बेगूसराय (अरुण कुमार) जब जब दिनकर कला भवन में सरकारी और गैर सरकारी,सरकारी यानि 15 अगस्त,26 जनवरी अथवा किसी सरकारी सेमिनार आदि के कार्यक्रमों आदि से संबंधित आयोजन।गैर सरकारी यानि किसी राजनीति दलों,किसी मेला,किसी डॉक्टरों आदि का सम्मेलन, सेमिनार आदि के आयोजन में जब जमीनी कुर्शियां आदि 1980 के दशक से लेकर आज जब कि दिनकर भवन को आधुनिक रुपरेखा से सुसज्जित कर दिया गया है और ए सी आदि भी लगवा दिया गया है फिर भी हाल वही ढाक के तीन पात बाली बात।सन 2018 के भी सरकारी कार्यक्रम 15 अगस्त के संध्या पर स्थानीय सरकारी तथा गायर सरकारी विद्यालयों के बच्चों द्वारा सांस्कृति कार्यक्रम का आयोजन हुआ तो कुर्शियां तो टूटी ही साथ ही पूरे प्रेक्षागृह में जमीन और दीवारों पर शिखर,गुटखा एवं तम्बाकू आदि के पीक से नगर का जैसे नक्शा बना दिया गया हो दिख रहा था।सबसे गौर करनेवाली बात तो यह है कि नगर भवन का बाहरी कोई लुक ही नहीं है,नगर भवन में पूर्वी और पश्चिमी दो गेट बैने हुए हैं और बीच के भागों में दुकान बनाकर सैजा दिया गया है,जिसस्व दिनकर भवन की आय में वृद्धि तो है किन्तु उस आय से दिनकर भवन के लिये होता क्या है इसका कोई लेखा जोखा कुछेक ऐसे व्यक्तियों को छोड़कर किसी को पता ही नहीं चलता है कि इसके आय और व्यय का ब्यौरा क्या है। ऐसे व्यक्तियों से तात्पर्य यह है कि जो भी पदेन अधिकारी होते हैं सैद्धान्तिक तौर पर संगरकक तो वही होते हैं और उनसे ताल मेल बिठाने के लिये कभी भी चमचों,बेलचों की तो कमी रही नहीं याबी ये लोग जब जैसा निर्णय अधिकारियों के साथ बैठकर लेने की सलाह देते हैनाधिकारी महोदय वैसा ही करते हैं,जाहिर है तथाकथित व्यक्तियों से उन्हें और उनसे तथाकथित व्यक्तियों को भी व्यक्तिगत लाभांश प्राप्त हो जाता है।सोचनेबाली बात तो ये है कि जीन जीन व्यक्तियों को लेकर कमिटी बनाई गई 1990 के दशक में आज भी कुछेक बोलने वालों को हटाया और मूक दर्शक बन रहने वालों को जोड़ा गया बाकी सभी यथावत हैं अभीतक कोई चुनाव घोषणा करके नहीं हुआ है।पेपर पर भले ही जितनी बार चुनाव हो गया हो पाता ही नहीं।सबसे अहम बात यह कि दिनकर भवन को आधुनिक और सुन्दर तो बना दिया गया है किन्तु बिजली की सिवाय एक किर्लोस्कर जनरेटर आवाज रहित वाला के कोई व्यवस्था नहीं हैं यानी सरकारी संस्थान नगर दिनकर भवन में सरकारी बिजली की अभीतक कोई व्यवस्था नहीं हो पाई है,जिन्हें अपने कार्यक्रम के दौरान ए सी चलाना होता है वो अपना अलग से जनरेटरों की व्यवस्था स्वयं करते हैं वो भी अपने पैसे से।बाकी सरकारी कोष का जो भी मानदेय है वो तो देना ही पड़ता है और देना भी चाहिये।सबसे बड़ी और अहम बात दिनकर भवन का निर्माण मूल रुप से रंगकर्मियों के लिये हुआ था नाटक प्रदर्शन के लिये जिससे नाटककारों को अब कोई लाभ नहीं मिल पाता है।नाटककार को यदि नाटक करना है और उसी बीच कोई सरकारी कार्यक्रम का फरमान जारी हो गया तो कलाकारिओं नाटककारों को अपना समय बदलना होता है परन्तु सरकारी कार्यक्रम के लिये बहुत से ऐसे जगह हैं जहां किया जा सकताआ है मगर वह नहीं करके यहीं नगर दिनकर भवन में ही कलाकारों के कार्यक्रम और तिथि को अपेक्षित के जगह उपेक्षित कर दिया जाता है।आज कलाकार, रंगकर्मी और दिनकर भवन अपने अपने हालात और बेवसी पर फ़क़त आँसू बहाने के सिवा कुछ कर नहीं सकते।
सोमवार, 27 अगस्त 2018
बेगूसराय : दिनकर कला भवन बेगूसराय पर एक नजर।
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