16 अगस्त 2018 गुरुवार को नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में लंबे समय से बीमार चल रहे 93 वर्षीय पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के देहावसान के साथ ही परतंत्र भारत और स्वतंत्र भारत को राजनितिक रूप से संयुक्त करने अर्थात जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण कड़ी का अंत हो गया। उनके निधन पर भारत सरकार ने सात दिन की राष्ट्रीय अवकाश घोषित की है। बहु प्रतिभावान राजनीतिज्ञ भारतीय राजनीति में विगत पचास वर्षों से सक्रिय अटल बिहारी वाजपेयी अपनी राजनैतिक यात्रा में में वाजपेयी जी सबसे आदर्शवादी व प्रशंसनीय राजनेता थे। चार अलग- अलग प्रदेशों से सांसद चुने गये इकलौते राजनीतिज्ञ वाजपेयी भारत विभाजन के बहुत पूर्व राजनीति में आ गये थे। उन्होंने 1942 में भारत छोडो आन्दोलन में भी सक्रिय भाग लिया था और कई बार जेल की भीषण यातनाएं भी सहीं। इसी दौरान उनकी मुलाकात भारतीय जनसंघ के लीडर श्यामा प्रसाद मुखर्जी से हुई। अटल ने मुखर्जी जी के साथ राजनीति के दाव पेंच सीखे। मुखर्जी के साथ इन्होने जम्मू कश्मीर की यात्रा भी की थी, जहाँ इन्हें अवैध रूप से कश्मीर में घुसने के आरोप में गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया था। मुखर्जी जी का स्वास्थ ख़राब रहने लगा और जल्दी ही उनकी मौत हो गई, इसके बाद अटल ने ही भारतीय जनसंघ की बागडौर संभाल ली और इसका विस्तार सम्पूर्ण देश में किया। बहुमुखी प्रतिभा के धनी सुविख्यात कवि वाजपेयी राजनीति पर भी अपनी कविता व व्यंग्य वाणों से सबको आश्चर्यचकित करते रहते थे। मातृभाषा से अटूट प्रेम महसूस करने वाले वाजपेयी की बहुत सी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं, जिनका रसास्वादन साहित्यप्रेमी करते हैं। अटल जी पहले राजनेता थे, जिन्होंने यू एन जनरल असेंबली में हिंदी में भाषण दिया था। उन्हें सांसद में सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु 1992 में पद्म विभूषण, 1994 में लोकमान्य तिलक अवार्ड, 1994 में बेस्ट सांसद अवार्ड, 1994 में पंडित गोविन्द वल्लभ पन्त अवार्ड और भारत के सर्वतोमुखी विकास के लिये किये गये योगदान तथा असाधारण कार्यों के लिये 2014 में भारत रत्न प्रदान किया गया। पाँच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले पहले ग़ैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 18 साल की उम्र में राजनीति में कदम रखा था। 1957 में पहली बार लोकसभा सांसद के लिए चुने गये वाजपेयी 47 साल तक संसद सदस्य रहे। ओजस्वी वक्ता से सर्वमान्य राजनेता तक पहुंच बनाने वाले वाजपेयी 10 बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा के लिए चुने गए। वे तीन बार प्रधानमंत्री बने ।
पहली बार 1996 में13 दिन और दूसरी बार 1998 से 1999 में 13 महीने के लिए और आखिरी बार 1999 से 2004 तक प्रधानमंत्री रहे ।एक महान जननायक, कवि, लेखक, वक्ता और भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी को इसी वर्ष जून में किडनी में संक्रमण और कुछ अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की वजह से एम्स में भर्ती कराया गया था । उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि वाजपेयी के निधन से एक युग का अंत हो गया है । मैं नि:शब्द हूं, शून्य में हूं, लेकिन भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा है। अपने जीवन का प्रत्येक पल उन्होंने राष्ट्र को समर्पित कर दिया था। उनका जाना, एक युग का अंत है। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में आगरा जनपद के प्राचीन स्थान बटेश्वर के मूल निवासी पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत में अध्यापक थे। वहीं शिन्दे की छावनी में 25 दिसम्बर 1924 को ब्रह्ममुहूर्त में उनकी सहधर्मिणी कृष्णा वाजपेयी की कोख से एक विलक्षण बालक का जन्म हुआ, जो आगे चलकर अटल बिहारी वाजपेयी के नाम से प्रसिद्ध हुए। हिन्दी व ब्रज भाषा के सिद्धहस्त कवि अटल के पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर में अध्यापन कार्य करते थे। अटल बिहारी वाजपेयी में काव्य के गुण वंशानुगत परिपाटी से प्राप्त हुए। कहा जाता है कि महात्मा रामचन्द्र वीर द्वारा रचित अमर कृति विजय पताका पढकर अटल जी के जीवन की दिशा ही बदल गयी। अटल की बी०ए० की शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कालेज (वर्तमान में लक्ष्मीबाई कालेज) में हुई। छात्र जीवन से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और उसी समय से राष्ट्रीय स्तर की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेने लगे। कानपुर के डी०ए०वी० कालेज से राजनीति शास्त्र में एम०ए० की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। उसके बाद उन्होंने अपने पिताजी के साथ-साथ कानपुर में ही एल०एल०बी० की पढ़ाई भी प्रारम्भ की लेकिन उसे बीच में ही विराम देकर पूरी निष्ठा से संघ के कार्य में जुट गये। डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के निर्देशन में राजनीति का पाठ तो पढ़ा ही, साथ-साथ पाञ्चजन्य, राष्ट्रधर्म, दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन का कार्य भी कुशलता पूर्वक करते रहे। देश के प्रधानमंत्री के साथ ही अटल बिहारी वाजपेयी एक सर्वप्रिय कवि, वक्ता और समावेशी राजनीति के पर्याय थे।
ध्यातव्य हो कि 1951 में ही भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य बने वाजपेयी अपनी कुशल भाषण कला शैली से राजनीति के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने रंग जमा दिया। हालांकि लखनऊ में एक लोकसभा उप चुनाव में वो हार गए थे। 1957 में जनसंघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया। लखनऊ में वे चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी ज़मानत ज़ब्त हो गई, लेकिन बलरामपुर से चुनाव जीतकर वे दूसरी लोकसभा में पहुंचे । इसके साथ ही उन्होंने संसद के गलियारे में अपनी पांच दशकीय संसदीय करियर की शुरुआत की थी । 1968 से1973 तक वाजपेयी भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे। विपक्षी पार्टियों के अपने दूसरे साथियों की तरह उन्हें भी आपातकाल के दौरान जेल भेजा गया। 1977 में जनता पार्टी सरकार में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया। इस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया और वो इसे अपने जीवन का सबसे सुखद क्षण बताते थे। 1979 में जनता सरकार के गिरने के बाद 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया गया। वाजपेयी इसके संस्थापक सदस्य थे और पहले अध्यक्ष भी।1980 से 1986 तक वो बीजेपी के अध्यक्ष रहे और इस दौरान वे भाजपा संसदीय दल के नेता भी रहे। अटल बिहारी वाजपेयी 10 बार लोकसभा के लिए चुने गए और दूसरी लोकसभा से चौदहवीं लोकसभा तक संसद के सदस्य रहे। इस बीच में कुछ लोकसभाओं से उनकी अनुपस्थिति भी रही। विशेषकर 1984 में जब वो ग्वालियर में कांग्रेस के माधवराव सिंधिया के हाथों पराजित हो गए थे। 1962 से 1967 और 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे। 16 मई 1996 को वो पहली बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाने की वजह से 31 मई 1996 को उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा। इसके बाद 1998 तक वो लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे। 1998 के आम चुनावों में सहयोगी पार्टियों के साथ उन्होंने लोकसभा में अपने गठबंधन का बहुमत सिद्ध किया और इस तरह एक बार फिर प्रधानमंत्री बने। लेकिन यह सरकार भी केवल 13 महीनों तक ही चल सकी। एआईएडीएमके द्वारा गठबंधन से समर्थन वापस ले लेने के बाद उनकी सरकार गिर गई और एक बार फिर आम चुनाव हुए। 1999 में हुए चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साझा घोषणापत्र पर लड़े गए और इन चुनावों में वाजपेयी के नेतृत्व को एक प्रमुख मुद्दा बनाया गया। गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ और वाजपेयी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली। 2009 में सत्ता की राजनीति से संन्यास लेते वक्त वो लखनऊ से सांसद थे। उन्हें 2014 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाज़ा गया ।नरेंद्र मोदी सरकार उनके जन्मदिन 25 दिसंबर को गुड गवर्नेंस डे के तौर पर मनाती है। बतौर प्रधानमंत्री उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक मई 1998 में परमाणु बम का परीक्षण शामिल है। पोखरन-2 के साथ ही उन्होंने एक सौ साल से भी ज्यादा पुराने कावेरी जल विवाद को सुलझाया। संरचनात्मक ढाँचे के लिये कार्यदल, सॉफ्टवेयर विकास के लिये सूचना एवं प्रौद्योगिकी कार्यदल, विद्युतीकरण में गति लाने के लिये केन्द्रीय विद्युत नियामक आयोग आदि का गठन किया।
राष्ट्रीय राजमार्गों एवं हवाई अड्डों का विकास, नई टेलीकॉम नीति तथा कोकण रेलवे की शुरुआत करके बुनियादी संरचनात्मक ढाँचे को मजबूत करने वाले कदम उठाये। राष्ट्रीय सुरक्षा समिति, आर्थिक सलाह समिति, व्यापार एवं उद्योग समिति भी गठित कीं। उनके कार्यकाल के दौरान कई ऐसी घटनाएं हुईं जिन्हें आज भी याद किया जाता है। इनमें करगिल युद्ध, लाहौर समिट, इंडियन एयरलाइंस का विमान हाइजैक, 2001 में संसद पर आतंकी हमला, 2002 में गुजरात दंगे आदि शामिल हैं। अपने नाम के ही समान, अटलजी एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नेता, प्रखर राजनीतिज्ञ, नि:स्वार्थ सामाजिक कार्यकर्ता, सशक्त वक्ता, कवि, साहित्यकार, पत्रकार और बहुआयामी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति हैं। अटलजी जनता की बातों को ध्यान से सुनते हैं और उनकी आकाँक्षाओं को पूरा करने का प्रयास करते हैं। उनके कार्य राष्ट्र के प्रति उनके समर्पण को दिखाते हैं, जिसे युगों -युगों तक भारतवासी याद नमन कर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि देते रहेंगे।
अशोक “प्रवृद्ध”
करमटोली , गुमला नगर पञ्चायत ,गुमला
पत्रालय व जिला – गुमला (झारखण्ड)
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