संस्थाओं द्वारा सिस्टम नहीं रहने से बढ़ती है परेशानी, बुलाहट की आहट नहीं मिलने से फादर -सिस्टर बनने नहीं जाते
पटना (आर्यावर्त डेस्क): बिहार में सदैव ही बिहारी ईसाइयों को मांगना और संघर्ष करना पड़ता है.तब जाकर कुछ किया जाता है.मांगने और कहने वाले मिशनरी विरोधी नहीं होते हैं.वे चाहते हैं कि बिहार की धरती पर जन्म लेने वालों का विकास हो ताकि माता कलीसिया मजबूत हो सके.इसका असर देखने को मिलता है धार्मिक बुलाहट में.लगभग बंद ही हो गया. कुर्जी अस्पताल चलाने वाली संस्था को देख लें.खुब नर्सेज बनाये पर मेडिकल मिशन सिस्टर नहीं बना सके.सिस्टर नहीं होने के कारण मुम्बई, दिल्ली, झारखंड और बिहार का हाल बेहाल हो गया.बिहार में 2000 से सांझा में अस्पताल संचालित है.अन्य जगहों में किसी और के हाथ संचालित है.बिहारी समाज की पहल पर चाहे शिक्षा के क्षेत्र हो या चिकित्सा का ही क्यों न हो.संवाद, सहयोग, संघर्ष से बात बनायी है.जो चलते ही रहेगा.
प्रारंभ में मिशनरी स्कूलों में ईसाई बच्चों का नामांकन केवल बपतिस्मा प्रमाण -पत्र में अंकित जन्म तिथि के आधार पर ही किया जाता था.बिशप कार्यकाल में बी.जे.ओस्ता ने बदलाव कर कोर्ट, हॉस्पीटल, नगर निगम, जन प्रतिनिधियों द्वारा जारी जन्म तिथि को मान्य कर दिया.वहीं मिशनरी संस्थानों में कार्यरत कर्मियों को पल्ली से बपतिस्मा प्रमाण-पत्र मंगवाकर अंकित जन्म तिथि के आधार पर नौकरी से हटा दी जा रही है.वहीं चहेते किस्म वालों को पुन:नौकरी में संविदा पर बहाल कर लिया जा रहा है.कुछ तो मामला है कि जबरन लोगों को हटाया गया.एक्स.टी.टी.आई.व संत जेवियर हाई स्कूल से.दोनों का मामला श्रम न्यायालय में विचाराधीन है. अब मिशनरी स्कूलों में नामांकन को लेकर विवाद उत्पन्न होने लगा.तब बिशप बी.जे.ओस्ता ने अव्वल स्कूल कर्मी और ईसाई बच्चों को नामांकन लेने संबंधी फैसला लिया.जो कुछेक अपवाद को छोड़कर नामांकन हो रहा है.हाल के दिनों में संत माइकल हाई स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की फीस कम करने के लिए बैठक की गयी.बैठक में फस्ट सेमेस्टर में 60 प्रतिशत अंक लाने पर ही फीस रियायत करने का प्रावधान रखा गया है.जो ईसाई बच्चों के लिए असंभव है.यह मानकर चले कि स्कूल में एडमिशन हो जाएगा मगर फीस में रियायत नहीं.
शुरूआती दौर में कुर्जी अस्पताल में दक्षिण बिहार और दक्षिण भारतीय की लड़कियों को ट्रेनिंग में रियायत दी जाती थी. दक्षिण बिहारी हैं तो ए.एन.एम.में और दक्षिण भारतीय हैं तो जेनरल नर्सिंग में ट्रनिंग ले सकती हैं.मजे की बात है कि दक्षिण भारतीय के लिए केरल में साक्षात्कार की व्यवस्था होती थी.अस्पताल की सिस्टर साक्षात्कार लेने जाती थी. इस संदर्भ कहा जाता है कि पटना के फादर व सिस्टरों का ध्यान गया ही नहीं.इंगलिश मीडियम स्कूल खोलकर व्यापार करते रहे.संत इग्नासियुस स्कूल को बंद कर हार्टमन बनाया.सातवीं कक्षा तक लड़को के लिए और मैट्रिक तक लड़कियों को शिक्षा दी जाती थी.लोयला हाई स्कूल खुला.काफी संवाद के बाद संत जेवियर ऑफ एडुकेशन खुला.संत जेवियर कॉलेज भी मांग के बाद ही खुला. फादर जोनसन थे कुर्जी पल्ली के प्रधान पल्ली पुरोहित.इनका स्थानान्तरण हो गया.उनके स्थान पर आने वाले पल्ली पुरोहित ने सर्वे कराना शुरू कर दिया है.सर्वे में धार्मिक व आर्थिक स्थिति का जायजा लिया गया है.हाल के दिनों में संत माइकल हाई स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की फीस कम करने के लिए बैठक की गयी.बैठक में फस्ट सेमेस्टर में 60 प्रतिशत अंक लाने पर ही फीस रियायत करने का प्रावधान रखा गया है. इस तरह की सीमा को यह मानकर चले कि स्कूलों में एडमिशन हो जाएगा मगर आपके बच्चों को फीस में रियायत नहीं मिलेगीं.
यहां के लोगों का कहना है कि केंद्र व राज्य सरकार के नियम-कानून मिशन में लागू करते हैं मगर वेतनादि देने में धृतराष्ट्र बन जाते हैं.मिशन में संविदा में बहाली बंद हो.मिशनरी कर्मियों को सरकारी वेतनमान दिया जाए.उम्र सीमा के बाद से कार्यरत कर्मियों को हटाकर नौजवानों को नौकरी दो. सरकारी वेतन मिलने से फीस और चर्च में चंदा देने में दिक्कत नहीं होगी.शिक्षा के अधिकार के तहत गरीब बच्चों को शिक्षा दी जाए.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें