विजय सिंह ,आर्यावर्त डेस्क,5 जुलाई ,2018, घाटे,कर्ज और एनपीए में डूबी सरकारी बैंक आई डी बी आई को कर्ज से उबारने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम ( एल आई सी ) का आई डी बी आई बैंक में 51 प्रतिशत निवेश करने का फैसला प्रथम दृष्टि में व्यावसायिक कम सरकारी ज्यादा लगता है. इस फैसले ने स्वयं एल आई सी के पूर्ववती फैसले पर प्रश्नचिन्ह लग दिया है जहाँ निगम पहले से अन्य बैंकों में मौजूद उसके शेयर से बाहर निकलने की तैयारी करती दिख रही थी.ऐसे में आई डी बी आई में निवेश का निर्णय सरकार के दबाव की परिणति हो सकती है. हाल ही में बैंक ने 5500 से अधिक वित्तीय घाटे का परिणाम घोषित किया है. जानकारी के अनुसार आई डी बी आई बैंक पर जहाँ एन पी ए का बढ़ता भार देखा गया वहीँ जमा दर में भी भारी कमी पायी गयी. ऐसे में 2017 - 18 में 28527 मुनाफा कमाने वाली एल आई सी ने अपनी मुनाफे में 17-18 वित्तीय वर्ष में 33 प्रतिशत बढ़ोत्तरी दर्ज की है. जाहिर है मुनाफे का फायदा निगम के बीमा धारकों को मिलना चाहिए लेकिन घाटे के बैंक में निवेश से एल आई सी के उपभोक्ताओं को उचित मुनाफे( डिविडेंड/बोनस) से वंचित रहना पड़ सकता है. दूसरी तरफ एल आई सी को अब सीधे तौर पर बीमा कंपनी के अतिरिक्त प्रत्यक्ष बैंकिंग कंपनी के रूप में भी देखा जायेगा क्योंकि 51 प्रतिशत अंशधारक होने की वजह से आई डी बी आई बैंक में एल आई सी प्रबंधन का सीधा हस्तक्षेप हो जायेगा. संभव है,बैंकों में बढ़ते एन पी ए और जमा दर में कमी का नुकसान नए प्रमोटर एल आई सी को भी भुगतना पड़ सकता है. प्रश्न यह भी है कि सरकार ने स्वयं आई डी बी आई को कर्ज से उबारने में सीधा निवेश क्यों नहीं किया ,मुनाफे वाली बीमा निगम को ही क्यों चुना गया? सरकार के अन्य मुनाफे वाली कंपनियों को क्यों नहीं आई डी बी आई में निवेश हेतु चुना गया? कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष सरकार के इस फैसले पर विरोध जता रही है परन्तु अभी तक सरकार की तरफ से कोई सफाई नहीं पेश की गयी है.
गुरुवार, 5 जुलाई 2018
IDBI में LIC का निवेश हो सकता है घाटे का सौदा
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