हरियाणा के पुन्हाना ब्लाॅक की बिसरू पंचायत की पूर्व पंच 65 वर्षीय हलीमा यूं तो निरक्षर हैं किन्तु अपनी जानकारी के दम पर उन्होंने बहुतों के घुटने टिकवा दिए हैं। हलीमा ने 2010 के पंचायत चुनाव में वार्ड पंच का चुनाव लड़ा व जीत हासिल की थी। हलीमा की 20 वार्ड सदस्यांे की पंचायत में सात महिलाएं थीं। हलीमा पंचायत की बहुत ही सक्रिय सदस्य रही हैं। रोजमर्रा के खर्चों के लिए हलीमा खेतों में मजदूरी करती हैं। इसके अलावा दूसरों के लिए लकड़ी काटकर व उपले पाथकर भी वह कुछ पैसे कमा लेती हैं। हलीमा को वृध्दा पेंशन मिलती है। हलीमा के पति होमगार्ड की नौकरी से रिटायर हैं लिहाज़ा उन्हें भी पेंशन मिलती है। इस तरह इन सभी से होने वाली आमदनी से हलीमा के घर का खर्चा चलता है। हलीमा के परिवार में कुल 11 सदस्य है।
हलीमा के बारे में उनके गांव वालों की राय है कि वह किसी सरपंच से अधिक काम करती हैं। हलीमा एक स्थानीय संस्था के साथ जुड़ी हुई हैं। संस्था से जुड़ने के बाद उनकी समझ में काफी बदलाव आया और वह गांव के विभिन्न मुद्दों से जुड़कर काम करने लगीं। इस संयोग ने हलीमा का काफी सशक्तिकरण किया और उन्होंने गांव की पंचायत में पंच के तौर पर काम किया। हलीमा एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर गांव में अपनी पहचान बना चुकी थीं। इसलिए पंच के तौर पर बेशक उनके लिए पंचायत में काम करना इतना मुश्किल नहीं रहा क्योंकि उनके पास पहले से ही काम करने का अनुभव था। इस बारे में हलीमा कहती हैं कि ‘‘सभी पुरुष और सभी औरतें सभी जगह बात करने में सक्षम नहीं होते। मगर वह औरतें भी हैं जिनके पास बात करने की समझ और कहने का सलीका होता है, काम भी करा लेती हैं और स्थान भी बना लेती हैं।’’ शायद यही वजह है कि हलीमा की आज भी गांव समाज में एक पहचान है हालांकि वह पंचायत में किसी अधिकारिक स्थान से नहीं जुड़ी हैं। आज भी बिसरू में किसी को पंचायत से जुड़े किसी काम के बारे में कोई जानकारी लेनी होती हैं तो लोग हलीमा को ही याद करते हैं। गाँव में रहने वाली संगीता बताती हैं कि 18000-19000 हजार की आबादी वाली बिसरू पंचायत में केवल एक ही आंगनबाडी केंद्र थी। हलीमा के कार्यकाल में उनके प्रयासों से ही अब इस पंचायत में 11 आंगनबाड़ी केंद्र हैं।
हलीमा ने अपनी पंचायत से भ्रष्टाचारी और कामचोर अधिकारियों का निकाला जाना सुनिश्चित किया। राशन डिपो की धांधली को रोका और यह तय किया कि लोगों को पूरा राशन मिले। उन्होंने हरिजन बस्ती में पानी की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए पानी की टंकी लगवाई। साथ ही गरीबों को 75 प्रतिशत की छूट वाली आनाज की टंकी सरकार से दिलवाई। हलीमा ने अपने कार्यकाल के दौरान एक अहम काम किया कि उन्होंने स्वच्छ भारत मिशन के तहत सरपंच की मदद से 400 लोगों को 4600 रूपए की पहली किश्त दिलवाकर उनके घरों में शौचालय निर्माण का काम शुरू कराया। आज भी जब वो पंच नहीं है तब भी उन्होंने स्वच्छ भारत मिशन के तहत 25 लोगों को 12000/-रूपये की मदद दिलवायी कि वह अपने घरों में शौचालय का निर्माण शुरू कर सकें।
बिसरू की ग्राम सभा में महिलाओं की भागीदारी को हलीमा ने सुनिश्चित किया। आमतौर पर महिलाओं को ग्राम सभा में आने नहीं दिया जाता था। दूसरे महिलाओं को खुद भी इसमें अपना कोई फायदा नहीं दिखता था। हलीमा ने घर घर जाकर इन महिलाओं से और उनके परिवार वालों से बात की। ग्राम सभा की उपयोगिता के बारे में बताया और ग्राम सभा में महिलाओं की संख्या बढ़ाई। गांव मंे शौचालयों की ज़रूरत को लेकर हलीमा ने सर्वेक्षण किया है। बिसरू काफी बड़ी आबादी की पंचायत है और अभी भी खुले में शौच के अभिशाप से ग्रस्त है। हलीमा बताती हंै कि अभी 45 फीसदी निजी तथा दो-तीन सार्वजनिक शौचालय बनवाने की जरूरत है। गंाव की विलेज हेल्थ न्यूट्रीशन एण्ड सेनिटेशन कमेटी को मिलने वाली राशि बढा़कर 3000/- हो जाए इसके लिए उन्होंने काफी प्रयास किये। साथ ही उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि मध्याह्न भोजन योजना और आंगनबाड़ी से मिलने वाला भोजन स्वच्छ व अच्छा हो तथा गांव में वह सभी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करायी जाएं जो आवश्यक हैं।
मेवात के अन्य इलाकों के समान ही बिसरू पंचायत में भी पानी की किल्लत है। इसके उपचार के लिए हलीमा ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग के बारे में सभी को जागरूक किया, गांव से 50,000/- रूपये इकट्ठा किये तथा रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम तैयार कराया। इससे गांव में पानी की किल्लत काफी हद तक कम हुई है। 40 बुज़ुर्गों को वृद्धावस्था पेंशन दिलवाई। हलीमा ने एक वार्ड पंच के तौर पर पंचायत के विकास के लिए अनेक काम किए। 2015 के पंचायती राज चुनाव में हलीमा सरपंच के पद पर चुनाव लड़ना चाहती थीं मगर शैक्षिक योग्यता के नियम के चलते हलीमा पंचायत चुनाव में प्रतिभाग नहीं कर सकीं। हलीमा पंचायत चुनाव में शैक्षिक योग्यता के पक्ष में बिल्कुल नहीं हैं। उनके लिए वह खुद इसका एक बड़ा उदाहरण है। हलीमा मानती हैं कि पंचायत में काम करने के लिए जानकारी, शिक्षा से ज्यादा जरूरी है। वह कहती हैं जानकारी का अभाव अपंगता है जिससे आदमी घर में लाचार होकर बैठ जाता है। जानकार व्यक्ति गांव मंे घूमकर लोगों के लिए काम करता है और शिक्षा जानकारी का आधार नहीं है। वास्तव में हलीमा को डर इस बात का है कि पंचायत चुनाव में शिक्षा की योग्यता की वजह से कुछ जानकार और अनुभवी लोग पंचायत चुनाव में हिस्सा लेने से वंचित हो रहे हैं। हलीमा स्वयं इसका जीता जागता उदाहरण हैं। हलीमा शिक्षा के खिलाफ नहीं है मगर पंचायत चुनाव में शिक्षा को योग्यता बनाने के खिलाफ हैं।
(मुफीद खान)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें