वैसे तो शशि थरूर और विवादों का नाता कोई नया नहीं है। अपने आचरण और बयानों से वे विवादों को लगातार आमन्त्रित करते आएँ हैं। चाहे जुलाई 2009 में भारत पाक के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और युसुफ रजा गिलानी के बीच हुई बातचीत के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य को बस कागज का एक टुकड़ा जिसका कोई खास महत्व नहीं है, कहने वाला बयान हो। चाहे इसी साल सितंबर में उनके अपने अधिकारिक निवास की जगह एक फाइव स्टार होटल जिसका खर्च करीब 40000 रुपये प्रतिदिन हो, में रहने का विवाद हो। चाहे जब दुनिया मंदी के दौर से गुजर रही हो और सरकारी खर्च में कटौती करने के उद्देश्य से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की पार्टी नेताओं से फ्लाइट की इकोनोमी कलास में सफर करने की अपील पर व्यंग्य करते हुए इसे कैटल कलास यानी भेड़ बकरियों की क्लास कहना हो। चाहे गाँधी जयंती की छुट्टी का विरोध करना हो। चाहे प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करना हो। चाहे संसद न चलने देने के कांग्रेस के रुख़ से असहमति रखना हो। चाहे पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत हो। या फिर पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार के साथ अफेयर की खबरें हों। या फिर सबसे ताजा "हिन्दू पाकिस्तान" के बयान वाला विवाद हो।
लेकिन इस बयान पर बात करने से पहले हमारे लिए यह जानना भी जरूरी है कि पिछले साल इन्होंने अपनी किताब इन्ग्लोरियस एम्पायर के सिलसिले में ब्रिटेन के टीवी चैनलों को दिए अपने इंटरव्यू से लाखों लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया था। इसमें उन्होंने कहा था कि ब्रिटेन की समृद्धि में भारत जैसे उपनिवेशों की लूट का बहुत बड़ा योगदान है। जाहिर है उनके इस बयान से इनकी यह पुस्तक लोगों में चर्चा का विषय बनी। और अब हाल ही में इन्होंने "वाय आई ऐम ए हिन्दू" यानी मैं हिन्दू क्यों हूँ इस विषय पर एक पुस्तक लिखी है जिसमें उन्होंने संघ और बीजेपी के हिन्दुत्व और हिन्दू राष्ट्र की विचारधारा पर निशाना साधा है। आइए अब इनके ताजा बयान या फिर विवाद पर बात करते हैं। शशि थरूर का कहना है कि अगर बीजेपी दोबारा लोकसभा चुनाव जीतती है तो भारत "हिन्दू पाकिस्तान" बन जाएगा। अल्पसंख्यकों को मिलने वाली "बराबरी" खत्म कर दी जाएगी। वो संविधान के बुनियादी सिद्धांतों को तहस नहस करके एक नया संविधान लिखेंगे जो कि हिन्दू राष्ट्र के सिद्धांतों पर आधारित होगा। उन्होंने आगे कहा कि यह वो भारत नहीं होगा जिसके लिए महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद और बाकी स्वतंत्रता सेनानियों ने संघर्ष किया था। अगर किताब का विषय और इनका यह ताजा बयान महज इत्तेफाक है, तो यह वाकई एक बेहद खूबसूरत इत्तेफाक है। और अगर यह सुनन्दा पुष्कर की मौत के चार साल बाद दिल्ली पुलिस द्वारा दायर चार्ज शीट का परिणाम है तो दुरभाग्यजनक है।
खैर जैसा कि होता आया है, कांग्रेस ने थरूर के इस बयान से तत्काल ही किनारा कर लिया। कांग्रेस की स्थिति तो आज ऐसी है कि गैरों में कहाँ दम था, हमें तो अपनों ने लूटा,हमारी कश्ती वहाँ डूबी जहाँ पानी कम था। पहले मणिशंकर अय्यर और अब शशिथरूर। इसलिए उसके पास इन नेताओं और उनके बयानों से खुद को किनारे करने के अलावा कोई चारा बचता भी नहीं है। क्योंकि आज कांग्रेस की डूबती नैया पर सवार ये नेता खुद को और अपनी पहचान को बचाने में इस प्रकार की बयानबाजी करके जहाँ कांग्रेस के लिए नई नई मुश्किलें खड़ी कर देते हैं वहीं भाजपा के दोनों हाथों में लड्डू थमा देते हैं। रही थरूर के हिन्दू पाकिस्तान के बयान की बात तो यह जो नई शब्दावली इन्होंने गढ़ी है उसकी नींव ही कमजोर है। क्योंकि जिस शब्द में "हिन्दू" शब्द जुड़ जाता है वो स्वयं ही बन्धन मुक्त हो जाता है। न तो उसे किसी सीमा में बाँधा जा सकता है न किसी एक विचार में । क्योंकि हिन्दू होना हमें यह आजादी देता है कि हम ईश्वर को मानें या ना मानें फिर भी हम हिन्दू हो सकते हैं, हम मूर्ति पूजा करें या न करें फिर भी हम हिन्दू हो सकते हैं, हम ईश्वर को किसी भी रूप में देखें या फिर न भी देखें फिर भी हम हिन्दू हो सकते हैं हम मन्दिर जाएं या न जाएं फिर भी हम हिन्दू हो सकते हैं। हम व्रत उपवास करें या ना करें फिर भी हम हिन्दू हो सकते हैं। हम सिख हो कर भी हिन्दू हैं हम जैन होकर भी हिन्दू हैं।
क्योंकि हमें बताया गया है कि एक महाज्ञानी पंडित भी रावण बन सकता है और एक डाकू भी रामायण लिख सकता है। क्योंकि हमें बताया गया है कि जन्म नहीं कर्म महान होता है। इसलिए इस देश के हर आदमी की पहचान उसके देशहित या देशविरोधी कर्मों से ही होगी किसी अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक परिवार में जन्म लेने से नहीं। इस देश की मिट्टी में, हवा में, पानी में वो बात है, इस देश के हर शख्स में वो जज्बात हैं कि किसी भी सूरत में यह देश हिन्दू पाकिस्तान बन ही नहीं सकता यह हर हाल में हिन्दू हिन्दुस्तान था, है और हमेशा ही रहेगा। शायद इसीलिए " यूनान मिस्र व रोमा सब मिट गए जहाँ से कुछ बात ऐसी है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।"
--डाँ नीलम महेंद्र--
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