बेगूसराय (अरुण कुमार) संस्कार और संस्कृति को पीछे छोड़कर होने वाला विकास विकृति को पैदा कर रहा है।शास्त्रीय संगीत के मिठास को छोड़कर फूहड़ गीत बाज़ारों में परोसने का नतीजा समाज के सामने है।बच्चों को अच्छे विशुद्ध संगीत का ज्ञान नहीं है।अगर संगीत नहीं सीख सकते तो कम से कम अच्छे संगीत को सुनें और सुनाएँ।हज़ारों वर्षों के तपस्या को यूँ ही बेकार न जाने दें।शास्त्रीय संगीत सुनने के बाद दिल और दिमाग को काफी सुकून मिलता है।यह हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक है।स्पिक मैके के संयोजन में आज भारद्वाज गुरुकुल के ऑडिटोरियम में शास्त्रीय संगीत गायन का आयोजन किया गया।बनारस घराना के पद्म भूषण पंडित राजन मिश्रा के पुत्र पंडित रितेश मिश्रा और पंडित रजनीश मिश्रा ने कार्यक्रम की शुरुआत वर्षा ऋतु में गाये जाने वाले राग मिया मल्हार से की।इसके बोल थे 'कारे कारे बदरा बरसन आये ...' तबला पर पंडित मिथिलेश कुमार झा और हारमोनियम पर श्री सुमित मिश्रा थे।कार्यक्रम के दरम्यान विशुद्ध शास्त्रीय संगीत का उदाहरण पेश कर कलाकारों ने समझाया कि फिल्मों में' मुन्नी बदनाम हुई' जैसे फूहड़ गीत शास्त्रीय संगीत के राग को बदनाम करने का प्रयास है।चंद पैसों की खातिर धरोहरों को उजाड़ा जा रहा है।बच्चों के साथ गाये गए गीत ने सबों को गुदगुदाया। आये दिन भारद्वाज गुरुकुल के प्राचार्य शिव प्रकाश भारद्वाज अपने विद्यालय में सांस्कृतिक कार्यक्रम बच्चों के मानसिक विकास,सुसंस्कारित होने के लिये करते और करवाते ही रहते हैं।जैसे कि गायन,वादन,नृत्य कला एवं नाटक आदि का भी मंचन अपने विद्यालय के बच्चों तथा बाहरी कलताकरो को भी आमंत्रित कर करवाना अपने आप मे एक मिशाल है।जैसा नाम "गुरुकुल"वैसा ही काम।शिक्षा के साथ साथ संस्कार भी शिक्षा में शामिल।
शुक्रवार, 31 अगस्त 2018
बेगूसराय : स्वास्थ्य समाज के लिये आवश्यकता है संस्कृति और संस्कारों के समुचित शिक्षा की।
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