नयी दिल्ली, 11 अप्रैल, उच्चतम न्यायालय ने देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को एक बार फिर सर्वोच्च संवैधानिक अधिकारी करार देते हुए विभिन्न पीठों को मुकदमों के आवंटन के लिए नयी व्यवस्था विकसित करने संबंधी जनहित याचिका आज खारिज कर दी। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ृ की पीठ ने याचिकाकर्ता लखनऊ निवासी वकील अशोक पांडे की उस याचिका को ‘निंदात्मक’ भी करार दिया, जिसमें उन्होंने ‘मनमाने ढंग से’ पीठ के गठन करने और विभिन्न पीठों को मुकदमे सौंपने में सीजेआई की एकतरफा शक्ति पर सवाल उठाया गया था। पीठ की ओर से न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने संक्षिप्त फैसला सुनाते हुए कहा, “संस्थागत दृष्टि से उच्चतम न्यायालय के कामकाज के नियंत्रण के लिए सीजेआई ही अधिकृत होते हैं। मुख्य न्यायाधीश खुद ही एक संस्था है।” शीर्ष अदालत ने सीजेआई द्वारा कामकाज के मनमाने तरीकों को अपनाने के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि सीजेआई सर्वोच्च संवैधानिक अधिकारी हैं। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने अपने 16 पृष्ठ के फैसले में कहा है कि विभिन्न पीठों को मुकदमे आवंटित करने का संवैधानिक अधिकार सीजेआई में सन्निहित है। उन्होंने कहा, “सीजेआई के खिलाफ अविश्वास की बात नहीं की जानी चाहिए।” याचिकाकर्ता ने मुकदमों के बंटवारे के लिए एक नये सिरे से नियम कानून तैयार करने का आग्रह किया था। दरअसल सर्वोच्च न्यायालय में पीठों के गठन और उनके अधिकार क्षेत्र के आवंटन के लिए एक प्रक्रिया विकसित करने को लेकर एक याचिका दायर की गयी थी। न्यायालय ने गत शुक्रवार को याचिका पर संक्षिप्त बहस के बाद कहा था, “ठीक है। हम आदेश पारित करेंगे।” याचिका में सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्रार को एक विशेष नियम रखने का भी आदेश जारी करने को कहा गया था कि सीजेआई अदालत में तीन न्यायाधीशों की पीठ में मुख्य न्यायाधीश और दो वरिष्ठ न्यायाधीश हों। संविधान पीठ में पांच सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हों या तीन सबसे वरिष्ठ और दो सबसे कनिष्ठ न्यायाधीश हों। गौरतलब है कि ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ को लेकर इसी तरह की एक याचिका पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने भी दायर की है, जो फिलहाल लंबित है।
बुधवार, 11 अप्रैल 2018
नयी रोस्टर व्यवस्था संबंधी याचिका खारिज
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