पिछले कई दिनों से दो अमानवीय कृत्यों की मीडिया में और अन्यत्र भी जबरदस्त चर्चा चल रही है।दो बेटियों को यौन-पिपासु दरिंदों ने अपनी हवस का शिकार बनाया।एक घटना यूपी के उन्नाव की है और दूसरी जम्मू-कश्मीर के कठुआ की। कठुआ वाली नाबालिग बेटी की तो बलात्कार के बाद हत्या ही कर दी गयी। टीवी चैनलों और समाचारपत्रों में लगातार इन दो दुष्कृत्यों पर चर्चा हो रही है।मानवता को शर्मसार करने वाली इन दोनों घटनाओं की जितनी भी निंदा की जाय, कम है।अपराधियों को किसी भी हालत में बख्शा नहीं जाना चाहिए।जैसा कि होता है, प्रायः ऎसी घटनाओं को लेकर विभिन्न पार्टियाँ अथवा सामाजिक संघठन राजनीति करने लग जाते हैं, जो सर्वथा अनुचित है।
यहां पर मुझे कश्मीर की बेटी सरला भट्ट की याद आ रही है।सरला भट श्रीनगर के एक अस्पताल में नर्स थी जिसे आतकंवादियों द्वारा सामूहिक बलात्कार के बाद उसके शरीर को चीर कर सरे-बाज़ार घुमाया गया था और बाद में सडक पर फेंक दिया गया था। गूगल में उसका क्षत-विक्षत चित्र और पूरी दर्दनाक कहानी मौजूद है। धर्मनिरपेक्षता और मानवाधिकार के अलम्बरदारों के मुंह पर तमाचा जड़ने वाला तथा आँखों में आंसू लाने वाला चित्र देखेंगे, तो कलेजा मुंह को आ जाएगा। सरला भट सच्ची देश-भक्तिन थी। सुना है उसने सुरक्षा कर्मियों को अस्पताल में चुपचाप इलाज करा रहे आतंकियों के ठिकानों का पता बताया था जिसकी कीमत उसे बेदर्दी के साथ चुकानी पड़ी। शायद सच्चे राष्ट्रभक्तों की यही नियति होती है!बताया जाता है कि उसके हत्यारे वादी में मौजूद हैं और खुले-आम घूम रहे हैं।
मैं ऊपर की घटनाओं की तुलना सरला भट्ट की घटना से मात्र इसलिए कर रहा हूँ, यह रेखांकित करने के लिए,कि सरला भी तो इस देश की बेटी थी,उसकी भी तो दरिंदों ने अस्मत लूटी थी,वह भी तो किसी की लाडली थी।उसकी जघन्य हत्या पर कोई हो-हल्ला नहीं,कोई धरना-प्रदर्शन नहीं,कोई बयानबाज़ी नहीं।मीडिया चुप और नेतागण भी चुप।ऐसा क्यों है कि एक जगह हमारा मीडिया चुप रहना पसंद करता है और दूसरी जगह छाती कूटना प्रारम्भ करता है। हमारा देश धर्म-निरपेक्ष देश है। कितना है और कब से है, यह शोध का विषय है। मिलजुल कर रहना और एक दूसरे के सुख दुःख में शामिल होना कौन नहीं चाहता? सभी समुदायों में, सभी धर्मावलम्बियों और सम्प्रदायों में सौमनस्य बढ़े और धार्मिक उन्माद घटे, आज की तारीख में समय की मांग यही है।मगर यह तभी संभव है जब सभी समुदाय और सम्प्रदाय मन से ऐसा चाहेंगे।
यहां पर फिर दोहराना चाहूँगा कि सरला का उदाहरण देकर उन्नाव और कठुआ की घटनाओं की गंभीरता को कमतर आंकने का मंतव्य कदापि नहीं है।बस, मंतव्य यह है कि क्यों सरला के हत्यारे अभी तक पकड़े नही गए?सरला के मामले में भी देश और मीडिया क्यों एक नहीं हुआ? अगर आवाज़ उठायी भी गई तो हत्यारे अभी तक सलाखों के पीछे क्यों नहीं हैं? सरकार से अनुरोध है कि वह सरला भट के हत्यारों को पकड़ने के लिए पहल करे और वीरगति को प्राप्त कश्मीर की इस बहादुर बेटी के उत्सर्ग और उसकी राष्ट्रभक्ति को ध्यान में रखते हुए उसे मरणोपरांत दिए जाने वाले किसी उपयुक्त अलंकरण से विभूषित करे। कश्मीर की इस देश-भक्तिन वीरांगना (बेटी)के नाम पर कोई स्मारक भी बने तो लाखों पंडितों की आहत भावनाओं की कद्रदानी होगी और साथ ही देश की सुरक्षा हेतु आत्मोत्सर्ग की भवना रखने वालों के प्रति यह बहुत बड़ी कृतज्ञता भी होगी।
शिबन कृष्ण रैणा
अलवर
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