यह माहौल गांव के लोगों को भी खूब भा रहा है। यही वजह है कि स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस साल स्कूल को बेहतर शैक्षिक स्तर, छात्र संख्या, भौतिक वातावरण, पढ़ाई के तौर तरीके आदि की बदौलत सर्वश्रेष्ठ स्कूल के रूप में चुना गया है।
स्कूल की प्रधानाध्यापिका वर्षा बताती हैं, “मेरी हमेशा से ये इच्छा रही है सरकारी स्कूल में बच्चे भेजने वाले पैरेंट्स को कभी ये अफसोस न रहे कि उनके पास पैसे नहीं हैं। पैसे के अभाव में ही वो मजबूरी में अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजतें हैं। सरकारी स्कूल में वो अपने बच्चों को भेजकर मजबूरी न समझे बल्कि उनके बच्चे को कान्वेंट स्कूल जैसी शिक्षा मिल रही है ऐसा विश्वास करें।” “हमारे स्कूल के बच्चे फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं ऐसा तो हम नहीं कह सकते लेकिन इतना जरुर कहेंगे कि वो अपने परिचय से लेकर सामान्य आम बोलचाल की अंग्रेजी बखूबी बोल लेते हैं। इनमे अंग्रेजी भाषा की इतनी समझ है कि किसी कान्वेंट स्कूल के बच्चे से बात करने में पीछे नहीं रहते हैं। वर्षा के इस दावे के बाद मैने स्वयं इस स्कूल का विजिट किया। “इस स्कूल के बच्चों से सवाल पूंछने पर बहुत ही संतोषजनक जबाब मिला। कहा जा सकता है शिक्षिका का प्रयास बहुत ही सराहनीय है। और सभी के लिए एक उदहारण भी हैं। अगर विद्यालय के शिक्षक चाह ले तो स्कूल की तस्वीर बदलने में समय न लगे, इस स्कूल की तरह उनकी भी गिनती माडल स्कूल की तरह होने लगे।” वर्षा दुद्धी के जाबर में पली बढ़ी जरुर है लेकिन उन्होंने ग्रेजुएशन 2003 में पं मदन मोहन मालवीय के शिक्षा की बगिया बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय से की है। बनारस से ही उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएट भी किया। वर्ष 2009 से 2011 तक ट्रेनिंग के बाद जब साल 2011 में इनका सलेक्शन सरकारी स्कूल के प्राथमिक पाठशाला में हुआ तब इनकी खुशी का ठेकाना न रहा। वह बताती है, “बच्चे पढ़ाई के लिए इस ढंग से आते हैं ये मैंने पहली बार देखा था। कोई बिना चप्पल पहने, शर्ट की बटने खुली हुई, बच्चे बिना कंघी किये हुए स्कूल आ जाते थे। मैंने इससे पहले बच्चों को कभी इस ढंग से स्कूल आते नहीं देखा था।” वह जिस परिवेश से आयीं थी उनके लिए इस प्राथमिक पाठशाला में पढ़ाना बहुत मुश्किल था। लोग कहने लगे कि तुम्हे वापस शहर लौट जाना चाहिए, इन बच्चों को पढ़ाना तुम्हारे बस की बात नहीं। उनकी ये बात उन्हें परेशान करने लगी। तभी उन्होंने ठान लिया कि कुछ भी हो जाए अब वो वापस तो नहीं जायेंगी। वर्षा ने इस कड़ी चुनौती को स्वीकार किया। पहले स्कूल दिशा व दशा सुधारी। चहारदीवारी के बीच चारों तरफ फूलों की बगिया लगाई। गांव में अभिभावकों से संपर्क उन्हें अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रेरित किया। वर्षा बताती हैं, “इस स्कूल में मुझे सबकुछ खुद ही करना था। तीन साल में ये स्कूल माडल स्कूल बन गया। इससे हमारा उत्साह बढ़ा। परिणाम यह हुआ कि अब इसे अंग्रेजी स्कूल का दर्जा भी मिल गया।
बता दें, इस स्कूल में कोर्स को बहुत ज्यादा रटाने का प्रयास नहीं किया जाता है। रोचक ढंग से पढ़ाई को आसान किया जाए इसके लिए कई तरह की गतिविधियां कराईं जाती हैं। बच्चे शनिवार को बैग लेकर नहीं आते हैं, शनिवार को ‘नो बैग डे’ रहता है जिससे बच्चे खुलकर अपने मन की बात कर पायें। बच्चे वेस्ट मटेरियल से उपयोगी वस्तुएं बनाते हैं। समय-समय पर सांस्कृतिक गतिविधियां करायीं जाती हैं, यहां सभी त्योहार भी मनाये जाते हैं। बच्चे फर्नीचर पर बैठते हैं, पूरी ड्रेस से लेकर आई कार्ड तक बच्चे लगाकर आते हैं। ये बच्चे समय-समय पर कान्वेंट स्कूल में विजिट करने जाते हैं। वर्षा का कहना है, “आज स्कूल में जितनी भी सुविधाएं हैं वो उनके पति, उनकी खुद की तनख्वाह एवं आस-पास के लोगों के सहयोग से सम्भव हो पायी हैं। स्कूल में जो भी विजिट करने आता है कुछ न कुछ योगदान देकर ही जाता है। स्कूल में बच्चों के लिए लाइब्रेरी से लेकर खेलकूद की सभी सुविधाएं मौजूद हैं।” स्कूल में पढ़ने वाली छात्रा रंगीला एवं प्रिंस बताते हैं, ”पापा कह रहे थे इंग्लिश मीडियम बड़े स्कूल में पढ़ाएंगे, लेकिन मम्मी कह रही थीं कि पैसे नहीं है। तो हमें मजबूरी में सरकारी स्कूल आना पड़ा। जब हम इस स्कूल में आए तो हमें बहुत अच्छा लगा। यहां स्कूल में अगर हमारे पास किताबें नहीं रहती हैं तो स्कूल में लाइब्रेरी से ले लेते हैं। मैम का पर्सनल प्रोजेक्टर भी है जिससे वे सिखाती हैं और हमें अक्सर खेलकूद के लिए बाहर ले जाती हैं।”
फिरहाल, मैने विजिट के दौरान पाया कि स्कूल के प्रधानाध्यापक और सहायक अध्यापको की कड़ी मेहनत से ये स्कूल बखूबी कान्वेंट स्कूल की तरह नजर आया। बच्चों के सपने साकार हुए। उन्होंने मन लगाकर पढ़ना तो शुरू किया ही साथ ही सर्व धर्म प्रार्थना, योग, कड़ी मेहनत से सीखा। इस विद्यालय ने तो जिलास्तर पर कई पुरस्कार भी जीते हैं। विद्यालय के छात्र छात्राओं को अपना ये सरकारी स्कूल ही कान्वेंट स्कूल लगता है। “इस प्राथमिक पाठशाला में पढ़ने वाले बच्चे इस स्कूल में आने वाले अतिथि का इंग्लिश में वेलकम गीत गाकर स्वागत करते हैं। इस स्कूल में हर वो संसाधन मौजूद है जो एक अच्छे कान्वेंट स्कूल में होना चाहिए। बेहतर स्कूल की तरह इस स्कूल में लाइब्रेरी भी है, जहां छात्र छात्राएं पढ़ाई करते हैं। लाइब्रेरी में स्कूल की पुस्तकों के साथ साथ सामान्य ज्ञान की भी किताबें मौजूद हैं।” प्राथमिक स्कूलों में घटती छात्र संख्या वाले शिक्षकों के लिए वर्षा ने कड़ी मेहनत और स्वयं के संसाधनों से मॉडल स्कूल बनाकर एक मिसाल पेश की है। किसी अंग्रेजी स्कूल से बेहतर पढ़ाई से हर अभिभावक ऐसे स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाना चाहता है। स्कूल में जहां हर बच्चा शौचालय का उपयोग करता है, वहीं छात्र-छात्राएं बाकायदा डाइनिंग टेबल पर मिड-डे मील का खाना खाते हैं। स्कूल में संगीत सीखने की भी सुविधाएं हैं। स्कूल में विज्ञान, गणित तथा अंग्रेजी विषय के अलावा कला, संगीत एवं सॉफ्ट-स्किल्स तथा व्यक्तित्व के सर्वागीण विकास पर विशेष बल दिया जाएगा। इसमें कम्प्यूटर शिक्षा उपलब्ध कराई जाएगी। शिक्षा की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
कहा जा सकता है प्राइवेट स्कूलों की फीस पर लगाम लगाने की कार्ययोजना सामने आई है तो अब प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर सरकारी स्कूलों को इंग्लिश माध्यम में तब्दील करने की योजना परवान चढ़ सकती है। यूपी सरकार प्रदेश में गरीब और ग्रामीण बच्चों को शहरी पब्लिक स्कूल के बच्चों की तरह स्मार्ट बनाने की कार्ययोजना पर काम कर रही है। इसीलिए शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए और गरीब बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई कराने के लिए 5000 अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खोलने की तैयारी कर रही है। इसके लिए इसके लिए सरकार ने हर ब्लाक स्तर पर पांच सरकारी स्कूलों को चयन करने का जिम्मा बेसिक शिक्षा विभाग को दिया है। योगी सरकार का मानना है कि पढ़ाई में तो गांव, देहात और कस्बों के बच्चे शहरी बच्चों से आगे या बराबर जरूर होते हैं लेकिन अंग्रेजी ना बोल पाना या अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई का ना होना सबसे बड़ी बाधा होती है। उनके कैरियर को पंख नहीं लगा पाता। योगी सरकार की यह सोच न सिर्फ सुर्खियां बटोर रही है बल्कि तारीफ भी खूब बटोर रही है। क्योंकि ये उत्तर प्रदेश ही है जो राजनीतिक तौर पर अंग्रेजी के विरोध का गवाह भी रहा है।
(सुरेश गांधी)
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