दुमका : काम कोई भी छोटा-बड़ा नहीं होता, इच्छाशक्ति होनी चाहिए-हरिओम लिट्टी भंडार - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 27 मई 2018

दुमका : काम कोई भी छोटा-बड़ा नहीं होता, इच्छाशक्ति होनी चाहिए-हरिओम लिट्टी भंडार

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दुमका (अमरेन्द्र सुमन) एक जमाना था, जब सत्तु, लिट्टी-चोखा गरीबों, दीन-दलितों के भोजन के रुप में मान्य था। सम्पन्न घरानों, उँचे ओहदे वाले लोगों व नौकरी-पेशा कर्मी खेतों में काम करने वाले मजदूरों, दिहाड़ियों के लिये विशेष तौर पर इसकी व्यवस्था रखा करते थे। समय के साथ-साथ सबकुछ बदलता चला गया। बड़े-बड़े होटलों, पार्टी, फंक्शन्स में अब लिट्टी-चोखा सम्मान की नजर से देखा जाने लगा है। पार्टियों में अलग-अलग डिस की लिस्ट में लिट्टी-चोखा ने भी अपना स्थान सुरक्षित बना लिया है। उप राजधानी दुमका के वीर कुँवर सिंह चैक के नीचे हरिओम लिट्टी भंडार खासा चर्चित है। हरिओम लिट्टी भंडार के मालिक संजय महतों की दूकान पर दोपहर से देर शाम तक शुद्ध घी बने लिट्टी-चोखा खाने वालों की भीड़ लगी रहती है। हरिओम लिट्टी भंडार के मालिक संजय महतों का कहना है- उनके बनाए लिट्टी की मांग काफी है। बिना घी लिट्टी जहाँ एक ओर 10 रुपये प्रति हैं वहीं शुद्ध घी मिला लिट्टी 15 रुपये प्रति एक। यदि आप आजमाना ही चाहते हैं तो फिर आइये हरिओम लिट्टी भंडार और खाईये दो लिट्टी। मस्त होकर जाऐंगे। हरिओम लिट्टी भंडार के मालिक संजय महतों अपने पुत्र संदीप के साथ इस कारोबार को लगातार बढ़ा रहे हैं। दुमका में दूकान खोले मात्र दो ही वर्ष हुए हैं किन्तु इन दो वर्षों के दरम्या नही इनके बनाए लिट्टी की मांग दूर-दूर तक होने लगी है। लोग शौक से लिट्टी पैक करवाते हैं और घरों मे खाते हैं। लिट्टी के साथ आलू / बैगन का चोखा, प्याज व सरसों-पुदिना का चटनी। कोच, गया (बिहार) के रहने वाले हरिओम लिट्टी भंडार के मालिक संजय महतों पहले भागलपुर के माँ अन्नपूर्णा ट्रान्सपोर्ट एजेन्सी में काम किया करते थे। 15 वर्षों तक भागलपुर में ही उनका रहना हुआ। बाल-बच्चा, परिवार के लालन-पालन में जब कठिनाई होने लगी तो उन्होंने भागलपुर छोड़ देना ही बेहतर समझा।  माँ अन्नपूर्णा ट्रान्सपोर्ट एजेन्सी के जीएम पी के सुल्तानिया के वे बड़े आभारी हैं जिन्होंने लिट्टी-चोखा बनाने की तरकीबें सिखाई। वे हमेशा कहा करते थे, हाथ में हुनर हो तो इंसान कहीं भी भूख नहीं मर सकता। पी के सुल्तानियाँ वैसे लिट्टी के बड़े शौकीन थे। श्री  सुल्तानिया के साथ रहते-रहते संजय ने इस कला में महारथ हासिल कर ली। दुमका जैसे छोटे शहर में उसनें इस व्यवसाय को आजमाना शुरु कर दिया। कुदरत का खेल देखिये  संजय के हाथ के बनाए लिट्टी की मांग दुमका के बाहर तक पहुँच गई। रिक्सा, ठेला चालकों से लेकर दिहाड़ी मजदरों व कामगारों तक तथा नौकरी-पेशा कर्मियों से लेकर बड़े-बड़े ठेकेदार तक हरिओम लिट्टी भंडार को नहीं भूलते। दिल्ली जैसे महानगरों में इस व्यवसाय को क्यों नहीं आजमाते ? इस प्रश्न के जबाव में संजय महतों का कहना है दुमका में ही वे इतना कमा लेते हैं कि उनका घर-परिवार मजे में चल जाता है। भगवान की कृपा व आप सबों की दुआ से अब तो दो पहिया वाहन भी खरीद लिया है। जो व्यक्ति खाने-खाने को मोहताज था पूरे विश्वास के साथ अपने पैरों पर खडा है। ठीक ही कहा गया है-काम कोई भी छोटा-बड़ा नहीं होता। आपका हुनर, काम करने का जज्बा, मेहनत व ईमानदारी जिसमें हो निश्चित ही सफलता की सीढ़ियों को छूऐगा। 

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