पटना, 19 जुलाई, बिहार में अच्छी बारिश नहीं होने के कारण सूखे की आशंका प्रबल हो गई है। रूठे मानसून के कारण किसान मायूस हो गए हैं। कृषि मंत्री प्रेम कुमार के मुताबिक, अधिकारियों को किसानों को डीजल अनुदान तुरंत बांटने के निर्देश दिए गए हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 42 प्रतिशत कम बारिश होने के कारण राज्यभर में करीब 15 फीसदी ही धान की रोपनी हो पाई है। कई जिलों में तो धान की बीज (बिचड़े) डालने तक की बारिश नहीं हुई है। आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में अब तक जितनी बारिश होनी चाहिए थी, उससे 42 फीसदी कम बारिश हुई है। बिहार राज्य कृषि विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि बिहार में एक जून से 16 जुलाई के बीच सामान्य से 42 प्रतिशत बारिश कम हुई है। इस दौरान करीब 353 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन अब तक करीब 200 मिलीमीटर ही बारिश हुई है। कहा जा रहा है कि राज्य के 38 जिलों में किसी में भी इस वर्ष सामान्य बारिश नहीं हुई है। कृषि विभाग के अनुसार, राज्य में बारिश नहीं होने के कारण धान और मक्का की खेती पर असर पड़ना अब तय माना जा रहा है। कहा जाता है कि आद्र्रा नक्षत्र में झमाझम बारिश होने के बाद धान की रोपनी होने के बाद धान की उपज अच्छी होती है, लेकिन राज्य में आद्र्रा नक्षत्र गुजर जाने के बाद भी कहीं भी झमाझम बारिश नहीं हुई है। राज्य के भोजपुर, रोहतास, कैमूर, भागलपुर सहित कई ऐसे जिले हैं, जिनकी पहचान धान की अच्छी उपज के रूप में की जाती है, लेकिन इन जिलों में भी जरूरत से कम बारिश होने के कारण किसान मायूस हो गए हैं।
पूसा स्थित राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक डॉ. मृत्युंजय कुमार कहते हैं कि लंबी अवधि की धान की खेती के लिए मई, जून से 10 जुलाई तक बिचड़ा डालना होता है। मध्यम अवधि की धान की खेती के बिचड़ा डालने का समय 25 जून तक है। उन्होंने कहा कि बिचड़ा डालने के लिए किसानों को अब बारिश का इंतजार नहीं करना चाहिए, नहीं तो उन्हें अच्छी उपज नहीं मिल सकेगी। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि धान की अच्छी उपज के लिए रोपनी 15 से 20 जुलाई तक समाप्त हो जानी चाहिए। भागलपुर कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. राजेश हालांकि इससे इत्तेफाक नहीं रखते। उन्होंने कहा कि धान की फसल के लिए कई तरह के आधुनिक तकनीक के बीज आ गए हैं। कुछ बीज कम पानी में तो कई बाढ़ में भी लगाए जाते हैं, जिससे अच्छी फसल पाए जा सकते हैं। वे हालांकि, ये भी मानते हैं कि ये बीज छोटे और मध्यम किसान की पहुंच से अभी दूर हैं। कृषि विभाग के अनुसार, चालू खरीफ मौसम में 34 लाख हेक्टेयर में धान व 4़75 लाख हेक्टेयर में मक्के की खेती का लक्ष्य विभाग ने तय किए हैं। 16 जुलाई तक करीब पांच लाख हेक्टेयर में ही धान की रोपनी हुई है, जबकि 2़ 64 लाख हेक्टेयर में ही मक्के की बुआई हुई है।
मौसम वैज्ञानिकों की मानें तो राज्य में मानसून पहुंचने के बाद कमजोर पड़ गया, जिस कारण अच्छी बारिश नहीं हुई। इधर, किसान भी सूखे को देखकर हताश हैं। बक्सर जिले के एक किसान मनोरंजन प्रसाद बताते हैं कि अब तक धान की रोपाई की कौन कहे, धान के बिचड़े (पौध) को बचाने में ही किसान जुटे हैं। उपज की बात छोड़ दीजिए, इस वर्ष अगले वर्ष के लिए बिचड़े ही हो जाए वही किसानों के लिए बड़ी बात होगी। राज्य के कृषि मंत्री प्रेम कुमार ने आईएएनएस को बताया कि सरकार किसी भी आपदा से निपटने को तैयार है। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी सूखे की आशंका को लेकर अधिकारियों के साथ बैठक कर स्थिति की समीक्षा की है। सरकार और कृषि विभाग किसानों के साथ है तथा आकस्मिक फसल योजना बनाई जा रही है। उन्होंने बताया कि अधिकारियों को किसानों को डीजल अनुदान तुरंत बांटने के निर्देश दिए गए हैं। बिहार के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, "सूखा से निपटने के लिए विभागीय स्तर पर तैयारियां पूरी करने को कहा गया है। चारा की पर्याप्त व्यवस्था कर लेने के निर्देश दिए गए हैं। जल संसाधन विभाग को भी नहरों से पानी छोड़ने को लेकर पूरी योजना बनाकर वेबसाइट पर अपलोड कर देने के निर्देश दिए गए हैं, जिससे आम जनता भी देख सके कि कहां तक पानी पहुंचा है।" इधर, विपक्ष भी बारिश कम होने के कारण किसानों की परेशानी को लेकर सरकार पर निशाना साध रही है। राजद के रघुवंश प्रसाद सिंह ने बिहार को सूखाग्रस्त क्षेत्र घोषित करने की मांग की है।
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