पुणे (महाराष्ट्र), 28 अगस्त, महाराष्ट्र पुलिस ने कई राज्यों में वामपंथी कार्यकर्ताओं के घरों में आज छापा मारा और माओवादियों से संपर्क रखने के संदेह में उनमें से कम से कम चार लोगों को गिरफ्तार किया है। वहीं, इस कार्रवाई का मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने एक सुर में विरोध किया है। पिछले साल 31 दिसंबर को एल्गार परिषद के एक कार्यक्रम के बाद पुणे के पास कोरेगांव - भीमा गांव में दलितों और उच्च जाति के पेशवाओं के बीच हुई हिंसा की घटना की जांच के तहत ये छापे मारे गए हैं। पुलिस की इस कार्रवाई पर प्रसिद्ध लेखिका अरूंधती रॉय ने आज पीटीआई भाषा से कहा, ‘‘ये गिरफ्तारियां उस सरकार के बारे में खतरनाक संकेत देती है जिसे अपना जनादेश खोने का डर है, और दहशत में आ रही है। बेतुके आरोपों को लेकर वकील, कवि, लेखक, दलित अधिकार कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों को गिरफ्तार किया जा रहा है ...हमे साफ - साफ बताइए कि भारत किधर जा रहा है।’’ हैदराबाद में तेलुगू कवि वरवर राव, मुंबई में कार्यकर्ता वेरनन गोन्जाल्विस और अरूण फरेरा, फरीदाबाद में ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और दिल्ली में सिविल लिबर्टीज के कार्यकर्ता गौतम नवलखा के आवासों में तकरीबन एक ही समय पर तलाशी ली गयी।तलाशी के बाद राव, भारद्वाज और फरेरा को गिरफ्तार कर लिया गया। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि इन लोगों को उनकी कथित नक्सली गतिविधियों को लेकर आईपीसी और गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) कानून की संबद्ध धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया है। गौतम नवलखा को भी गिरफ्तार कर लिया गया, हालांकि दिल्ली उच्च न्यायालय ने पुलिस को उन्हें कम से कम कल शाम तक दिल्ली से बाहर नहीं ले जाने का आदेश दिया।
दरअसल, उच्च न्यायालय नवलखा की ओर से उनके वकील द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रहा था। महाराष्ट्र पुलिस द्वारा नवलखा को आज दोपहर उनके घर से उठा लिए जाने के बाद यह याचिका दायर की गई थी।अपुष्ट रिपोर्ट के मुताबिक जिन अन्य लोगों के आवास में छापे मारे गए, उनमें सुसान अब्राहम, क्रांति टेकुला, रांची में फादर स्टान स्वामी और गोवा में आनंद तेलतुंबदे शामिल हैं। गौरतलब है कि कोरेगांव - भीमा, दलित इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वहां करीब 200 साल पहले एक बड़ी लड़ाई हुई थी, जिसमें पेशवा शासकों को एक जनवरी 1818 को ब्रिटिश सेना ने हराया था। अंग्रेजों की सेना में काफी संख्या में दलित सैनिक भी शामिल थे। इस लड़ाई की वर्षगांठ मनाने के लिए हर साल पुणे में हजारों की संख्या में दलित समुदाय के लोग एकत्र होते हैं और कोरेगांव भीमा से एक युद्ध स्मारक तक मार्च करते हैं। पुलिस के मुताबिक इस लड़ाई की 200 वीं वर्षगांठ मनाए जाने से एक दिन पहले 31 दिसंबर को एल्गार परिषद कार्यक्रम में दिए गए भाषण ने हिंसा भड़काई। वहीं, आज का घटनाक्रम जून में की गई छापेमारी के ही समान है जब हिंसा की इस घटना के सिलसिले में पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था। एल्गार परिषद के सिलसिले में जून में गिरफ्तार किए गए पांच लोगों में एक के परिसर में ली गई तलाशी के दौरान पुणे ने एक पत्र बरामद होने का दावा किया था, जिसमें राव के नाम का जिक्र था। विश्रामबाग थाने में दर्ज एक प्राथमिकी के मुताबिक इन पांच लोगों पर माओवादियें से करीबी संबंध रखने का आरोप है।
राव को हैदराबाद में गांधी नगर स्थित उनके आवास से पुणे पुलिस ने गिरफ्तार किया। पुलिस ने इससे पहले उनकी दो बेटियों के आवासों की भी तलाशी ली। यहां एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि राव की दो बेटियों और एक पत्रकार सहित अन्य के आवासों में पुलिस टीम ने तलाशी ली। पुलिस उपायुक्त (मध्य क्षेत्र) विश्व प्रसाद ने बताया, ‘‘पुणे पुलिस ने हमारी मदद मांगी। हमने तलाशी करने और गिरफ्तारी में मदद के लिए स्थानीय बल मुहैया किया। उन्हें (राव को) ...एक अदालत में पेश किया जाएगा और ट्रांजिट वारंट पर पुणे ले जाया जाएगा।’’ इस बीच, सिविल लिबर्टिज कमेटी के अध्यक्ष गद्दम लक्ष्मण ने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया है कि वह बुद्धिजीवियों को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रही है। लक्ष्मण ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हम कानूनी विशेषज्ञों से मशविरा कर रहे हैं। हम कानूनी लड़ाई लड़ेंगे ...उनकी गिरफ्तारी मानवाधिकारों का घोर हनन है।’’ वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने ट्वीट किया, ‘‘फासीवादी फन अब खुल कर सामने आ गए हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह आपातकाल की स्पष्ट घोषणा है। वे अधिकारों के मुद्दों पर सरकार के खिलाफ बोलने वाले किसी भी शख्स के पीछे पड़ जा रहे हैं। वे किसी भी असहमति के खिलाफ हैं।’’
चर्चित इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने पुलिस की कार्रवाई को ‘‘काफी डराने वाला’’ करार दिया और उच्चतम न्यायालय के दखल की मांग की ताकि आजाद आवाजों पर ‘‘अत्याचार और उत्पीड़न’’ को रोका जा सके। गुहा ने ट्वीट किया, ‘‘सुधा भारद्वाज हिंसा और गैर-कानूनी चीजों से उतनी ही दूर हैं जितना अमित शाह इन चीजों के करीब हैं। नागरिक अधिकार कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने भी छापेमारियों की कड़ी निंदा की। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ‘‘महाराष्ट्र, झारखंड, तेलंगाना, दिल्ली, गोवा में सुबह से ही मानवाधिकार के रक्षकों के घरों पर हो रही छापेमारी की कड़ी निंदा करती हूं। मानवाधिकार के रक्षकों का उत्पीड़न बंद हो। मोदी के निरंकुश शासन की निंदा करती हूं।’’ जून में दलित कार्यकर्ता सुधीर धावले को मुंबई में उनके घर से गिरफ्तार किया गया था, जबकि वकील सुरेंद्र गाडलिंग, कार्यकर्ता महेश राऊत और शोमा सेन को नागपुर से तथा रोना विल्सन को दिल्ली में मुनिरका स्थित उनके फ्लैट से गिरफ्तार किया गया था। पुलिस अधिकारी ने बताया, ‘‘एल्गार परिषद कार्यक्रम के सिलसिले में अपनी जांच के दौरान एक प्रतिबंधित संगठन के सदस्यों के बारे में कुछ साक्ष्य सामने आए थे, जिसके बाद पुलिस ने आज छत्तीसगढ, मुंबई और हैदराबाद में छापा मारा।’’ अधिकारी ने बताया कि माओवादियों से संपर्क रखने वालों और गिरफ्तार किए गए पांच लोगों से प्रत्यक्ष या परोक्ष संपर्क रखने वाले लोगों के आवासों में तलाशी ली गई। पुलिस ने तलाशी के दौरान कुछ आपत्तिजनक दस्तावेज बरामद होने का दावा किया है। पुलिस ने बताया, ‘‘हम इन लोगों के वित्तीय लेन-देन, संवाद के उनके तरीके की भी छानबीन कर रहे हैं और तकनीकी साक्ष्य भी जुटाने की कोशिश कर रहे हैं।’’ हालांकि, पुणे पुलिस के निवर्तमान संयुक्त आयुक्त रवींद्र कदम ने दो अगस्त को कहा था कि भीमा कोरेगांव हिंसा से माओवादियों के तार जुड़े होने का पता नहीं चला है। उन्होंने कहा था कि पुणे में एल्गार परिषद के आयोजन में ‘फासीवाद विरोधी मोर्चा’ की भूमिका थी। मौजूदा सरकार की नीतियों के विरोध में माओवादियों ने इस संगठन की स्थापना की थी।
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