वाराणसी : ’हाकर से हाकिम’ तक पुस्तक का विमोचन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 30 अगस्त 2018

वाराणसी : ’हाकर से हाकिम’ तक पुस्तक का विमोचन

कबीर के चौरा पर आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा, पत्रकारों की आवाज है हाॅकर 
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वाराणसी (सुरेश गांधी)। शहर के कबीर चैरा पर आयोजित समारोह में गुरुवार को पत्रकारिता के दिग्गजों ने ’हाकर से हाकिम’ तक पुस्तक का विमोचन किया। यह पुस्तक समचार पत्र के प्रसार जगत के स्तंभ रहे विजय सिंह ने लिखी है। उनकी शान में कसीदें गढ़ते हुए सीनियर पत्रकार एके लारी ने अपनी फेसबुक वाॅल पर कहा है कि विजय सिंह का यह प्रयास अद्भूत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय है। भला, कोई अखबार बेचने वाला भी इस दौर में किताब लिख सकता है, यह अपने आप में चैकाने वाली बात है। पर आज विजय सिंह ने किया है। डाॅयस पर विजय सिंह, यादवेश जी, सीपी राय आदि मौजूद थे। वाॅल पर लारी जी ने समावार पत्र ’हिन्दुस्तान’ की पुरानी यादों को भी साक्षा किया है। उन्होंने अपनी एवं पुराने साथियों की चर्चा करते हुए कहा है कि किस तरह बनारस में हिन्दुस्तान को पनपाने में लोगों का योगदान है। हालांकि लखनऊ संस्करण के सम्पादक सुनील दुबे जी के सानिध्य में बनारस में हिन्दुस्तान की लाॅचिंग 1996 में ही हो चुकी थी, लेकिन 2002 में उसे बनारस में संस्करण का दर्जा मिला। उस दौर में लारी जी ब्यूरो प्रभारी थे। लिहाजा एडिशन के सपने को साकार करने में उनकी महती भूमिका थी। शेखर कपूर, दिनेश मिश्रा, सीपी राय, आशुतोश पांडेय, आदर्श शुक्ला, राधेश्याम कमल सहित ब्यूरो के साथियों का हाड़तोड़ मेहनत का प्रतिफल था कि बेहतरीन खबरों के चलते हिन्दुस्तान पूर्वांचल में अपनी जड़ें जमा चुका था। उसी दौर में लारी जी की मुलाकात मालिकान शोभना भरतीया जी से हुई और बनारस संस्करण की नींव पड़ी। उस वक्त ग्रुप एडिटर’ आलोक मेहता ने 25 हजार कापियां बचने का टारगेट दिया, लेकिन लारी जी ने उसके आगे एक और प्लस की बात कहीं थी। देखते ही देखते यूपी-बिहार के तत्कालीन महाप्रबंधक वाईसी अग्रवाल एवं विजय सिंह, अनिल सिंह के मार्गदर्शन में न सिर्फ बिल्डिंग बन गई, बल्कि एडिशन की शुरुवात भी हो गई। यूनिट हेड यादवेश कुमार जी के नेतृत्व में अखबार की लाॅचिंग हुई और उस टारगेट को भी पूरी टीम ने भेद दिया, जिसकी लारी जी ने शोभना मैडम को वचन दिया था। उन्हीं साथियों में से एक थे विजय सिंह, जिन्होंने ’हाकर से हाकिम’ नामक एक ऐसी पुस्तक लिख डाली है जो उनकी बायोग्राफी नहीं बल्कि अखबार की दुनिया में काम करने वालों के लिए एक बेहतरीन किताब है।  पत्रकारिता और एमबीए की पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए तो बेहद उपयोगी है। इस पुस्तक में उन्होंने न सिर्फ इलाहाबाद से बतौर हाकर शुरू किये गये अपने करियर की कहानी बयां की है बल्कि यह भी बता दिया कि हर पल सीखने की ललक हो तो हर मंजिल आसान होती है। किताब इसलिए भी खास है कि अखबार के पाठक तक पहुंचने की गाथा गुगल बाबा के पास भी पूरी तरह मौजूद नहीं है। सम्पादकीय के क्षेत्र से कोसो दूर विजय जी किताब को जिस बेहतर तरीके से लिखा है वह लाजवाब है। पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़े लोगों को यह किताब जरूर पढ़नी चाहिए। यह पुस्तक आनलाईन भी उपलब्ध है। श्री लारी जी के वाॅल पर कमेंट तो कईयों ने की है लेकिन सीनियर रिपोर्टर सुधीर गर्नोकर जी की काबिले तारीफ है। उन्होंने लिखा है कि अगर एक दिन अखबार न मिले तो पाठक विचलित हो जाता है। वह यह कदापि नहीं सोचता कि मध्यरात्रि में उठकर सेंटर पर जाकर अखबार लेने व हर मौसम में निर्बाध रूप से आप तक पहुंचाने में उसे किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है? आखिर वह भी हमारी तरह इंसान है। शहर के हालात अच्छे हों या बुरे, उसे अपना काम जिम्मेदारी से करना ही है। इन्हीं सब मुश्किलों से रूबरू होते हुए वह अपने परिवार के भरण - पोषण में लगा रहता है। इन्हीं बातों को पुस्तक में संजीदगी से लिखा गया है। हम उनके उज्जवल भविष्य की कामना के साथ उनकी मेहनत को सलाम करते हैं क्योंकि बिना उनके सहयोग के हम पत्रकारों का प्रयास निरर्थक है। 

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