पटना. यह सर्वविदित है कि केन्द्र में सत्ता परिवर्तन होने के बाद से ही अल्पसंख्यक ईसाइयों पर आक्रमण व उनके संस्थानों को नुकसान पहुंचाने का कार्य शुरू हुआ. कोलकाता की निवासी संत टेरेसा को जीवन व मरण के बाद भी आलोचक आलोचना करने से परहेज करने में पीछे नहीं रहते हैं. इस पर केन्द्रीय मंत्री क्या कहेंगे.जब ईसाइयों के चर्चों पर हमला कर नुकसान पहुंचाया जाता है, धार्मिक मूर्तियां तोड़ी जाती हैं,धार्मिक प्रार्थना करते समय आकर उत्पात मचाते हुए, लालच देकर धर्म परिवर्तन कराने का झूठा इल्जाम लगाकर उनसे मारपीट किया जाता है, उन पर झूठा इल्जाम लगा बिना साबुत के जेल में बंद करा दिया जाता है, डराकर घर वापसी का फ़तवा पढ़ा जाता है. तब उस वक्त ये नेतागण चुप्पी क्यों साध लेते हैं? आखिर ऐसे तत्वों या संगठनो को शह कौन देता है? क्यों नहीं सामने आकर ऐसे गैर कानूनी कार्य करने वालों के खिलाफ आवाज उठाकर ये नेतागण उन्हें सजा दिलवाते हैं.इस तरह की वारदातों से क्या ईसाई समुदाय अपने को असुरक्षित महसूस नहीं करेगा? इसी आर्चबिशप अनिल कॉट ने सवाल खड़ा किया है. इस पर केंद्रीय मंत्री गण यह कहते है कि सरकार किसी भी धर्म के साथ भेदभाव नहीं करती है. गौरतलब है कि भारतीय ईसाई किसी फ़तवा के आधार पर नहीं,अपने विवेक के आधार पर मतदान करता है.किसी फ़तवा का असर उसपर नहीं होता है.यह जरूर है कि पूर्व से ही अन्य पार्टी या धार्मिक नेता,अन्य धर्मगुरु या लोग चुनाव के समय अपने धार्मिक लोगों को फ़तवा जारी कर आह्वान करते रहे हैं तथा पूर्व से ही इसके लिए हवन, पूजा, कीर्तन, यज्ञ वगैरह करते आ रहे हैं. उनपर तो कोई नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं की जाती है.हम सभी भारतीय ईसाइयों को भी संविधान के तहत अपने देश में स्वेच्छा से अपने धर्म का पालन करने, स्वतंत्रतापूर्वक व निर्भय होकर जीवन यापन करने का अधिकार है.
शनिवार, 26 मई 2018
बिहार : 'स्वतंत्रतापूर्वक और निर्भय होकर जीवन व्यापन करने का अधिकार है'
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