पटना (आर्यावर्त डेस्क)। बिहार का ही अभिन्न अंग था झारखंड। यहां पर मैक्लुस्कीगंज है।करीब 400 से अधिक एंग्लो- इंडियन समुदाय के लोग रहते थे। इसी संख्या बल पर एंग्लो-इंडियन समुदाय से सरकार किसी को विधान सभा में मनोनीत कर देती है।इसका लाभ डॉन बोस्को एकेडमी के प्राचार्य आल्फेड जौर्ज रोजारियों को भी मिला। बिहार विधान सभा में प्रतिनिधित्व करने लगे। उस समय सी.एम.लालू प्रसाद यादव थे। जब बिहार में सत्ता परिवर्तन हुआ तो सी.एम.नीतीश कुमार ने संत कैरेंस के प्राचार्य जोसेफ गॉलस्टेन को मनोनीत कर दिया। इसके बाद 15 नवम्बर 2000 को झारखंड विभाजन हुआ। झारखंड का हिस्सा मैक्लुस्कीगंज होने से प्राचार्य जोसेफ गॉलस्टेन विधायक बने रहे। उनके निधन के बाद पुत्र ग्लेन जोसेफ गॉलस्टेन विधायक बन गये। ऐसे चर्चा है कि बिहार में एंग्लो-इंडियन समुदाय की संख्या कम है तो सी.एम.नीतीश कुमार दिलचस्पी नहीं लेते हैं किसी को मनोनीत करने के लिए। चूंकि एंग्लो -इंडियन समुदाय से मनोयन करना संवैधानिक दायित्व है। जो नहीं हो रहा है।
झारखंड में है मैक्लुस्कीगंज
इनका प्रतिनिधित्व कर रहे है झारखंड विधान सभा में आल्फ्रेड जौर्ज रोजारियों। अनोखी धरोहर है झारखंड का मैक्लुस्कीगंज।यह छोटा सा कस्बा एंग्लो-इंडियन बस्ती हुआ करता था। इसे 1930 के आसपास कोलकाता के अर्नेस्ट टिमोथी ने बसाया था। एक समय था यहां 400 एंग्लो-इंडियन परिवार रहा करते थे। पलायन कर करके 300 परिवार होंगे। उस दौर को बयान करते विशाल विक्टोरियन बंगलें आज भी यहां देखे जा सकते हैं। अब यहां कुछ ही एंग्लो-इंडियन परिवार बचे हैं। लेकिन बीच वक्त की महक को यहां महसूस किया जा सकता है। साल के जंगलों और पहाड़ी आबोहवा वाला मैक्लुस्कीगंज इतिहास तलाशने वाले के लिए बढ़िया जगह है। यह कस्बा रांची से 65 किलोमीटर दूर है ।
मैक्लुस्कीगंज टूरिज्म पर खतरा
रांची से 65 किमी दूर मैक्लुस्कीगंज का पर्यटन अवैध ईंट भट्टों के कारण खतरे में हैं। इसके अलावा खलारी में भी सीसीएल और वन विभाग की जमीन पर अवैध रूप से ईंट भट्टे चलाए जा रहे हैं। मैक्लुस्कीगंज में एंग्लो इंडियन समुदाय के लिए बसाई गई दुनिया और 365 बंगलों को देखने के लिए यहां काफी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। लेकिन इन दिनों करीब दो दर्जन से अधिक अवैध ईंट भट्टे यहां प्रदूषण फैला रहे हैं। इनमें ईंट पकाने के लिए सीसीएल की कोयला साइडिंग से चुराए गए कोयले का इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि, जून 2015 में डीसी के निर्देश पर टॉस्क फोर्स ने इन इलाकों में अवैध ईंट भट्टा चलाने वाले 16 लोगों पर कार्रवाई की थी। लेकिन अब फिर से ईंट भट्टे संचालित हो रहे हैं। स्पेशल ब्रांच के अपर पुलिस महानिदेशक ने डीजीपी को पत्र लिखकर बताया था कि खलारी आदि कोयलवरी में अवैध रूप से कोयला निकालकर ईंट भट्टों में खपाया जा रहा है। इसमें रैकेट काम कर रहा है। लेकिन इन पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। अधिकारियोंकी मिलीभगत भी पता चला कि पूरा कारोबार पुलिस, सीसीएल और वन विभाग के अधिकारियों को मैनेज करके चलाया जा रहा है। अवैध ईंट भट्टों से हर महीने लाखों रुपए की वसूली होती है। यही वजह है कि खलारी थाना क्षेत्र के अंबा डोंगरी, हाहे, होयर और सपही नदी किनारे बांग्ला भट्ठे चल रहे हैं। वहीं, मैक्लुस्कीगंज के सरना, नावाडीह, मायापुर ,लपरा , दुल्ली के अलावे दामोदर नदी किनारे बांग्ला भट्टा का जाल बिछा हुआ है। जबकि, राज्य में बांग्ला भट्टा और लोहे की चिमनी वाले भट्टे पर प्रतिबंध लगा हुआ है। अवैधभट्टों में अगर अवैध रूप से कोयला यूज किया जा रहा है तो सीसीएल पहल करे। इसके बाद अवैध ईंट भट्टा चलाने वाले और कोयला चोरी कर जमा करने वालों पर सख्त कार्रवाई करेंगे। राजदेवप्रसाद, इंस्पेक्टर, खलारी पुलिस थाना
जब्त किया जाएगा पूरा अवैध कोयला
सीसीएलके जमीन पर कहां-कहां भट्टा चल रहे हैं, रेवेन्यू विभाग से यह पता कर कार्रवाई की जाएगी। अवैध रूप से रखे गए कोयले को सीआईएसएफ के मदद से जब्त किया जाएगा। जतरुउरांव, क्षेत्रीय सुरक्षा प्रभारी, एनके एरिया
इस मामले में जांच कर कार्रवाई की जाएगी
चिमनी ईट भट्टा के लिए कई लोगों ने आवेदन दिया है। वन भूमि के इर्द-गिर्द भट्टा लगाने से जहां पेड़ों को नुकसान पहुंचने का अंदेशा है, उनको लाइसेंस नहीं दिया जाएगा। वनभूमि में अगर अवैध तरीके से भट्टे चल रहे हैं जांच कर कार्रवाई की जाएगी। अमरपासवान, क्षेत्रीय वनपाल, मांडर
वन क्षेत्र में ईंट भट्टा चलने और मिट्टी कटाई के कारण पेड़-पौधों को नुकसान पहुंच रहा है। मिट्टी कटाई से पेड़ की जड़ कमजोर हो रही हैं। वहीं, श्रम कानून की अनदेखी भी इन ईंट भट्ठों में हो रही है। बच्चों से ईंट की ढुलाई का काम कराया जा रहा है। इस बात की जानकारी जिम्मेदारों को भी है, लेकिन वह जानबूझकर अनजान बने रहते हैं।
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