बलरामपुर-रामानुजगंज ज़िला छत्तीसगढ़ के उत्तरी हिस्से में आता है। यह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से तकरीबन 440 किलोमीटर दूर है। बलरामपुर-रामानुजगंज के राजपुर ब्लाॅक की करजी पंचायत की सरपंच हैं कमला कुजूर। कमला कुजूर इस गांव की बहू हैं। इनका मायका जसपुर ज़िले के बगीचा तहसील के सन्ना गांव में हैं। कमला की आयु 40 बरस है। कमला की शादी 1992 में हुई। परिवार में पति व तीन बेटियों को मिलाकर कुल पांच सदस्य हैं। कमला ने पांचवी तक की शिक्षा प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम के तहत हासिल की है। कमला के परिवार की आय का मुख्य साधन खेती-बाड़ी व परिवार में कमाने वाले सिर्फ उनके पति ही हैं। परिवार की मासिक आय 3-4 हज़ार रूपये महीना है। पंचायत की कुल आबादी लगभग 1550 है। सरपंच के तौर पर यह कमला का तीसरा सत्र है। इसके पहले वह दो सत्रों में सरपंच रह चुकी हैं। करजी पंचायत की सीट 1995-96 से ही महिला आरक्षित है। कमला ने 1995-96 में पहली बार गांव वालों के कहने पर सरपंच का चुनाव लड़ा व जीत हासिल की। 2004-2005 में कमला कुजूर ने फिर सरपंच के पद पर चुनाव लड़ा व जीत हासिल की। लेकिन 2010 के चुनाव में सरपंच के पद उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस बारे में कमला कुजूर कहती हैं कि-‘‘मैं दो बार से सरपंच का चुनाव जीत रही थी। 2010 के चुनाव में गांव वालों का कहना था कि अब किसी और को भी मौका मिलना चाहिए। इसी वजह से मुझे हार का सामना करना पड़ा। 2010 में सुशीला सिंह सरपंच का चुनाव जीतीं। अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान सुशीला सिंह ने पंचायत में कोई खास काम नहीं किया। इसी कारण 2015 के चुनाव में लोगों ने मुझे तीसरी बार फिर सरपंच चुना। सुशीला सिंह ने अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान पंचायत में सिर्फ एक सीसी रोड के निर्माण के अलावा एक राशन की दुकान का निर्माण कराया था।’’
लोगों की मदद करना, उनकी बात सुनना, लोगों के बीच उठना बैठना कमला को पसंद रहा हैै। लोगों के सुख दुख साझा करने वाली कमला को महिला सीट आने पर लोगों ने यह चाहा कि कमला ही उनकी सरपंच बनें। कमला को पहली बार सरपंच का चुनाव लड़ने के लिए गांव वालों ने ही उन्हें प्रेरित किया। इसीलिए कमला को सरपंच बनने में किसी बड़े विरोध का सामना नहीं करना पड़ा क्योंकि गांव के लोगों ने ही उन्हें चुनाव में भाग लेने के लिए उत्साहित किया था। सरपंच बनने के बाद सभी वर्गांे के लोगों के द्वारा कमला को स्वीकार किया गया। शुरूवात में बैठकों में जाते हुए कमला को थोड़ी बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा। बैठकों में बोलते हुए वह संकोच महसूस करती थीं। उनमें थोड़ा आत्मविश्वास की कमी थी। इस बारे में कमला कुजूर कहती हैं कि-‘‘जब मैं पहली बार सरपंच बनी तो बैंठकों को आयोजन करने में मुझे बहुत परेशानी होती थी। बैठकों में सब लोगों के सामने बोलने में मैं संकोच महसूस करती थी। लेकिन शुरूआती दिनों में मेरे पति ने मेरा पूरा सहयोग किया। पंचायत के कामों के लिए वह हर जगह मेरे साथ जाते थे। अधिकारियों से बात-करने में भी उन्होंने मेरा पूरा सहयोग किया। धीरे-धीरे मेरा आत्मविश्वास बढ़ने लगा और मैं पंचायत के काम-काज स्वंय देखने लगी। आज पंचायत के काम-काज करने में मुझे कोई दिक्कत नहीं होती है। पंचायत मैं विकास से जुडे निर्णय मैं उपसरपंच व पंचों के सहयोग से स्वयं लेती हंू।’’
आज कमला पंचायत के सारे काम काज स्वयं देखती हैं। विकास से जुड़े मुद्दों पर अधिकारियों के सामने अपनी बात बेबाकी से रखती हैं। महिला होने व कम शिक्षित होने के नाते कमला को कभी भी किसी तरह के भेदभाव व उपेक्षा का सामना नहीं करना पड़ा। महिला सरपंच के तौर पर करजी पंचायत के विकास के लिए कमला कुजूर के द्वारा किए गए कामों की एक लंबी सूची है। उन्होंने पंचायत में राशन की दुकान खुलवाने के साथ-साथ चार सीसी रोड का निर्माण करवाया। गांव के लोगों की समस्याओं को जानने के लिए वह महीने में दो बार आम सभा का आयोजन करती हैं। पंचायत को ‘खुले से शौचमुक्त’ बनाने के लिए उन्होंने ग्रामसभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव लेकर पांच सदस्यों की एक समिति का गठन किया। समिती के सदस्य सुबह सवेरे गांव का भ्रमण कर इस बात की निगरानी करते हैं कि कोई खुले में शौच तो नहीं कर रहा है। इसका उल्लंघन करने वालों पर जुर्माने का प्रावधान है। इसके अलावा उन्होंने पंचायत के आंगनबाड़ी केंद्र पर एक अतिरिक्त कक्ष का निर्माण कराया ताकि आंगनबाडी से दिये जाने वाले भोजन को सुचारू रूप से व स्वच्छ तरीके से पकाया जा सके। लोगों को स्वास्थ्य समस्याओं से निजात दिलाने के लिए कमला ने गांव में उप स्वास्थ्य केंद्र शुरू करवाने के लिए कोशिश की और अन्नतः गांव को एक उप स्वास्थ्य केंद्र मिल गया। पानी की समस्या को दूर करने के लिए चार छोटे तालाबों के निर्माण के साथ तीन हैंडपंप लगवाए व पुराने हैंडपंप की मरम्मत करवायी। प्राइमरी स्कूल व पंचायत भवन की मरम्मत करवायी।
पंचायत में विकास के कामों के बारे में गांव की एक स्थानीय निवासी सुमार साय कहती हैं कि- ‘‘पंचायत के विकास के लिए कमला काफी अच्छा काम कर रही हैं। उन्होंने गांव में तालाब का निर्माण कराया जिससे पानी की समस्या दूर हुई है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत लोगों को आवास दिलवाए। हम चाहते हैं कि कमला ही अगली बार भी हमारी सरपंच बनें।’’ कमला का सरपंच के पद पर बार-बार चुना जाना इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने समुदाय की बेहतरी के लिए गांव में काम किये हैं और वह अपनी पंचायत और जनता में लोकप्रिय हैं । कमला आज सरपंच हैं और 2020 के चुनाव में फिर से सरपंच का चुनाव लड़ना चाहती हैं। लेकिन अब राज्य में यह नियम लागू होने की बात है कि जो आठवीं कक्षा तक शिक्षित हंै वही चुनाव में भाग ले सकता है। अगर यह नियम लागू हो जाता है तो यह बात निश्चित है कि वह अगली बार सरपंच का चुनाव लड़ने से वंचित हो जाएंगी। कमला कहती हैं कि ‘‘वह अगला सरपंच का चुनाव लड़ना चाहती हैं किन्तु उनकी शिक्षा पांचवी कक्षा तक ही है। आठवीं पास का नियम आने से वह इस चुनाव में भाग नहीं ले सकेंगी।’’ कमला आगे कहती हैं कि ‘‘केवल वह ही नहीं, गांव की अन्य महिलाएं भी सरपंच का चुनाव नहीं लड़ पाएंगीं जो आठवीं तक पढ़ी नहीं हैं। कमला कहती हैं कि हालांकि हम अपने बच्चों को ठीक से शिक्षित कर रहे हैं इसलिए नई पीढ़ी में शिक्षा का स्तर बढ़ा है लेकिन पहले के ज़माने में लड़कियों को पढ़ाने की परंपरा नहीं थी इसलिए बहुत सी औरतें शिक्षित नहीं हैं। कमला का कहना है कि आंठवीं तक न पढ़ी होने का मतलब यह नहीं कि वह पंचायत और गांव की भलाई के काम नहीं कर सकतीं। इस तरह की नियमावली के लागू होने पर तो वह या उनके जैसी अनेकों, काम करने की उत्साहित महिलाएं पंचायत और शासन में नहीं आ सकेंगी।’’ कमला का हौसला हालांकि अभी भी टूटा नहीं है। वह इस बात के लिए कटिबद्ध हैं कि वह सरपंच की सीट के लिए अगली बार फिर चुनाव में खड़ी होंगी और इसके लिए वह उन शर्तों को पूरा भी करेंगी जो अनिवार्य हैं। कमला कहती हैं कि ‘‘पंचायत मंे आठवीं पास लड़कियों की कमी नहीं हैं मगर चुनाव के लिए इच्छुक आठवीं पास महिलाएं बहुत कम हैं। कमला ने तय किया है कि वह भारत मिशन के तहत आठवीं पास करके सरपंच का चुनाव ज़रूर लड़ेगीं।’’ अब आगे देखना यह है कि क्या राज्य का कोई और नियम तो उनकी इस महत्वाकांक्षा के आड़े नहीं आएगा?
जैसा कि कमला की कहानी से ज़ाहिर है, वह नए आने वाले नियमों की बाधा को पार करके आगे बढ़ना चाहती हैं पर सवाल महत्वपूर्ण है कि ऐसी कितनी बाधाएं हर महत्वाकांक्षी ग्रामीण महिला लांघ पाएगी? तो क्या नियम बनाते समय नीति निर्धारकों को ग्रामीण परिवेश, वहां की स्थितियों, मौजूदा हालातों को नज़र में रखते हुए ही नियम नहीं बनाने चाहिए क्योंकि अन्नतः तो सही व्यक्ति का चुनाव ही काम की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
(गौहर आसिफ)
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