गरीबों के पुनर्वास व वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था होनी चाहिए.
पटना 6 जुलाई, भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि बिहार में शराबबंदी कानून के ड्रैकोनियन प्रावधानों ने दलितों-गरीबों पर कहर बरपाया है. दरअसल यह कानून समाज सुधार का नहीं बल्कि समाज के कमजोर वर्ग के लोगों के बर्बर किस्म के उत्पीड़न का औजार बन गया है जो बिहार में पिछले दो वर्षों से निरंतर चलता आ रहा है. इसके कानून के काले प्रावधानों का असर गरीबों पर पड़ा है और तकरीबन देढ़ लाख की संख्या में दलित-गरीबों को इस कानून के तहत जेल में बंद कर दिया गया है. स्थिति यह है कि बिहार की जेलें पर्याप्त पड़ गई हैं. जेलों में गिरफ्तार किए गए लोग भेड़-बकरियों की तरह जीवन जीने को मजबूर हैं. उनके सारे मानवीय अधिकार कुचल दिए गए हैं. उनका घर-परिवार पूरी तरह तबाह हो चुका है और उनके जीवन तबाही व बर्बादी के सिवा कुछ भी नहीं है. एक तरफ जहां दलित-गरीबों के नरसंहारों के मामले में फैसले आने में बरसो बरस लग जाते हैं, वहीं शराबबंदी कानून के तहत चंद महीनों में गरीबों को सजा सुना दी गई और उन्हें अपराधी बना दिया गया. दूसरी ओर शराब माफियाओं की चांदी है और अवैध शराब का कारोबार फल-फूल रहा है. यह जाहिर बात है कि शराब का अवैध कारोबार प्रशासनिक संरक्षण में ही चल रहा है. शराब माफिया व प्रशासन के इस नापाक गठजोड़ पर प्रहार करने की बजाए नीतीश सरकार गरीबों को तबाह कर रही है. अब जब चुनाव आने वाला है, नीतीश कुमार इस कानून के प्रावधानों में ढील देने की बात कह रहे हैं और जनता की आंखों में एक बार फिर धूल झोंकना चाहते हैं लेकिन बिहार के गरीब इस बार उनके झांसे में नहीं आने वाले हैं. उन्होंने कहा कि यदि नीतीश कुमार में थोड़ी भी शर्म बची है तो वे भाषणबाजी की बजाए सबसे पहले इस कानून के ड्रैकोनियन प्रावधानों के तहत जेलों में बंद दलित-गरीबों को अविलंब रिहा करवाएं और असली अपराधियों पर नकेल कसने का काम करें. उन्होंने आगे कहा कि हम केवल बंदियों की रिहाई की मांग नहीं कर रहे बल्कि उनकी जब्त की गई संपत्त्तियां वापस होनी चाहिए और उनके पुनर्वास तथा वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था की जानी चाहिए. माले राज्य सचिव ने कहा कि यदि सरकार इन मामलों पर अविलंब कार्रवाई नहीं करती तो हमारी पार्टी इस विषय पर राज्यव्यापी आंदोलन चलाएगी.
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