- क्रूर पूंजीवादी व्यवस्था क्रीमी लेयर के बजाय अधिक न्यायसंगत आरक्षण व्यवस्था को अपनाने पर विचार किया जाना समय की मांग है।-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
आज श्रम दिवस है। संगठित तथा असंगठित श्रमिक हमेशा से शोषित होते रहे हैं। वर्तमान में सरकारी क्षेत्र में सेवारत लोक सेवक भी श्रमिकों की भांति शोषण के शिकार हैं। इसके बावजूद भी सरकारी सेवाओं में नियुक्ति पाने के लिये हर एक युवा सपने देखता रहता है। मगर कुछ समुदायों द्वारा मीडिया के मार्फत सुनियोजित रूप से यह दुष्प्रचारित किया जाता है कि आरक्षण के चलते योग्य युवाओं को सरकारी सेवाओं में नियुक्ति नहीं मिल पा रही हैं। वहीं दूसरी ओर आरक्षित वर्गों के पिछड़े जाति-समुदायों के गरीब परिवारों के युवाओं में भी इस बात को लेकर आक्रोश बढता जा रहा है कि उनको, उनके ही वर्ग के आगे बढ चुके लोगों के कारण शिक्षण संस्थानों में प्रवेश पाने तथा सरकारी नौकरी पाने में मुश्किलातों का सामना करना पड़ रहा है। यहां यह तथ्य समझने योग्य है कि संविधान के प्रावधानों के तहत सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े ऐसे नागरिकों के वर्गों को, जिनका प्रशासनिक सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है, उनके पक्ष में नियुक्ति या पदों को आरक्षित किया जा सकता है। इसी को आम बोलचाल में आरक्षण कहा जाता है। जिसके चलते तुलनात्मक रूप से मेरिट में कम अंक पाने वाले वंचित वर्गों के अभ्यर्थियों को प्रशासनिक सेवाओं में चयनित कर लिया जाता है। यह एक संवैधानिक पक्ष है।
जबकि दूसरा व्यावहारिक पक्ष यह है कि उक्त आरक्षित पदों पर चयनित होकर आरक्षण का लाभ उठा चुके उच्च पदस्थ, उच्च पदों से सेवानिवृत, सुविधा सम्पन्न एवं धनाढ्य लोगों की संतानें ही वर्तमान में अधिकतर आरक्षित पदों पर नियुक्ति पा रही हैं। जिसके पक्ष में कोई आधिकारिक आंकड़े तो नहीं हैं, लेकिन लोक अवधारणा इस विचार की पुष्टि करती है। इस वजह से आरक्षित वर्गों में शामिल पिछड़े समुदायों के नागरिकों और कम शिक्षित लोगों का मत है कि उनकी संतानों को आरक्षित पदों पर नियुक्ति पाने के अवसर लगभग समाप्त हो चुके हैं। इस स्थिति के कारण आरक्षित वर्गों के पिछड़े परिवारों/समुदायों के युवाओं में लगातार आक्रोश बढता जा रहा है। विशेषकर इस कारण भी क्योंकि प्रतिनिधित्व के नाम पर आरक्षित पदों पर नियुक्ति पाने वाले आरक्षित वर्गों के अधिकतर उच्च पदस्थ लोक सेवक अकसर अपने वर्गों या अपने वर्गों के लोगों के उत्थान के बजाय अपने निजी या पारिवारिक विकास पर ही ध्यान देते रहे हैं।
इसी स्थिति को आधार बनाकर कुछ आरक्षण विरोधी समुदाय एवं आरक्षित वर्गों के ऐसे लोग जो प्रतिनिधित्व की संवैधानिक अवधारणा को ठीक से नहीं समझते हैं-क्रीमीलेयर की असंवैधानिक मांग का समर्थन करते देखे जा सकते हैं। जिसको मेरे जैसे संविधानवादी लोग उचित नहीं मानते हैं। अत: अभी तक इस मांग को सफलता नहीं मिल सकी है। दूसरी ओर अजा एवं अजजा वर्गों में क्रीमी लेयर हो या नहीं? इस विषय को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनेकों बार नकारे जाने के बाद भी वर्तमान आरक्षण विरोधी भाजपा के सत्तारूढ होने के बाद अजा एवं अजजा वर्गों में क्रीमी लेयर हो या नहीं विषय पर सुप्रीम कोर्ट विचार कर रहा है। जिसको संघ सहित सभी कट्टर हिंदुवादी संगठनों का समर्थन मिल रहा है। दबे मन से आरक्षित वर्गों के पिछड़े/वंचित परिवारों/समुदायों के युवाओं का भी इस को समर्थन मिल रहा है। इन हालातों में मुझे ऐसा लगता है कि अजा एवं अजजा वर्गों के युवाओं में व्याप्त असंतोष के चलते न्यायपालिक के मार्फत क्रीमी लेयर लागू किये जाने की आशंका को निरस्त करने के बजाय, असंतोष के कारणों पर समय रहते वंचित वर्गों को खुलकर समाधानकारी विचार करने की जरूरत है और इस असंतोष को दबाने के बजाय, जिसे दबाना असंभव है, युवाओं की समस्याओं तथा भावनाओं को समझकर उचित एवं न्यायसंगत समाधान निकाला जाये। क्योंकि क्रीमी लेयर जैसी क्रूर पूंजीवादी आरक्षण व्यवस्था के लागू होने के संकट से बचने के लिये कोई अन्य न्यायसंगत संवैधानिक तथा अजा एवं अजजा वर्गों के हितों को अधिक संरक्षण प्रदान करने वाली आरक्षण व्यवस्था को अपनाने पर विचार किया जाना समय की मांग है।
इस विषय में मेरी दृष्टि में एक संवैधानिक समाधान है, जिसका खुलासा आक्रोशित एवं व्यथित अनुभव कर रहे आरक्षित वर्ग के युवाओं की उपस्थिति में उचित समय पर सार्वजनिक रूप से किया जायेगा। लेकिन मैं यह उचित समझता हूं कि इससे पहले इस विषय पर सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय स्तर पर विचार विमर्श, चिंतन और तर्क-वितर्क होना बहुत जरूरी है।
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश',
राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल
संपर्क : 9875066111
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