नई दिल्ली, 8 जुलाई, देश में एक साथ लोकसभा व विधानसभा चुनाव कराने पर चर्चा में भाग लेने वाले अधिकांश क्षेत्रीय दलों ने रविवार को विधि आयोग से कहा कि ऐसा कोई भी कदम क्षेत्रीय आकांक्षाओं को कमजोर करेगा और संविधान में वर्णित संघीय संरचना को ध्वस्त कर देगा। समाजवादी पार्टी और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) सहित कुछ दलों ने 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के विचार का समर्थन किया। जबकि, आम आदमी पार्टी (आप) और जनता दल-सेक्युलर (जद-एस) जैसे कुछ दलों ने केंद्र के चुनाव सुधारों के कदम को लेकर उसकी निष्ठा पर सवाल उठाए। रविवार को विधि आयोग के समक्ष आने वाले दलों में द्रमुक, तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा), बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ), समाजवादी पार्टी, टीआरएस, जद-एस और आप शामिल थे। विचार-विमर्श के दूसरे दिन भी कांग्रेस और भाजपा, दोनों प्रमुख दल अनुपस्थिति रहे। तेदेपा ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के विचार का विरोध किया और कहा कि यह प्रस्ताव अव्यावहारिक और संघीय ढांचे व संविधान की भावना के खिलाफ है। पार्टी सासंद के. रविंद्र कुमार ने कहा, "संविधान के मुताबिक, यह असंभव और अव्यावहारिक है। एक साथ चुनाव के लिए कुछ राज्य सरकारों के कार्यकाल में वृद्धि या कमी करना संघीय ढांचे और संविधान की भावना के खिलाफ है।" विधि आयोग के समक्ष पेश हुए आप नेता आशीष खेतान ने कहा कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए 'भारतीय संविधान को विकृत कर पूरी तरीके से फिर से लिखा जाएगा।' खेतान ने कहा, "हम एक राष्ट्र, एक चुनाव के विचार के खिलाफ हैं क्योंकि यह भारत के संघीय लोकतंत्र को प्रबंधित लोकतंत्र में बदल देगा।" उन्होंने कहा कि इस प्रस्ताव में तानाशाही मानसिकता की बू आ रही है।
द्रमुक नेता एम.के. स्टालिन ने कहा कि उनकी पार्टी लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के विचार का विरोध करेगी। उन्होंने कहा कि प्रस्ताव गलत है और यह संविधान के खिलाफ है। द्रमुक के कार्यकारी अध्यक्ष स्टालिन द्वारा हस्ताक्षरित अपनी प्रस्तुति में द्रमुक ने प्रस्ताव का जोरदार विरोध करते हुए इसे एक पूर्ण विपदा करार दिया जो संघीय ढांचे को ध्वस्त कर देगा। जद (एस) ने एक साथ चुनाव कराने के लिए विधि आयोग के विचार-विमर्श को बेकार की कसरत करार देते हुए कहा, "सत्तारूढ़ भाजपा केवल पानी की गहराई नाप रही है, उसकी चुनाव प्रक्रिया में सुधार को कोई मंशा नहीं है।" जद-एस के प्रवक्ता प्रवक्ता दानिश अली ने विधि आयोग के साथ बैठक के बाद कहा, "यह एक बेकार की कसरत है। एक संघीय लोकतंत्र में आप एक साथ चुनाव कराने के बारे में सोच भी नहीं सकते। चुनाव सुधार की श्रंखला में पहली और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि राजनीतिक पार्टियों के व्यय की एक सीमा निर्धारित होनी चाहिए। लेकिन, इसके बारे में कोई बात नहीं करता।" अली ने कहा, "हमने इसे आज जब विधि आयोग के समक्ष रखा तो उन्होंने कहा कि सरकार ने इसका कोई संदर्भ नहीं दिया था और यह उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। इससे यह स्पष्ट रूप से दिखता है कि सरकार चुनाव सुधार को लेकर गंभीर नहीं है। भाजपा बस ऐसे ही लोगों की प्रतिक्रिया ले रही है।" विधि आयोग ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने पर आमने-सामने चर्चा करने के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों को आमंत्रित किया था। शनिवार को शुरू हुई कवायद रविवार को जारी रही।
समाजवादी पार्टी (सपा), तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) और बीपीएफ ने लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के विचार का समर्थन किया। सपा के राज्यसभा सदस्य रामगोपाल यादव ने 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' पहल का समर्थन करते हुए कहा कि इसकी शुरुआत 2019 से होनी चाहिए। यादव ने कहा, "सपा लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के समर्थन में है। टीआरएस के बी. विनोद कुमार ने कहा, "हमारे पार्टी अध्यक्ष और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने कहा कि हम लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव साथ कराने का दृढ़ता से समर्थन करते हैं ताकि केंद्र और राज्य स्तर पर निर्वाचित सरकार पांच साल की अवधि तक सही तरीके से काम कर सकें और देश भर में चुनाव पर फिजूल का वक्त खर्च न हो।" उन्होंने कहा, "इससे बहुत से पैसे, समय और बिना वजह के व्यय को बचाया जा सकता है..मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बिना किसी परेशानी के पांच साल की अवधि तक काम कर सकते हैं।" तृणमूल कांग्रेस, अन्नाद्रमुक, गोवा फॉरवर्ड पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने शनिवार को प्रस्ताव का विरोध किया था और कहा था कि यह संविधान के खिलाफ है और क्षेत्रीय हितों पर इससे प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें