आलेख : एक गांव, एक कानून और 60 लोग - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 1 मई 2018

आलेख : एक गांव, एक कानून और 60 लोग

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गुजरात की राजधानी गांधीनगर से 198 किलोमीटर दूर है भावनगर। भावनगर के शिहोर तालुका में एक गाँव है लाजपत नगर (बदला हुआ नाम)। इस कहानी के बाद भावनगर शायद इस बात के लिए भी जाना जाये कि इस गांव के 30 परिवार के लोग कभी भी पंचायत चुनावों में भागीदारी नहीं कर पायेंगे। इस गांव में 30 परिवार यानी 30 जोड़े यानी 60 लोग ऐसे होंगे जो दो बच्चे के नियम की वजह से पंचायत का चुनाव नहीं लड़ सकते। ज्ञातव्य है कि पंचायती राज के राज्य स्तरीय नियमों में एक नियम है कि पंचायती राज चुनावों में वही प्रतिभाग कर सकता है जिसकी केवल दो संतानें हों। यदि किसी को 2005 फरवरी महीने के बाद तीसरी संतान है तो वह पंचायती राज चुनाच में भाग नहीं ले सकता। शिहोर के लाजपत नगर में इस नियम ने 30 परिवार यानी 30 जोड़े यानी 60 लोगों को पंचायत राज चुनाव में भाग लेने से वंचित कर दिया है।  ज्योति और योगेश बदला हुआ नाम ऐसे ही जोड़ों में से एक हैं जो पंचायती राज के इस नियम के शिकार हुए हैं। ज्योति और योगेश के तीन बच्चे हैं और वह लाजपतनगर ग्राम पंचायत में रहते हैं। ज्योति कक्षा 7 तक पढ़ी हैं और योगेश की शिक्षा कक्षा 5 तक है। दोनों का ताल्लुक अन्य पिछड़ा जाति से है। योगेश स्वच्छ ‘‘भारत मिशन प्रोग्राम’’ में शौचालय बनाने का काम करते हैं और उनके परिवार की सालाना आय लगभग 48000 है। ज्योति संयुक्त परिवार में रहती हैं। परिवार में पति बच्चों व माता पिता को मिलाकर कुल 7 सदस्य हैं। 
       
ज्योति और योगेश का विवाह 2001 में हुआ था। ज्योति की पहली संतान 2002 में हुई। ज्योति तीसरा बच्चा नहीं चाहती थी ज्योति पर बेटे को जन्म देने का दबाब था। ज्योति की पहली दो संताने बेटियां थीं और परिवार को बेटा चाहिए था। परिवार नियोजन में ज्योति की एक न चली और ज्योति को न चाहते हुए भी तीसरी संतान को जन्म देना पड़ा। ज्योति तीसरी संतान का जन्म 2006 में हुआ। ज्योति कहती है, इसमें मेरा क्या दोष, मुझे तो परिवार के हिसाब से ही चलना पड़ता है। लाजपत नगर पंचायत में ज्योति अकेली महिला नहीं हैं, जिनको तीसरी संतान को जन्म देने को विवश होना पड़ा। इसके बहुत सारे कारण हैं और कई मामलों में तो महिलाओं से पूछा ही नहीं जाता कि वह क्या चाहती हैं? ज्योति बताती हैं कि परिवार में औरतों से कब पूछा जाता है कि वह अपने परिवार के बारे में कैसे सोचती है, उन्हें तो बस आदेश का पालन करना होता है। ज्योति कहती हैं कि परिवार नियोजन में जब महिलाओं की कोई भूमिका नहीं होती तो उन्हें दो बच्चों के नियम के तहत क्यों रखा जा रहा है? महिलाओं का इसमें क्या दोष है, उन्हें दो बच्चों के नियम से आज़ादी मिलनी चाहिए।  

ज्योति 2016 के पंचायत चुनावों में सरपंच के पद के लिए चुनाव में भागीदारी करना चाहती थीं किन्तु दो बच्चों के कानून की वजह से वह चुनाव में भाग नहीं ले पाई । 2016 के चुनाव में लाजपत नगर पंचायत की सीट महिला के लिए आरक्षित थी। ज्योति की सास भी फिलहाल इसी पंचायत में एक पंच के तौर पर अपनी जिम्मेदारियां निभा रही हैं। वह भी 2016 में चुनकर आई हैं पर ज्योति के लिए दो बच्चों के नियम की वजह से इस अवसर के दरवाजे बंद हो गए। ज्योति मायूस होकर कहती हैं कि पंचायत चुनाव में अक्सर ऐसी महिलाएं चुनकर आती हैं जो चुनाव और पंचायत जैसी चीजों से दूर रहना चाहती हैं। कई बार ऐसे भी लोग पंचायत में चुन कर आते हैं जिनको काम की जानकारी तक नहीं होती पर पंचायत के लिए कुछ काम करना चाहते हैं, मगर इन नियमों में बंधकर वह चुनाव में भाग ही नहीं ले पाते हैं। योगेश इसी में अपनी बात जोड़ते हैं कि किसी नए और अनिच्छुक व्यक्ति को जब तक पंचायत का काम काज करने के तरीके समझ में आते हैं तब तक दो-ढ़ाई साल निकल गए होते हैं और इस कारण गांव में विकास के काम अटके रहते हैं। योगेश ने बताया कि इस गांव में वह अकेले ही इस नियम से बंधे नहीं बैठे हैं बल्कि 60 ऐसे लोग हैं जिनके 2 से अधिक बच्चें हैं जो चुनाव लड़ने के बारे में सोचते हैं मगर दो बच्चों के नियम के चलते वह चुनाव नहीं लड़ सकते।  
        
ज्योति कहतीं हैं कि यदि वह सरपंच बन पाती तो वह सबसे पहले अपने गाँव के लिए मीठे पानी की लाईन लेकर आतीं। मेरे गाँव से केवल 7 किलोमीटर की दूरी पर नर्मदा नदी की मीठे पानी की पाईप लाईन जा रही है। मैं वहां से अपने गाँव के लिए लाईन लाना चाहती हूँ ताकि लोगों को पीने का पानी मिल सके। दूसरे मेरे गाँव में तकरीबन 350 परिवार वाल्मीकि और देविपूजक जाति के रहते हैं जो बेघर हैं। उनके मुताबिक 1989 के बाद उनके गाँव में किसी को भी इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत जमीन आवंटित नहीं हुई है। मैं सरपंच बनकर इस समुदाय के सर पर छत का साया देखना चाहती थीं। ज्योति गांव में आंगनबाड़ी और स्वास्थ्य केन्द्र लाने के लिए भी काम करना चाहती हैं। मगर दो बच्चों के नियम की योग्यता ने ज्योति के सपनों पर पानी फेर दिया। कमला बेन अहमदाबाद जिले के धोलका तालुका की ग्राम पंचायत गाणोल की रहने वाली हैं। कमला के परिवार में पति व तीन बच्चों को मिलाकर कुल पांच सदस्य हैं। कमला जब 2009 में पहली बार सरपंच बनी तो सरपंच बनने के लिए उनके पति कन्नू भाई ने उनको प्रेरित किया। इसी साल उनके पति ने भी पंच पद का चुनाव जीता। चुनाव जीतने के 6 महीने के भीतर ही उन दोनों पर दो से अधिक बच्चें होने का आरोप लगा कर बर्खास्त किया गया। एक साल तक वह दोनों अपने पद से बर्खास्त रहे।  
           
कमला और उसके पति पर यह मामला कई महीनों तक चलता रहा। कमला ने बताया कि उनका यह मामला जिला पंचायत में ही चल रहा था। कमला ने अपनी सच्चाई का सबूत देने के लिए अपने दोनों बच्चों के जन्म प्रमाण पत्र दिए। साथ ही उनको उनके स्कूल से भी लिखवा कर देना पड़ा कि उनके केवल दो ही बच्चे हैं। कमला बताती हैं कि उन पर गलत आरोप लगाए गए थे। दरअसल उनके दो ही बच्चे हैं। तीसरा बच्चा उनकी बड़ी बहन का है। वास्तव में बड़ी बहन की मौत के बाद कमला का उनके पति से ही विवाह हो गया था तो इस तरह कमला की दो ही संतानें थीं जबकि उनके पति की तीन। इस केस में वह 3 साल तक उलझी रहीं। कमला केस जीत गईं मगर उनके पति को अपने पद से हाथ धोना पड़ा। इस दौरान पंचायत का काम-काज बहुत ज़्यादा प्रभावित हुआ। कमला बताती हैं कि तलहटी के कहने पर ही प्रतिद्वन्द्वी ने उन पर यह आरोप लगाया था। इसकी वजह यह थी कि कमला ने खुली सीट से चुनावा जीता था और वह अनुसूचित जाति से थीं। इस नियम के सहारे स्थानीय राजनीति कर पंचायत के काम काज को प्रभावित किया गया और उन्हें मानसिक यंत्रणा से गुजरना पड़ा।   




(गीता)

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