बलरामपुर-रामानुजगंज छत्तीसगढ़ के उत्तरी हिस्से में राजधानी रायपुर से लगभग 440 किलोमीटर की दूरी पर है। 2011 की जनगणना के अनुसार ज़िले की कुल आबादी 695808 है। 29 वर्षीय संतोषी सांडिल्य ज़िले के राजपुर ब्लाॅक के परसागुड़ी ग्राम पंचायत की सरपंच हैं । संतोषी अभी युवा हैं और दो बच्चों की मां हैं। संतोषी सांडिल्य ने कक्षा पांच जबकि पति तेज कुमार सांडिल्य ने कक्षा 12 तक तक की शिक्षा हासिल की है। परिवार की आय का साधन खेती है। संतोषी के परिवार के पास 3.5 एकड़ ज़मीन है जिसकी उपज से ही इनका परिवार अपना जीवन यापन करता है।
परसागुड़ी ग्राम पंचायत की सीट 2010 में महिला सीट हुई और मनियारो इस पंचायत की सरपंच बनीं। इसी सीट पर 2015 में संतोषी सांडिल्य ने सरपंच के चुनाव के लिए प्रतिभाग किया। संतोषी अपने पति के कहने पर पंचायत चुनाव में भाग लेने को तैयार हुईं। मनियारो केवल साक्षर हैं और अपना हस्ताक्षर कर लेती हैं लेकिन उन्होंने अपनी पंचायत के विकास के लिए काम किया। उन्होंने पंचायत में तीन सीसी रोड के अलावा चार कच्ची सड़कें बनवायीं, सामुदायिक भवन का भी निर्माण करवाया। लेकिन 2015 के चुनाव में मनियारो पराजित हुईं और सरपंच बनीं संतोषी सांडिल्य। ग्राम स्तर के राजनैतिक समीकरण भी इसकी एक वजह थे। इस बारे में संतोषी सांडिल्य के पति तेजकुमार मानते हैं कि ‘‘जनता किसी नए चेहरे को पंचायत में देखना चाहती थी। इसी वजह से संतोषी सांडिल्य को 2015 के पंचायत चुनाव में सरपंच के पद पर जीत मिली। मनियारो के दौर में तेजकुमार सांडिल्य उपसरपंच थे और इसका फायदा भी चुनाव के दौरान संतोषी सांडिल्य को मिला और वह चुनाव जीतकर सरपंच के पद काबिज़ हो गईं।
संतोषी को सरपंच बनाने के लिए प्रेरित करने में गांव वालों की भूमिका को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। गांव वालों के बार बार कहने पर ही उनके पति तेजकुमार ने अपनी पत्नी को चुनाव लड़ने के लिए राजी किया। हालांकि संतोषी को चुनावी प्रक्रिया के बारे में बहुत जानकारी नहीं थी पर उनके पति ने इसमें उनकी मदद की। चुनाव का नामांकन भरने से लेकर बाद में पंचायत के रोज़मर्रा के कामों में संतोषी को अपने पति की मदद लगातार मिली। शुरूआती दिनों में बैठकों का आयोजन करने के दौरान उन्हें काफी दिक्कतें हुईं। पंचायत की बैठकों में जाते हुए संतोषी अपने को सहज महसूस नहीं करती थीं। उनके पति ने न केवल उनको काम करने के तरीके बताए बल्कि उनके मनोबल को बढ़ाने में भी मदद की। इसी का परिणाम है कि आज वह स्वयं गांव में बैठकों का आयोजन कर लोगों की समस्याएं सुनती हैं। वह महीने में दो बार ‘आम सभा’ का आयोजन करती हैं। मगर ग्राम सभा की बैठक तो निश्चित दिनों पर ही होती है ? संतोषी कहती हैं, हां, अधिकारिक तौर पर तो यह निश्चित दिनों पर ही होती है। पर मैंने लोगों की समस्याएं सुनने के लिए महीने में दो बार ‘आम सभा’ की व्यवस्था रखी है जिससे लोग अपनी दिक्कतों को बैठक में रख सकें और हम उनके निदान के बारे में सोच सकें।’’ पंचायत के ज़्यादातर निर्णय संतोषी ग्राम सभा में सभी वार्ड पंचांे की सहमति व पति की राय से लेती हैं। संतोषी सांडिल्य को अभी भी अधिकारियों से बात करने में संकोच महसूस होता है, इसीलिए जब वह अधिकारियों से मिलने जाती हैं तो उनके पति तेजकुमार उनके साथ जाते हैं और उनकी ओर से अधिकारियों से बात करते हैं।
पंचायत के काम काज और विकास कार्यों पर अभी संतोषी की ट्रेनिंग चल रही है। अतः पंचायत के कार्यों के हिसाब किताब के बारे में उनकी जानकारी कम है, दूसरे उन्हें लोगों से बात करने में भी थोड़ा संकोच होता है। अतः पंचायत के विकास कार्यों के बारे में संतोषी व उनके पति बताते हैं कि संतोषी ने पंचायत में विकास के अनेक काम किए हैं। पंचायत को शौचमुक्त बनाने के लिए 265 शौचालयों का निर्माण कराया गया। आवागमन को सुगम बनाने के लिए 10 सीसी रोड के निर्माण के साथ-साथ प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 61 परिवारों को आवास उपलब्ध कराये हैं। तीन आंगनबाड़ी केंद्रो के निर्माण के साथ-साथ एक चैक डैम का निर्माण कराया। पंचायत भवन के साथ ही गांव के हाईस्कूल की चारदीवारी का निर्माण कराया। संतोषी ने यह सारे काम अपने छोटे से कार्यकाल में किये हैं और वह अगले चुनाव से पहले शायद बहुत कुछ और भी करेंगी लेकिन आगे की राह शायद इतनी आसान नहीं है। नीति के अनुसार 2015 के चुनाव में प्रतिभाग करने की पात्रता के लिए साक्षर होना ही काफी था। उम्मीदवार अपने हस्ताक्षर कर सके यही काफी होता था। घर में शौचालय का होना भी उम्मीदवारी की एक शर्त थी। हालांकि जिस समय संतोषी ने चुनाव में भाग लिया उस वक्ंत उनके यहां शौचालय बन रहा था। इसे पूरा करने के लिए एक निश्चित समय दिया गया था। राजपुर ब्लाक कार्यालय में लेखपाल के पद पर कार्यरत श्याम लाल गुप्ता कहते है कि-‘‘2015 के चुनाव में सरपंच के पद पर खड़े होने के लिए शौचालय का नियम ज़रूर था। लेकिन जिन लोगों के घर पर शौचालय नहीं था उन्हें चुनाव जीतने के बाद तीन महीने के अंदर अपना शौचालय बनाना था। अगर वह ऐसा नहीं कर पाते हैं तो उनका पद स्वतः रद्द हो जाएगा। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने की वजह से यह ढील दी गई थी।’’ इसीलिए नामांकन के दौरान यह छूट संतोषी को भी मिली। उनके घर में शौचालय निर्माणाधीन था और संतोषी ने अपने घर में शौचालय के निर्माण को न केवल पूरा किया बल्कि आज वो उसे इस्तेमाल भी कर रही हैं। नए राज्य स्तरीय सरकारी नियमों के इस नियम को तो संतोषी ने पूरा कर दिया है पर अगले चुनावों में शायद इस नियम में इतनी भी ढील नहीं दी जाए। तब चुनाव मंे प्रतिभाग करने की इच्छुक कितनी महिलाएं इस दौड़ से बाहर होंगी इसका अभी कोई अनुमान नहीं है। अगले पंचायती राज चुनाव में अगर सरपंच पद के लिए आठवीं पास शैक्षिक योग्यता का नियम पारित होता है तो संतोषी सांडिल्य जैसी न जाने कितनी महिलाएं सरपंच का चुनाव लड़ने से वंचित रह जाएंगी।
(गौहर आसिफ)
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