मोदी शासन के चार साल देश की जनता के लिए तबाही और बर्बादी के दिन साबित हुए : माले - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

सोमवार, 28 मई 2018

मोदी शासन के चार साल देश की जनता के लिए तबाही और बर्बादी के दिन साबित हुए : माले

  • पांचवें साल में इस विनाशलीला का अंत होना चाहिए.

modi-four-years-worst-for-people-cpi-ml
पटना 28 मई 2018, भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि मोदी शासन के चार साल देश की जनता के लिए तबाही और बर्बादी के दिन साबित हुए हैं. पांचवें साल  में हमें उम्मीद है कि इस विनाशलीला का अंत होगा और आने वाले दिनों में देश की जनता को मुक्ति मिलेगी. उन्होंने कहा कि चार वर्ष पहले जब ढेर सारे वादों के साथ नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद ग्रहण किया था, तो देश की जनता को उनसे काफी उम्मीद थी, लेकिन आज वह उम्मीद स्पष्ट तौर पर खत्म हो चुकी है. उसकी जगह विश्वासघात और हताशा ने ले लिया है.  अर्थतंत्र ठहराव में फंस गया है और पिठ्ठू पूंजीवाद के दलदल में गहरे धंस गया है. बैंकिंग क्षेत्र और रेलवे ये दो सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाएं भारी घाटे में चल रही हैं. आज पेट्रोल और डीजल की कीमतें आसमान पर चढ़ गई हैं और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में रुपये की कीमत बेलगाम गिरती जा रही है.  नोटबंदी या विमुद्रीकरण, जीएसटी और हर लगभग हर सेवा को आधार से जोड़ देने के कदमों ने जनता के उपर ही हमला किया. मोदी सरकार ने संसदीय लोकतंत्र की परंपरा को कमजोर करने की कोशिश की है. हर साल दो करोड़ रोजगार के अवसर सृजन करने का वादा एक प्रमुख वादा था, जिसकी वजह से मोदी इतनी बड़ी चुनावी फसल काट सके. लेकिन अब ‘रोजगार सृजन’ की जिम्मेवारी को सरकारी या कारपोरेट क्षेत्र के कंधों से हटाकर खुद रोजगार खोजने वालों के कंधों पर ही थोप दिया जा रहा है. अब सरकार की भूमिका केवल रोजगार खोजने वालों को पकौड़ा बेचने (या पान की दुकान खोलने या गाय खरीद लेने, जैसा कि त्रिपुरा के नये मुख्यमंत्री बता रहे हैं) की बिन मांगी सलाह देने तक सीमित रह गई है, और अब वे मुद्रा योजना के तहत केवल एक बार मिलने वाली लगभग 50,000 रुपये की छोटी सी रकम के कर्ज का हवाला देकर ‘रोजगार सृजन करने’ का बहकाने वाला दावा पेश कर रहे हैं! और अर्थतंत्र जितना चकराकर नीचे गिर रहा है, उतनी ही तेजी से, उसकी उलटी गति में सरकार का प्रचार बजट लगातार बढ़ता जा रहा है - पिछले चार वर्षों में समूचे भारत में मोदी के जो कुकुरमुत्ते की तरह उगने वाले सर्वव्यापी इश्तहार लगाये गये, उन पर सरकार ने 4,343 करोड़ रुपये खर्च किये हैं! एक-के-बाद-एक विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक वातावरण में सुनियोजित ढंग से जहर घोला जा रहा है, जबकि सरकार छात्रों के खिलाफ अपना दमन अभियान चलाती जा रही है. महिलाओं, लड़कियों व अल्पसंख्यक समुदाय को भीषण दमन व उत्पीड़न का का सामना करना पड़ रहा है. भ्रष्टाचार, महंगाई, यौन हिंसा आदि तमाम मामले जिन्होंने मनमोहन सरकार के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश पैदा किया था और जिसकी सवारी कर मोदी सत्ता में आए थे, आज वे सभी कारक मोदी सरकार के खिलाफ हैं. भीड़ द्वारा हत्या, लोकतंत्र व संविधान की हत्या, दलितों पर अत्याचार, महिलाओं की असुरक्षा, घृणा, झूठ और कट्टरता आदि ही इस मोदी राज की उपलब्धियां रही हैं.

कोई टिप्पणी नहीं: